देश में अभी E20 वाले ब्लेंडेड पेट्रोल को लेकर चल रहा घमासान खत्म भी नहीं हो पाया और अब भारत सरकार डीजल में भी मिलावट करने के लिए तैयार है. हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण की सफलता को आगे बढ़ाते हुए अब ध्यान डीजल पर केन्द्रित होना चाहिए और बायोडीजल कार्यक्रम के तहत 10% आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण की योजना बनाई गई है. मगर सवाल ये है कि जब E20 पेट्रोल से करोड़ों वाहनों पर नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है, वहीं अब ब्लेंडेड डीजल (B10) से किसानों के ट्रैक्टरों पर भी बुरा असर देखने को मिल सकता है.
गडकरी ने अपने बयान में कहा था कि आइसोब्यूटेनॉल, जो एक वैकल्पिक जैव ईंधन है, जिसकी डीजल में ब्लेंडिंग की जाएगी. इसलिए जरूरी है कि आइसोब्यूटेनॉल के बारे में कुछ जरूरी चीजें पता हों. आइसोब्यूटेनॉल (C₄H₁₀O) जो कि एक रंगहीन और गंधहीन पदार्थ होता है, डीजल में ब्लेंडर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. मगर हैरान करने वाली बात ये है कि डीजल में इसकी ब्लेंडिंग पर अधिकतर रिसर्च ये इशारा करती हैं कि पर्यावरण के लिहाज से तो ये फायदेमंद है, मगर इंजन के लिए इसके नुकसान ज्यादा हैं. खासतौर पर पुराने डीजल इंजनों के लिए ज्यादा हानिकारक साबित होगा.
डीजल में आइसोब्यूटेनॉल मिलाने से इंजन को स्टार्ट करने में दिक्कतें आ सकती हैं. चूंकि इसकी कम सीटेन वैल्यू होती है और हाई इग्निशन डिले होता है तो ठंडे मौसम में डीजल इंजन को पहले से स्टार्ट करना कठिन होता है, मगर ब्लेंडिंग के बाद ये और भी मुश्किल हो सकता है.
इग्निशन में अनियमित देरी के कारण इंजन में कंपन भी बढ़ सकते हैं. इसके साथ ही आइसोब्यूटेनॉल में ऑक्सीजन कंटेंट ज्यादा होता है (करीब 11%), जिससे दहन के दौरान ज्यादा हीट बनेगी और पुराने इंजन जिनमें कूलिंग सिस्टम उतना बेहतर नहीं होगा, वे जल्दी ओवरहीट होंगे और साथ ही वाल्व/पिस्टन डैमेज की संभावना भी बढ़ जाएगी.
अगर डीजल में 10 से 20% तक आइसोब्यूटेनॉल की ब्लेंडिंग की गई तो पावर आउटपुट 5–15% तक घट सकता है. यानी कि इंजन की इंधन खपत बढ़ेगी. BSFC (ब्रेक स्पेसिफिक फ्यूल कंज़म्पशन) बढ़ जाएगा और उतना ही काम करने के लिए ज्यादा लीटर ईंधन चाहिए होगा.
दरअसल, अभी भारत में लगभग 40% किसानों के पास ट्रैक्टर हैं. मगर इसमें भी ज्यादातर किसानों के पास पुराने ट्रैक्टर है. कई सारे किसान तो लगातार 2 पीढ़ियों से एक ही ट्रैक्टर इस्तेमाल कर रहे हैं. कुछ रिपोर्ट तो यहां तक दावा करती हैं कि भारत में अधिकतर किसानों के पास 1990 से 2010 मॉडल के ट्रैक्टर हैं.
यानी कि बहुत बड़ी संख्या में किसान 15 से 35 साल पुराने ट्रैक्टरों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके साथ ही अधिकतर छोटे और कम बजट वाले किसान लेते ही पुराना या सेकेंड हैंड ट्रैक्टर है. जिसका साफ मतलब ये हुआ कि भारत में ऐसे किसानों का एक बहुत बड़ा नंबर है जिनके पास बायोडीजल कंपेटिबल ट्रैक्टर नहीं है.
