खेती योग्य जमीन का आकार लगातार घटने से, बहुत से लोग केवल फसल उगाकर जीवनयापन कर रहे हैं. हालांकि, अगर आप आम या अमरूद की बागवानी का शौक रखते हैं, तो नई सघन (हाई-डेंसिटी) बागवानी तकनीक से कम जमीन में भी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं. यह विधि आपको अमरूद में दो से आठ गुना और आम में दो से तीन गुना तक ज्यादा पैदावार दिला सकती है. यह उन किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जिनके पास सीमित भूमि है. वे डेंसिटी बागवानी अपनाकर अपने फलों की पैदावार में कई गुना इजाफा कर सकते हैं. खास रूप से अमरूद की पैदावार में चार गुना से लेकर आठ गुना तक की वृद्धि देखी जा सकती है, जबकि आम में यह वृद्धि दो से तीन गुना तक हो सकती है.
हाई-डेंसिटी बागवानी में सही किस्मों का चुनाव बेहद अहम है, क्योंकि इस विधि में मुख्य रूप से बौनी किस्मों को प्राथमिकता दी जाती है.आम की हाई-डेंसिटी बागवानी के लिए अरुणिका और आम्रपाली जैसी किस्में सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं. अमरूद की हाई-डेंसिटी बागवानी के लिए आप ललित, इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 और VNRB जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं, जिनसे बंपर उपज मिलती है.
सही दूरी पर पौधों का रोपण हाई-डेंसिटी बागवानी की सफलता के लिए अहम है. इसमें आम की साधारण बागवानी में पौधे से पौधे की दूरी लगभग 10 मीटर होती है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 100 पौधे लगते हैं. आम्रपाली किस्म की हाई-डेंसिटी बागवानी में पौधे से पौधे की दूरी 2.5 से 3 मीटर रखी जाती है, जिससे एक हेक्टेयर में 1333 पौधे लगाए जा सकते हैं. आम्रपाली के अलावा अन्य किस्मों के लिए 5 मीटर x 5 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं, जिससे एक हेक्टेयर में लगभग 400 पौधे लगते हैं. अमरूद की हाई-डेंसिटी बागवानी के लिए पौधों को 3 मीटर x 3 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, जिससे एक हेक्टेयर में 1111 पौधे रोपित होते हैं.
हाई-डेंसिटी बागवानी में पौधों का सही प्रबंधन, विशेषकर कटाई-छंटाई, अधिक उपज के लिए जरूरी है. पौधे को शुरुआत में 70 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट दें. दो-तीन महीने में पौधे से चार-छह मजबूत डालियां विकसित होंगी. अमरूद के नए कल्लों पर फल लगते हैं, इसलिए नए कल्लों का विकास जरूरी है. इसके लिए साल में तीन बार कटाई-छंटाई की जाती है. पहली कटाई बाग लगाने के चार-पांच महीने बाद अक्टूबर में की जाती है. इसमें तीन-चार टहनियों को चुनकर उन्हें 50% तक काट दिया जाता है. कटे हुए भाग पर बोर्डो पेस्ट लगाना अनिवार्य है. दूसरी कटाई फरवरी में की जाती है. तीसरी कटाई मई-जून में करनी चाहिए. दो वर्षों तक कटाई-छंटाई कर पौधों की संरचना का विकास किया जाता है, जिसके बाद तीसरे वर्ष से पौधे फल देना शुरू कर देते हैं.
आम की हाई-डेंसिटी बागवानी में पौधे को जमीन से 60-70 सेंटीमीटर ऊंचाई से अक्टूबर-दिसंबर के महीने में काट देना चाहिए. कटिंग के बाद मार्च-अप्रैल में नए तने निकलते हैं. मई के महीने में चार तनों को चारों दिशाओं में रखकर बाकी सभी को हटा दें. फिर इन चार तनों की अक्टूबर-नवंबर में दोबारा कटाई-छंटाई की जाती है. इस तरह कटाई-छंटाई करके पेड़ के चारों ओर 3-4 शाखाओं को लगातार बढ़ने दिया जाता है.
पारंपरिक तरीकों से अमरूद की बागवानी करने पर प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन तक उपज मिलती है. वहीं, हाई-डेंसिटी बागवानी अपनाने पर यह औसत बढ़कर 30 से 50 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. इसी तरह, आम की सामान्य बागवानी में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 टन तक उत्पादन प्राप्त होता है. हाई-डेंसिटी बागवानी को अपनाने से यह उत्पादन बढ़कर 15 से 18 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुंच जाता है. हाई-डेंसिटी बागवानी, सीमित ज़मीन से भी अधिक मुनाफा कमाने का एक प्रभावी और आधुनिक तरीका है.
हाई-डेंसिटी बागवानी में भी पारंपरिक तरीकों की तरह 3 साल में फल लगने शुरू हो जाते हैं, लेकिन तीसरे साल से ही पारंपरिक बागवानी की तुलना में दोगुनी उपज मिलना शुरू हो जाती है. अगर समय के साथ नई तकनीक और बेहतर विधियों को अपनाकर आम और अमरूद की हाई-डेंसिटी प्लांटिंग करेंगे, तो आपको प्रति इकाई क्षेत्रफल से निश्चित रूप से अधिक उपज मिलेगी. तो इस तरह, सीमित जगह होते हुए भी अगर उसका प्रबंधन बेहतर किया जाए, तो निश्चित तौर पर हम न केवल ज़्यादा मुनाफा हासिल कर सकते हैं, बल्कि सीमित संसाधन में खेती का यह गुर हमें अधिक उत्पादन भी दे सकता है.