बिहार एक ऐसा राज्य है जहां की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर है. इन किसानों में से 85 से 90 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं, जो अब परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक कृषि यंत्रों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं.
राज्य सरकार की ओर से 2008 में शुरू किए गए कृषि रोड मैप के बाद से अब तक किसानों को 28,23,364 कृषि यंत्र सब्सिडी दर पर उपलब्ध कराए गए हैं. इससे न केवल खेती आसान हुई है, बल्कि उत्पादन में भी इजाफा हुआ है.
कृषि विभाग के अनुसार, 2004-05 में जहां फार्म पावर प्रति हेक्टेयर 1 किलोवाट से भी कम था, वह अब बढ़कर 3.56 किलोवाट प्रति हेक्टेयर हो गया है. यह बदलाव दर्शाता है कि किसान अब आधुनिक कृषि उपकरणों के उपयोग को अपनाने लगे हैं.
हालांकि हर किसान कृषि यंत्र खरीदने में सक्षम नहीं होता. इस बात को समझते हुए सरकार ने पंचायत स्तर पर कस्टम हायरिंग सेंटर, फार्म मशीनरी बैंक, और फसल अवशेष प्रबंधन केंद्र लगाए हैं, जहां से किसान किराए पर यंत्र लेकर खेती कर सकते हैं.
इसके अलावा सहकारिता विभाग के तहत पैक्स (PACS) के जरिए भी कृषि यंत्रों की सुविधा किसानों को दी जा रही है.
साल 2025-26 के तहत केंद्र सरकार की SMAM योजना के अंतर्गत बिहार के 12 जिलों — कैमूर, पटना, नवादा, गया, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, लखीसराय, जमुई, बांका, मधेपुरा और किशनगंज — में मॉडल कस्टम हायरिंग सेंटर बनाए जाएंगे. बाकी के 26 जिलों में भी आधुनिक यंत्र किराए पर उपलब्ध होंगे.
पटना के किसान जी. एन. शर्मा का कहना है कि यंत्रों की उपलब्धता से खेती में समय और लागत दोनों की बचत हुई है. लेकिन जब फसल बेचने की बारी आती है, तो बाजार और उचित मूल्य की अनुपलब्धता सब पर पानी फेर देती है. वे कहते हैं, “उपज तो है, पर खरीदार नहीं. सरकार अनुदान देती है, लेकिन व्यापारी मशीनों का दाम बढ़ा देते हैं.”
बिहार में खेती का स्वरूप बदल रहा है. मशीनें किसानों की मेहनत को आसान बना रही हैं, पर बाजार और समर्थन मूल्य जैसी मूलभूत समस्याएं अभी भी जस की तस हैं. अगर इन चुनौतियों का समाधान हो, तो बिहार कृषि के क्षेत्र में एक मिसाल बन सकता है.