Soybean Farming: बिगड़ते मौसम में सोयाबीन की खेती के लिए अपनाएं ये तरीके, मिलेगी बेहतर उपज

Soybean Farming: बिगड़ते मौसम में सोयाबीन की खेती के लिए अपनाएं ये तरीके, मिलेगी बेहतर उपज

असमान मौसम के चलते किसानों के सामने कई चुनौतियां आती हैं. सोयाबीन की खेती में भी इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. सही तकनीक और सावधानी बरत कर हम सोयाबीन की बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं. यहां कुछ अहम तरीके बताए जा रहे हैं जिनसे असमान मौसम में भी अच्छी उपज हासिल कर सकते हैं.

भारत में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है  भारत में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Jun 25, 2024,
  • Updated Jun 25, 2024, 3:21 PM IST

सोयाबीन एक प्रमुख फसल है जिसकी खेती विशेषकर खरीफ मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. इसके बाद राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में भी सोयाबीन की खेती की जाती है. मध्य क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई के लिए यह सप्ताह सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है. हाल के दिनों में कुछ इलाकों में बारिश की खबरें आई हैं. मॉनसून के आगमन और सोयाबीन की खेती के प्रमुख क्षेत्रों में इसकी बुवाई की संभावना को देखते हुए सोयाबीन अनुसंधान केंद्र इंदौर ने किसानों को कुछ उपायों को अपनाने की सलाह दी है. 

कब करें सोयाबीन की बुवाई?

सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर ने किसानों को सलाह दी है. मॉनसून का आगमन और न्यूनतम 100 मिमी वर्षा होने के बाद बुवाई करें ताकि असमान मौसम के कारण सोयाबीन की फसल को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. इससे फलियों को टूटने से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है. साथ ही, कीट और रोगों का नियंत्रण आसान होता है और कटाई के लिए काफी समय होता है, जिससे किसानों को अच्छी उपज के साथ बेहतर लाभ मिलता है.

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कैसे करें सोयाबीन की बुवाई?

सोयाबीन की बुवाई के लिए लाइनों के बीच की दूरी 45 सेमी रखें. बुवाई के लिए अनुशंसित बीज को 2-3 सेमी की गहराई पर बोएं और पौधों के बीच की दूरी 5-10 सेमी रखें. प्रति एकड़ बीज दर 25 से 30 किलो होना चाहिए. बीज उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा, ब्रैडिराइजोनबियम जैपोनिकम और पीएसबी/ट्राइ बायोफर्टिलाइजर का उपयोग करें. इससे बीजों की सड़न कम होती है और पौधों की वृद्धि में मदद मिलती है.

किन खाद-उर्वरकों का करें प्रयोग

सोयाबीन की अच्छी उपज के लिए उर्वरकों का उचित प्रबंधन फसल के लिए बहुत अहम है. बुवाई के समय सोयाबीन की खेती के लिए प्रति एकड़ 23 किलो यूरिया + 160 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट + 27 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल करें. दूसरा विकल्प, अगर सिंगल सुपर फॉस्फेट उपलब्ध नहीं है, तो 140 किलो डीएपी + 67 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश + 25 किलो बेंटोनाइट सल्फर का प्रयोग करें. सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग करने से सल्फर की मात्रा की पूर्ति भी हो जाती है. इस तरह से उपयुक्त बीज, बुवाई की विधि और खाद-उर्वरकों के प्रयोग से सोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है.

सोयाबीन की नई किस्में विकसित

भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने वर्ष 2022 में तीन नई किस्में विकसित की हैं जिसका किसान अपनी जलवायु और क्षेत्र के अनुसार चयन कर सकतें हैं.
•    एनआरसी 157: यह किस्म 93 दिनों में पक जाती है और इसकी औसत उपज  6.5  क्विंटल प्रति एकड़ है. यह अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट्स, बैक्टीरियल पस्ट्यूल्स और टार्गेट लीफ स्पॉट्स जैसी बीमारियों से लड़ने में सक्षम है.
•    एनआरसी 131: यह किस्म भी 93 दिनों में पक जाती है और इसकी औसत उपज 6  क्विंटल प्रति एकड़ है. यह चारकोल रोट और टारगेट लीफ स्पॉट जैसी बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है.
•    एनआरसी 136: यह भारत की पहली सूखा-सहनशील किस्म है, जो 105 दिनों में पक जाती है और औसतन 6.5  क्विंटल/ एकड़ की उपज देती है. यह एमवायएमवी (मूंग बीन येलो मोजेक वायरस) के लिए मध्यम प्रतिरोधी है.

सोयाबीन के साथ इंटर क्रॉप फसल लगाएं 

जहां रबी की बुवाई संभव नहीं है, वहां सोयाबीन के साथ अरहर (4:2 अनुपात) की इंटर क्रॉप खेती अधिक फायदेमंद हो सकती है. संकेंद्रित क्षेत्रों में सोयाबीन के साथ मक्का, ज्वार, कपास, बाजरा आदि अंतःफसलें भी लगाई जा सकती हैं. खरपतवार नियंत्रण के लिए अनुशंसित खरपतवारनाशी का उपयोग बुवाई के तुरंत बाद करें. 200 लीटर प्रति एकड़ पानी के साथ स्प्रे का प्रयोग करें.

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खेती में अपनाएं कैफेटेरिया पद्धति 

सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर ने किसानों को सलाह दी है कि वे मौसम से होने वाले संभावित नुकसान को कम करने के लिए सोयाबीन की तीन से चार किस्मों की खेती करें. इससे असमान मौसम के कारण फसल को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और कीट और रोगों का नियंत्रण आसान होता है. इन निर्देशों का पालन करके किसान सोयाबीन की खेती में उच्च उपज प्राप्त कर सकते हैं और अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं. फसल कैफेटेरिया फसल चक्र या फसल किस्मों की प्रणाली है, जिसमें एक ही खेत में एक ही फसल या एक ही किस्म को हर साल लगाने के बजाय, योजनाबद्ध तरीके से कई तरह की फसलें या किस्में उगाई जाती हैं. इस पद्धति का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, कीट और बीमारियों के दबाव को कम करने और पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है.


 

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