अब जो भी 1990 से 2010 मॉडल के ट्रैक्टर हैं, उनमें इनलाइन या रोटरी मैकेनिकल इंजेक्शन पंप लगे हैं. इनका कोई इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल नहीं है, जिसे ECU की मदद से बायोडीजल के लिए एडजस्ट किया जा सके. साथ ही इनके फ्यूल फिल्टर भी बेसिक होते हैं.
इस तरह के ट्रैक्टरों में ब्लेंडेड डीजल से कई समस्याएं आने लगेंगी. जैसे फ्यूल पंप और इंजेक्टर की लाइफ 20 से 30 प्रतिशत तक घट सकती है. फिल्टर बदलने का अंतराल दोगुना हो जाएगा, जो कि अभी 3–4 महीने में करना पड़ता है, वही फिर हर 1–2 महीने में करना पड़ेगा.
आइसोब्यूटेनॉल की ल्यूब्रिसिटी कम होने की वजह से इंजन ऑयल का डिग्रेडेशन भी तेज़ होगा. इससे होगा ये कि किसानों को 250 घंटे की जगह हर 150–180 घंटे पर इंजन ऑयल बदलना पड़ सकता है. यानी ट्रैक्टर का सर्विस अंतराल घटेगा और मेंटीनेंस खर्च बढ़ेगा.
इसकी वजह से ट्रैक्टर का फ्यूल फिल्टर जो अभी साल में 2 बार बदलना पड़ता है फिर साल में 4-5 बार बदलना पड़ सकता है. इंजेक्शन पंप और नोजल रिपेयर जहां अभी 5–6 साल में एक बार दिखाना पड़ता है, फिर हर 2–3 साल में बदलना पड़ेगा. इसके अलावा ओवरहॉलिंग भी 8–10 साल की जगह 5–6 साल में करनी पड़ सकती है.
आसान भाषा में समझाएं तो एक औसत 35–45 HP ट्रैक्टर पर किसान को बायोडीजल की वजह से मेंटेनेंस पर सालाना 8 से 12 हजार रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ सकते हैं. इसके अलावा जो किसान 15 से 30 साल पुराने ट्रैक्टरों से काम चला रहे हैं, उन्हें फिर मजबूरी में और कर्ज लेकर नया ट्रैक्टर लेने पर मजबूर होना पड़ेगा.
समझने वाली बात ये है कि डीजल में आइसोब्यूटेनॉल की ब्लेंडिंग से केवल किसानों के ट्रैक्टर या आम आदमी की गाड़ियों पर असर नहीं पड़ने वाला, बल्कि डीजल और डीजल इंजन के सहारे पूरे देश की मशीनरी चलती है. समंदर में भारत से माल ले जाने वाले और दूसरे देशों से माल लाने वाले जहाजों में बायोडीजल से मेंटेनेंस और माइलेज की बड़ी दिक्कतें बढ़ेंगी.
पूरे देश में माल ढुलाई के लिए करीब 1 करोड़ ट्रक हैं, ये सभी डीजल पर ही चलते हैं और ये अधिकतर पुराने मॉडल के ही है. साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट में करीब 18 लाख रजिस्टर्ड बसें इस्तेमाल हो रही हैं और ये सभी बसें डीजल पर चलती हैं, जो बहुतायत में पुराने इंजन पर ही आधारित हैं. इसके साथ ही भारतीय रेलवे के पास वर्तमान में अभी करीब 4,543 डीजल इंजन हैं, इन सभी इंजनों का बायोडीजल की वजह से माइलेज घटेगा और रखरखाव का खर्चा बहुत बढ़ जाएगा. साफ है कि इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल से कहीं ज्यादा नुकसान बायोडीजल के होने वाले हैं, जो देश के हर सिस्टम में लगी मशीनरी पर सीधा असर करेगा.
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