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देशभर में कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए राहत की खबर है. गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) के बढ़ते प्रकोप से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कीट विशेषज्ञों ने कुछ हाईटेक और व्यवहारिक तकनीकों की सिफारिश की है, जिससे कपास की फसल को भारी नुकसान से बचाया जा सकता है.
पिछले कुछ वर्षों में गुलाबी सुंडी ने विशेष रूप से BT कॉटन की किस्मों पर हमला कर किसानों को लाखों का नुकसान पहुंचाया है. फलों (बोल्स) में अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचाने वाला यह कीट फसल की क्वालिटी और उत्पादन दोनों पर बुरा असर डालती है.
फेरोमोन ट्रैप्स (Pheromone Traps):
खेतों में फेरोमोन ट्रैप्स लगाने से नर सुंडियों को आकर्षित कर उन्हें पकड़ लिया जाता है, जिससे उनके प्रजनन की प्रक्रिया बाधित होती है. इससे कीट की जनसंख्या को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
रिफ्यूजिया नीति (Refugia Strategy):
बीटी कपास के साथ कुछ प्रतिशत गैर-बीटी कपास की खेती की जाए तो उससे कीटों की संख्या कंट्रोल होती है. इससे कीटों में बीटी प्रतिरोध कम होता है और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है. तभी कहा जाता है कि बीटी कपास के खेत की मेड़ पर सामान्य कपास किस्मों की खेती की जानी चाहिए.
समय पर कटाई और अवशेष नष्ट करना:
कपास की देर से कटाई से सुंडी की संख्या बढ़ सकती है. इसलिए फसल की समय पर कटाई और खेत में बचे अवशेषों को नष्ट करना बेहद जरूरी है.
फसल चक्र (Crop Rotation):
लगातार कपास की खेती करने से कीटों को पनपने का मौका मिलता है. कपास के बाद मूंग, चना या अन्य फसलें बोने से कीट चक्र टूटता है.
जैविक कीटनाशकों का प्रयोग:
Bacillus thuringiensis और Nuclear Polyhedrosis Virus (NPV) जैसे जैविक कीटनाशकों का छिड़काव प्रभावी साबित हुआ है.
प्राकृतिक कीटों का संरक्षण:
परजीवी ततैया और शिकारी कीट जैसे ट्राइकोग्रामा का संरक्षण कर गुलाबी सुंडी पर जैविक नियंत्रण संभव है. किसान इन कीटों को पाल पोस कर या खेत में पनपा कर गुलाबी सुंडी से कपास को बचा सकते हैं.
भारतीय कपास अनुसंधान संस्थान (CICR), नागपुर और पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी सहित कई संस्थान इस विषय पर रिसर्च कर रहे हैं. केंद्र सरकार और राज्य कृषि विभागों ने भी किसानों को जागरूक करने के लिए कीट चेतावनी ऐप्स, फील्ड डेमोन्स्ट्रेशन और सब्सिडी योजनाएं शुरू की हैं.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि "गुलाबी सुंडी की समस्या का समाधान किसी एक उपाय से संभव नहीं है. इसके लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) अपनाना बहुत जरूरी है, जिसमें जैविक, रासायनिक और यांत्रिक उपायों का संतुलित उपयोग किया जाए.