Flower cultivation: कट फ्लावर ग्लेडियोलस की खेती से कम समय में लाखों का मुनाफा, जानिए इसकी खेती के टिप्स और फायदे

Flower cultivation: कट फ्लावर ग्लेडियोलस की खेती से कम समय में लाखों का मुनाफा, जानिए इसकी खेती के टिप्स और फायदे

Gladiolus farming: ग्लेडियोलस सर्दियों में उगाया जाने वाला एक फूल है, लेकिन इसकी खेती पूरे साल की जाती है. ग्लेडियोलस के फूलों की मार्केटिंग शादियों, त्योहारों या किसी के स्वागत के लिए गुलदस्ते के रूप में किया जाता है. इसकी खेती की विधि बहुत आसान है. उत्तर भारत में इसकी बुवाई सितंबर से दिसंबर तक की जाती है. रबीनामा में ग्लेडियोलस की खेती की तकनीक और फायदों के बारे में जानेंगे.

ग्लेडियोलस की खेती में किसान पा सकते हैं बेहतर मुनाफाग्लेडियोलस की खेती में किसान पा सकते हैं बेहतर मुनाफा
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Oct 05, 2023,
  • Updated Oct 05, 2023, 2:28 PM IST

रबीनामा: ग्लेडियोलस भारत में सबसे लोकप्रिय व्यावसायिक कटे हुए फूलों की फसल बन गई है. ओपन फील्ड में लगाए जाने वाले ग्लेडियोलस फूलों की बाजार में अच्छी मांग है. इससे किसान बेहतर उत्पादन के साथ अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. फूलों की खेती में क्षेत्र और उत्पादन के लिहाज से ग्लेडियोलस का तीसरा स्थान है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र देश के प्रमुख ग्लेडियोलस उत्पादक राज्य हैं. उत्तराखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और सिक्किम में भी इसकी खेती होती है. हालांकि ग्लेडियोलस जाड़े में उगाया जाने वाला फूल है, लेकिन मध्यम जलवायु में भी साल भर इसकी खेती की जाती है.

ग्लेडियोलस पुष्प की मार्केटिंग शादी-ब्याह, त्योहार या किसी के स्वागत में बुके के तौर पर किया जाता है. इसकी खेती का तरीका बेहद आसान है. इसकी बुवाई सितंबर से लेकर दिसंबर तक की जाती है. कट फ्लावर ग्लेडियोलस की खेती से कम समय में लाखों का मुनाफा हो सकता है. आज रबीनामा में जानेंगे ग्लेडियोलस खेती की तकनीक और फायदे के बारे मेंं. 

ग्लेडियोलस की किस्में 

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेडियोलस की लगभग हज़ारों क़िस्में हैं, लेकिन कुछ मुख्य किस्मों की खेती देश के मैदानी इलाक़ों में की जाती है. ग्लेडियोलस की किस्मों की बात करें तो IARI पूसा, दिल्ली द्वारा विकसित किस्में पूसा मनमोहक, पूसा रेड वैलेन्टाइन, पूसा विदुषि, पूसा किरण, अग्निरेखा, अंजलि इत्यादि हैं. वही IIHR, बंगलोर से विकसित किस्में हैं, आर्का नवीण, आर्का गोल्ड, आर्का केशर, आरती, पूनम, धीरज, शोभा. वही NBRI, लखनऊ से विकसित प्रमुख किस्में हैं अर्चना, अरुण, काजल, उषा, मनहर, मोहिनी, मनमोहन. MPKV रावरी ने फूल गणेश, फूल तेजश, फूल नीलरेखा ग्लेडियोलस की किस्में किकसित की हैं. मुख्य रूप से पीला, सफेद, गुलाबी, लाल रंग के ग्लेडियोलस फूल की ज्यादा डिमांड है. लेकिन बैंगनी और मल्टीकलर के ग्लेडियोलस भी मार्केट में उपलब्ध हैं. ग्लेडियोलस की खेती के समय किस्मों का चुनाव रंग के आधार पर करना बेहतर होता है.

