लौकी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती सालों भर की जा सकती है. वहीं, घर की छत पर लगे गमले में या खेत में लगी लौकी की बेल जब खूब लहराने लगे, तो मन खुश हो जाता है. लेकिन कई बार ऐसा होता है जब पौधों में फल नहीं आते हैं. ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग तरह-तरह की महंगी खाद और केमिकल डालना शुरू कर देते हैं, लेकिन नतीजा वही होता है. ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज हम आपको ऐसे 5 देसी और असरदार उपाय बताएंगे जो आपकी लौकी की पैदावार को कई गुना तक बढ़ा सकते हैं. आइए जानते हैं.
अगर लौकी की बेल बढ़ रही है लेकिन फूल या फल नहीं आ रहे, तो इसकी वजहें हो सकती हैं मिट्टी में नमी की कमी, ज़्यादा छाया वाली जगह, कीट प्रकोप या फिर फूलों में परागण की कमी हो सकती है. कई किसान और बागवानी एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर जैविक तरीकों से पौधों की देखभाल की जाए तो न सिर्फ उत्पादन बढ़ता है, बल्कि सब्जी का स्वाद भी अच्छा होता है.
केले का छिलका और गुड़ पानी: अगर आपके लौकी के पौधे में फल नहीं आ रहा है तो इन दोनों घोल को मिलाकर 2 दिन तक पानी में गलाएं और फिर बेल में डालें. इससे प्राकृतिक पोटाश मिलेगा जो फल आने की प्रक्रिया को तेज़ करता है.
तंदूर की राख और मटका मिट्टी: लौकी की अधिक पैदावार के लिए तंदूर की राख और मटके की सूखी मिट्टी को मिलाकर बेल की जड़ों में डालें. इससे मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व बढ़ेंगे और फल आने लगेगा.
छाछ और चना दाल पेस्ट: पौधे में अधिक फल चाहिए तो चना दाल को पीसकर छाछ में मिलाएं और बेल की जड़ों में डालें. दरअसल ये घोल नाइट्रोजन की कमी पूरी करता है जिससे फल आने की संभावना बढ़ जाती है.
गोमूत्र और नीम का घोल: लौकी की अधिक पैदावार के लिए हर 7 दिन में एक बार पौधे पर गोमूत्र और नीम की पत्तियों का घोल छिड़कें. इससे पत्तियों पर कीड़े नहीं लगेंगे और पौधा ताकतवर बनेगा.
राख और छाछ का मिश्रण: अगर आपके लौकी के पौधे में फल नहीं आ रहा है तो राख और छाछ का घोल पौधे की मिट्टी में डालें. ये बेल की जड़ों को मजबूती देता है और नमी बनाए रखता है.
लौकी की खेती लगभग देश के किसी भी क्षेत्र में आसानी से की जा सकती है. लौकी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है क्योंकि खेत में ज्यादा देर तक पानी ठहरने पर फसल खराब हो जाती है. वहीं, इसकी सफल खेती के लिए हल्की दोमट भूमि उचित मानी जाती है. यह पाले को सहन करने में बिल्कुल असमर्थ होती है. इसकी खेती में 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान काफी अच्छा माना जाता है.