कोहरे और ठंड से पिछले सप्ताह से मैदानी इलाकों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मैदानी इलाकों में घने कोहरे के कारण दलहनी फसल जैसे कि मटर पर पाले का असर पड़ सकता है. घने कोहरे के ठंड के कारण दलहनी फसलों में कई रोग का अटैक होता है, जिससे फसलों को भारी नुकसान हो सकता है. इन रोगों के कारण फसलों के फूल और फलियां सूख सकती हैं, जिससे पैदावार कम होने की आशंका होती है. इसलिए किसानों को सुझाव दिया जा रहा है कि इस समय वे रोगों की रोकथाम के उपायों पर ध्यान दें.
डॉ एस.के.सिंह, पौध सुरक्षा विशेषज्ञ, आरए यू पूसा, समस्तीपुर के पादप रोग विभाग के हेड ने बताया कि लगातार कोहरा और गलन मटर की फसल के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है. कोहरे और गिरते तापमान के कारण फसल की बढ़वार कम हो जाती है. इस समय किसानों को फसल के रख-रखाव में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि कोहरे और गलन के कारण तापमान कम होने पर फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग रोग (पाला) लगने का खतरा बढ़ जाता है. मृदुरोमिल आसिता रोग के लक्षणों के बारे में बताया जाता है कि इस रोग के लगते ही फसल की पत्तियां किनारों से भूरी हो जाती हैं और सूखने लगती हैं.
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मृदुरोमिल आसिता रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब (डाइथेन एम-45 ) दवा का ढाई ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर किसान सुरक्षात्मक छिड़काव कर सकते हैं. दोनों दवाओं का बारी-बारी से हर 10 से 15 दिन में छिड़काव करना फायदेमंद रहता है. इसके साथ ही खेत में बराबर नमी बनाए रखने का प्रयास करें. इससे फसल में सुधार और फायदा होगा.
इस समय मटर में रूट रॉट रोग यानी कि आर्द्र गलन रोग भी फैलता है. वातावरण में अधिक आर्द्रता होने पर यह रोग ज्यादा तेजी से फैलता है. मटर की फसल को इस रोग से काफी नुकसान होता है. लेकिन अगर इस रोग का सही तरह से प्रबंधन किया जाए तो बेहतर उपज मिलती है. आमतौर पर इस रोग का प्रकोप छोटे पौधों में अधिक देखने को मिलता है. ये रोग के लिए सबसे अनुकूल मौसम होता है.
दरअसल इसके लक्षण प्रायः बाढ़ वाले या जलजमाव के इलाक़ों में ज्यादा देखे जाते हैं. इस रोग से प्रभावित पौधों की निचली पत्तियां हल्के पीले रंग की होने लगती हैं. कुछ समय बाद पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं. पौधों को उखाड़ कर देखा जाए तो उसके जड़ सड़े हुए दिखते हैं. रोग से प्रभावित पौधे सूखने लगते हैं. इससे उत्पादन में भारी कमी आती है. यह रोग मटर की फसल के पौधे को किसी भी चरण में संक्रमित कर सकता है. इस रोग के कारण पौधे पीले होकर मुरझाने लगते हैं.
अगर इस समय रोग दिखाई दे रहा है और आपको जैविक नियंत्रण करना है तो ट्राइकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर प्रयोग करें. मटर की जड़ों की सड़न पर नियंत्रण पाने के लिए इस दवा का इस्तेमाल किया जाता है. अगर रोग तेजी से फैल रहा है तो रोको एम या कार्बेंडाजिम नामक कवकनाशक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर मिट्टी का उपचार करने से (Soil drenching) रोग की उग्रता में भारी कमी आती है.
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इन रोगों से बचाव के लिए हमेशा प्रमाणित स्रोतों से प्राप्त बीजों का ही प्रयोग करें. बुवाई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें. उचित जलनिकासी वाले खेत का चयन करना सुनिश्चित करें. पौधे विकास की शुरुआती अवस्था में, विशेषतः ठंडी में फॉस्फोरस की संतुलित मात्रा में प्रयोग करें और खेत में जलजमाव की स्थिति न होने दें.