सफेद मक्खी (White Fly) कपास का एक प्रमुख कीट है जो पौधों से रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाती है. इससे पत्तियां पीली होकर मुरझा जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं. सफेद मक्खी द्वारा छोड़ा गया हनीड्यू सूटी मोल्ड रोग फैलाता है, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित होती है. सफेद मक्खी कपास की पत्ती की कर्ल वायरस बीमारी (CLCuV) भी प्रसारित करती है, जिससे उपज में कमी आती है. जुलाई और अगस्त में इसके प्रकोप में वृद्धि होती है, क्योंकि इस मौसम में इसके विकास और प्रजनन के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती हैं. किसान सफेद मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित कर सकते हैं और कपास की उपज को बचा सकते हैं, मगर इसके लिए जरूरी है कि सतर्कता बरतें और कृषि विशेषज्ञों द्वारा बताए गए सही प्रबंधन तकनीकों का अनुसरण करें.
सफेद मक्खी भारत में कपास का बहुत हानिकारण कीट है. यह पौधों के फलोएम से रस चूसती है, जिससे पत्तियां पीली होकर मुरझा जाती हैं. सफेद मक्खी चिपचिपा हनीड्यू भी छोड़ती है,जिससे फफूंद जनित रोग सूटी मोल्ड रोग फैलता और उत्पाद की गुणवत्ता को कमी आती है. उत्तर भारत में, सफेद मक्खी पूरे वर्ष भर मौजूद रहती है और एक फसल से दूसरी फसल में स्थानांतरित होती रहती है. यह कीट कपास की पत्ती की कर्ल वायरस बीमारी (सीएलसीयूवी) को भी प्रसारित करता है, जिसके लिए कोई नियंत्रण उपाय नहीं है. बीमारी से प्रभावित पौधे छोटे और कम बॉल वाले हो जाते होते हैं, जिससे उपज में कमी आती है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अगस्त महीने के दौरान उत्तर भारत के कपास उगाने वाले क्षेत्रों में सफेद मक्खी के प्रकोप की गंभीर महामारी देखी गई. जुलाई-अगस्त में सफेद मक्खी का प्रकोप तेजी से होता है, क्योंकि सफेद मक्खी के विकास और प्रजनन के लिए बरसात का मौसम अनुकूल होता है. जुलाई तक कपास उगाने वाले क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण सफेद मक्खी का प्रकोप गंभीर होता गया था, जिससे पत्ती की कर्ल वायरस बीमारी जाती है. एक आकड़े के मुताबिक हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कपास उगाने वाले क्षेत्रों में सफेद मक्खी का प्रकोप अगस्त महीने में सबसे ज्यादा रहता है.
अगर कपास की बुवाई 15 मई के बाद देरी से होती है, तो सफेद मक्खी के आक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. गैर-सिफारिश कपास के हाइब्रिड्स किस्मों की बुवाई करने ये समस्या ज्यादा उत्पन्न होती है. एक आकड़े के अनुसार कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 60 फीसदी से अधिक किसान ऐसी हाइब्रिड्स किस्मों की बुवाई करते हैं जो कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा सिफारिश नहीं की गई होती हैं. इसके कारण भी इस कीट का प्रकोप होता है. दूसरा कारण जलवायु परिवर्तनशीलता भी है, जैसे अप्रत्याशित बारिश, लंबे समय तक सूखा और मॉनसून में कमी के कारण इस कीट का प्रकोप होता है.
सफेद मक्खी कीट को रोकने के लिए सिफारिश किए गए कीटनाशकों का उपयोग सिफारिश मात्रा में करें. किसान एक ही कीटनाशक का दूसरी बार प्रयोग ना करें. उचित स्प्रे तकनीक का पालन करें. हमेशा फ्लैटफैन नोजल का प्रयोग करें. कपास के बगल में दूसरी फसल टमाटर, बैंगन, मिर्च और भिंडी जैसी सब्जी फसलें बोई गई हैं तो उसको रोकने के लिए उपाय अपनाएं. किसान सामुदायिक दृष्टिकोण अपनाएं और कीटनाशकों का उपयोग एक ही दिन सभी खेतों में करें. रास्ते, सिंचाई, सड़कों के किनारे से खरपतवार हटाएं क्योंकि इस पर सफेद मक्खी कीट का आक्रमण होता है. फसल की सेहत सुधारने के लिए पोटेशियम नाइट्रेट का स्प्रे करें. कपास में सोटी-मोल्ड को नियंत्रित करने के लिए ब्लिटॉक्स का स्प्रे करें.
किसान केवल सिफारिश किस्मों को उगाएं. कपास की 15 अप्रैल से 15 मई के बीच बुवाई पूरी करें. बीटी कपास के लिए सिफारिश की फसलों की दूरी का पालन करें. बगीचों के पास या उसके अंदर अमेरिकी कपास की बुवाई से बचें. कपास के खेत के आसपास टमाटर, भिंडी, बैंगन और मूंग जैसी फसलें न उगाएं. कपास के खेत के अंदर या आसपास खरपतवार सफेद मक्खी कीट आश्रय देने वाले पौधों को हटाएं.
सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए नियमित निगरानी और अभियान प्रभावी रणनीति है. इसके लिए आर्थिक थ्रे शोल्ड स्तरों का पालन करें और सफेद मक्खी के खिलाफ स्प्रे तभी करें जब पौधे की ऊपरी टहनियों में प्रति पत्ती 6 वयस्क कीट हों. इसके लिए ट्रायाजोफॉस या इथियन दवा प्रभावी हैं. ओबेरॉन का स्प्रे सफेद मक्खी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है. कीटनाशक स्प्रे के दौरान पत्तियों की निचली सतह पर छिड़काव करें, फिक्स्ड टाइप सॉलिड कोन नोजल का उपयोग करें. एक ही कीटनाशक का बार-बार उपयोग न करें. ये सभी उपाय मिलकर सफेद मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं और कपास की उपज को बचा सकते हैं.