सूअर बेचकर लड़ते हैं चुनाव, पंचायत से लेकर लोकसभा तक आजमा चुके हैं किस्मत

सूअर बेचकर लड़ते हैं चुनाव, पंचायत से लेकर लोकसभा तक आजमा चुके हैं किस्मत

छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में एक उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो हर बार अपन सूअर बेचकर चुनाव मैदान में उतरते हैं. इनका नाम है मायाराम नट. वे आजतक किसी भी चुनाव में चार अंकों का आंकड़ा नहीं छू सके हैं, लेकिन चुनाव हर बार लड़ते हैं. नट के पास न तो एक डिसमिल जमीन है और न ही कोई अन्य तरह की संपत्ति. उसके पास केवल चार दर्जन सूअर हैं जिसे बेचकर चुनाव मैदान में उतरते हैं.

चुनाव लड़ने का अजब-गजब जुनून चुनाव लड़ने का अजब-गजब जुनून
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  • Raipur ,
  • Apr 18, 2024,
  • Updated Apr 18, 2024, 8:39 AM IST

छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में एक उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो हर बार अपन सूअर बेचकर चुनाव मैदान में उतरते हैं. इनका नाम है मायाराम नट. वे आजतक किसी भी चुनाव में चार अंकों का आंकड़ा नहीं छू सके हैं, लेकिन चुनाव हर बार लड़ते हैं. नट के पास न तो एक डिसमिल जमीन है और न ही कोई अन्य तरह की संपत्ति. उसके पास केवल चार दर्जन सूअर हैं जिसे बेचकर चुनाव मैदान में उतरते हैं. समाज के लोग कुछ चंदा भी देते हैं. मायाराम नट ने बताया कि उनका लक्ष्य रहता है कि कम से कम दो लाख रुपये की व्यवस्था हो जिससे एक गाड़ी किराए पर लेते हैं और उसमें घूम-घूमकर प्रचार प्रसार करते हैं.  मायाराम नट ने सूअर बेचकर नामांकन पत्र खरीदा. इस बार वो अपनी बहू विजय लक्ष्मी को असंख्य समाज पार्टी से चुनावी मैदान में उतार रहे हैं.  इससे पहले, वो खुद भी पंचायत, जनपद और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 

साल 2001 में शुरू हुआ सिलसिला 

जांजगीर चांपा जिले के महंत गांव के रहने वाले मायाराम नट घुमंतू समाज से हैं. इनकी पिढ़ी बांस के डांग में करतब दिखाती आ रही है जिन्ंहे नट या डगचगहा भी कहते हैं. मायाराम नट को करतब के लिए तो पहचाना ही जाता है. इसके साथ चुनाव लड़ने का भी जुनून है. 2001 से शुरू हुआ चुनाव लड़ने का सिलसिला अभी तक चल रहा है. मायाराम नट ने पामगढ़ विधानसभा एससी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ा था. मायाराम ने बताया कि वे 2001 में पंचायत चुनाव लड़ कर पंच बने और जिला पंचायत सदस्य के पद से चुनाव लड़ना शुरू किया. जिला पंचायत में क्षेत्र क्रमांक 2 से चुनावी मैदान में उतर कर कमला देवी पाटले का प्रतिद्वंदी बनाया था. अब वहीं कमला देवी पाटले दो बार सांसद बन गई हैं.

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नहीं है किसी तरह की संपत्ति 

मायाराम हर विधानसभा, लोकसभा और जिला पंचायत के साथ जनपद चुनाव लड़ते आ रहे हैं. एक बार अपनी बहू विजय लक्ष्‍मी को भी जनपद पंचायत चुनाव में प्रत्याशी बनाया और जीत हासिल हुई. मायाराम भूमिहीन हैं. सूअर पालने का एक मात्र व्यवसाय मायाराम नट को चुनावी रेस में बनाए हुए हैं. उन्होंने बताया कि उसके पास पैसा नहीं है और कोई पुश्‍तैनी संपत्ति है. फिर भी लोकतंत्र के मंदिर में पहुंचने की उम्मीद में चुनावी मैदान में कूद जाते हैं. उनके सामने प्रत्याशी कोई रहे, कितना भी खर्च करे, मायाराम गांव गांव जाकर लोगों को डगचगहा करतब दिखा कर अपना प्रचार करते हैं. लोगों से करतब दिखाने का इनाम भी लेते हैं.

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हर बार बेचते हैं सूअर 

मायाराम हर चुनाव में सूअर बेचते हैं और उस पैसे से चुनाव लड़ते हैं. मायाराम नट ने बताया कि चुनाव के नामांकन फार्म खरीदने के लिए उन्होंने सूअर को बेचा और उससे मिले पैसे से नामांकन फार्म खरीदा और जमा किया. मायाराम के अनुसार उसके पास 100 से अधिक छोटे बड़े सूअर हैं, जिसमें बड़े की कीमत 10 हजार रुपये तक मिल जाती है और छोटे की 3 से 5 हजार रुपये में बिक्री हो जाती है. यही इनकी संपत्ति है जिसको सुख, दुख और चुनाव में बेच कर अपना काम चलाते हैं. 

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क्‍या है हर बार चुनाव लड़ने का मकसद 

उनका मानना है कि लोगों में उनके विचार के प्रति सहानुभूति है और बदलाव चाहते हैं. इसके कारण 15-16 प्रत्याशियों में कई बार उन्हें पांचवा स्थान तक मिला है. मायाराम कहते हैं कि सिर्फ दिखावे या कोई प्रचार पाने के लिए चुनाव नहीं लड़ते बल्कि उनकी भी सोच है. वे किसानों और आम लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं, इसलिए हर बार चुनाव लड़ते हैं. साथ ही उनका जुनून जनसेवा करने का है और पिछड़े वर्ग की तरक्की है. इसके लिए वे पुराने नेताओं से प्रेरणा लेते हैं. 

(दुर्गेश यादव की रिपोर्ट)

 

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