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ग्लेडियोलस बुवाई से पहले जरूरी काम 

एक एकड़ भूमि में कंदों की रोपाई के लिए लगभग 60 हजार कंदों की जरूरत पड़ती है. रोपाई से पहले कंदों का शोधन बहुत ज़रूरी होता है जिससे आगे होने वाले फंफूदजनित रोगों से बचा जा सके. ग्लेडियोलस में ज्यादा फंफूद जनित रोगों का प्रकोप होता है. इसकी रोकथाम के लिए 2 ग्राम कार्बेंडाजिम दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाना चाहिए और कंदों को 20 मिनट उपचारित किया जाना चाहिए. फ़सल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए एक हेक्टेयर में संतुलित खाद और उर्वरक का प्रयोग करना बेहतर रहता है. इसके अलावा मिट्टी का परीक्षण भी बेहद जरूरी होता है. 

खाद उर्वरक कब और कैसे दें?

किसी खास वजह से परीक्षण न हो पाने पर जुताई के समय 5-6 टन कंपोस्ट खाद, 80 किलो नाइट्रोजन, 160  किलो फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश को प्रति एकड़ जरूरत होती है. बुवाई के समय कंपोस्ट खाद, फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन, 1 तिहाई बेसल डोज के रूप में देना चाहिए. शेष बची नाइट्रोजन की दो बराबर भागों में बांटकर देना चाहिए. पहला जब पौध में तीन से चार पत्तियां बन जाए तब और दूसरा कंद बनते समय दिया जाना चाहिए जिससे कल्ले बनने और पौधों की बढ़वार में सहायता मिलती है.

बुवाई के समय इन बातों का रखें ध्यान

ग्लेडियोलस की बुवाई आलू की तरह करनी चाहिए.अगर समतल खेत में ग्लेडियोलस की बुवाई कर रहे हैं, तो खेत में पानी नहीं लगना चाहिए. वहीं दूसरे तरीके से करने पर आपको पहले आलू की तरह रिज बनाना होगा और फिर फरों में कंदों की रोपाई की जा सकती है. कंद लगाते समय ये ध्यान रखें कि कंद की जड़ नीचे और कल्ले निकलने वाला भाग ऊपर होना चाहिए जिसके लिए अंकुरण करवाकर बोना सही रहता है. कंदों की रोपाई लाइनों में करनी चाहिए. लेकिन अगर मौसम फसल के अनुरूप हो तो इसकी खेती सालभर कर सकते हैं. रोपाई के लिए उपचार किए गए कंदों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिए कंदों को लाइनों में 25 सेंटीमीटर की दूरी पर 05 सेमी गहराई पर लगाया जाता है.

ग्लेडियोलस खेती का गणित

अगेती किस्मों में लगभग 60-65 दिन, मध्यम किस्मों में 80-85 दिन और पछेती किस्मों में 100-110 दिन में फूल आना शुरू हो जाता है. एक एकड़ में अगर इसकी बुआई की जाए तो एक एकड़ में 80 हजार से 01 लाख फूल की डंडियां मिलती हैं जो चार से पांच रुपये के हिसाब से बिकती हैं. इसकी खेती में पूरी लागत पहले साल में लगभग 02 लाख रुपये आती है. 90 दिनों के बाद ये फसल लगभग 03-04 लाख रुपये में बिक जाती है. अगली बुवाई के लिए इसी के बल्ब को सुरक्षित रखा जाता है जिससे अगले साल लागत घटकर 20 हजार के आसपास आती है. फिर कमाई वही 04 लाख तक आसानी से पहुंच जाती है. इस तरह किसान को 80-90 दिन की इस फसल से पहले साल 1.5  लाख और दूसरे साल 02 से 2.5 लाख रुपये से ऊपर की कमाई हो जाती है.

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प्रारंभिक अवस्था में लागत थोड़ी ज्यादा आती है क्योंकि कंद महंगा मिलता है. लेकिन अगर किसान पहले थोड़े से एरिया में खेती कर लें तो कंदों से जो कारमलेट मिलेंगे, उनसे अगली बार खेती करने पर लागत कम हो जाएगी. बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए अन्न-अनाज के साथ अगर आप फूलों की खेती करते हैं तो निश्चित ही लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

 

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