सूखे से फसल को बचाने के लिए किसान ने अपनाया देसी जुगाड़, एक सीजन में हुआ 15,000 रुपये का मुनाफा

सूखे से फसल को बचाने के लिए किसान ने अपनाया देसी जुगाड़, एक सीजन में हुआ 15,000 रुपये का मुनाफा

झबुआ जिले के रोटला गांव के रहने वाले रमेश बारिया को पता था कि सूखी और बंजर सी बेजान जमीन में सब्जियों की खेती बहुत मुश्किल काम है. लेकिन उन्होंने इसी खेती को करने का ठान लिया और इस दिशा में नए-नए प्रयास शुरू कर दिए. इस सिलसिले में वे एनएआईपी-कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से मिले और सब्जी की खेती की सलाह ली.

सब्जियों की खेतीसब्जियों की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 16, 2025,
  • Updated Jan 16, 2025, 7:15 PM IST

मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला सूखे से जूझता रहा है. यहां की जमीन सूखी और पथरीली है. साथ ही उबड़-खाबड़ होने के चलते किसी भी खेत में पानी नहीं टिकता. इससे किसानों को खेती करने में परेशानी आती है. खासकर गर्मी के दिनों में किसी भी तरह की खेती मुश्किल हो जाती है. इसीलिए यहां के अनुभवी किसान जाड़े और बरसात में सब्जियों की खेती को अधिक महत्व देते हैं. इसी में एक किसान हैं रमेश बारिया जिन्होंने देसी जुगाड़ अपनाकर सब्जियों की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया है. उनका यह प्रयास अब भी जारी है.

झबुआ जिले के रोटला गांव के रहने वाले रमेश बारिया को पता था कि सूखी और बंजर सी बेजान जमीन में सब्जियों की खेती बहुत मुश्किल काम है. लेकिन उन्होंने इसी खेती को करने का ठान लिया और इस दिशा में नए-नए प्रयास शुरू कर दिए. इस सिलसिले में वे एनएआईपी-कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से मिले और सब्जी की खेती की सलाह ली. वैज्ञानिकों ने उन्हें कद्दूवर्गीय और करेले की खेती करने की सलाह दी क्योंकि उसमें पानी कम लगता है. 

सूखी जमीन में सब्जियों की खेती

बारिया ने इन दोनों फसलों की नर्सरी मई 2012 में तैयार की और इन फसलों को (12 लाइन करेला और तीन लाइन स्पंज गोर्ड) जून 2012 के पहले सप्ताह में बोया. इन फसलों की खेती के शुरुआती दौर में उन्हें मॉनसून की देरी की वजह से सिंचाई की भारी कमी का सामना करना पड़ा. रमेश अपनी फसलों की बर्बादी को लेकर चिंतित थे. 

इसके बाद उन्होंने एनएआईपी वैज्ञानिकों के साथ विचार-विमर्श किया और उनकी सहायता से एक खास तरह की सिंचाई तकनीक अपनाना शुरू किया. यह तकनीक थी ग्लूकोज की बेकार बोतल से फसलों की सिंचाई. इस तकनीक में ग्लूकोज की बेकार बोतल के टॉप पर पानी भरने के लिए एक छेद बनाया जाता है और बोतल में लगी वाल्व के जरिये कम-अधिक पानी गिरने को कंट्रोल किया जा सकता है. 

सरकार से मिला 'इनाम'

रमेश अपनी सब्जी की फसलों को बचाने के लिए दृढ़ थे, इसलिए उन्होंने 6 किलो ग्लूकोज की बेकार बोतलें (350 की संख्या में) 20 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदीं और पानी भरने के लिए बोतल के ऊपरी तल में छेद किए. रमेश ने अपने बच्चों को स्कूल जाने से पहले पानी की बोतलें भरने का निर्देश दिया. उन्होंने पानी की बूंद-बूंद सप्लाई के लिए बोतल में लगे वाल्व का इस्तेमाल किया. इस प्रकार, रमेश ने मॉनसून की देरी के कारण सूखे से अपनी फसल को बचाया और 0.1 हेक्टेयर भूमि से 15,200 रुपये का शुद्ध लाभ कमाया. 

रमेश की यह कोशिश बताती है कि एक आदिवासी किसान दूर-दराज के आदिवासी पहाड़ी मिट्टी वाले क्षेत्र में भी सिंचाई की इस नई तकनीक को अपनाने से 1.50 से 1.70 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का लाभ एक मौसम में सब्जी की खेती से पा सकते हैं. उनकी इस उपलब्धि के लिए जिला प्रशासन और मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री प्रमाण पत्र से सम्मानित किया.

 

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