गन्ने का दाम बढ़ तो गया लेकिन यूपी, पंजाब के किसानों को नहीं होगा लाभ, क्यों-जानिए 

गन्ने का दाम बढ़ तो गया लेकिन यूपी, पंजाब के किसानों को नहीं होगा लाभ, क्यों-जानिए 

हाल ही में भारत सरकार ने गन्‍ने के लिए उचित और पारिश्रमिक मूल्य एफआरपी को बढ़ाया है. इसमें अब आठ फीसदी का इजाफा हुआ है जो 25 रुपए प्रति क्विंटल के बराबर है. लेकिन इसका पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा.

गन्‍ने के किसानों के लिए हाल ही में हुआ है बड़ा ऐलान  गन्‍ने के किसानों के लिए हाल ही में हुआ है बड़ा ऐलान
कुमार कुणाल
  • New Delhi ,
  • Feb 23, 2024,
  • Updated Feb 23, 2024, 6:04 PM IST

हाल ही में भारत सरकार ने गन्‍ने के लिए उचित और पारिश्रमिक मूल्य एफआरपी को बढ़ाया है. इसमें अब आठ फीसदी का इजाफा हुआ है जो 25 रुपए प्रति क्विंटल के बराबर है. शुरुआत में यह गन्ना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि इस वृद्धि का पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसका एक कारण यह है कि इन राज्यों में स्टेट एडवाइजरी प्राइस यानी SAP का नियम है जो आमतौर पर एफआरपी से काफी अधिक है. देशभर में लगभग 49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्‍ने की खेती होती है. इसमें अकेले उत्तर प्रदेश का हिस्सा 45 फीसदी से ज्‍यादा है. इस वजह से यह देश का सबसे ज्‍यादा गन्‍ना उत्पादक राज्यों में से एक बनाता है.

क्‍यों नहीं होगा कोई फायदा 

इन किसानों के बड़े योगदान के बावजूद, एफआरपी वृद्धि से उनकी वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होने की संभावना नहीं है क्योंकि वे पहले से ही एसएपी के तहत नई घोषित दर से लगभग 40-60 रुपए प्रति क्विंटल अधिक कमा रहे हैं. पंजाब और हरियाणा राज्य, जो वर्तमान में किसानों के विरोध प्रदर्शन का गवाह बन रहे हैं, केंद्र सरकार द्वारा गन्ना एफआरपी में वृद्धि का स्वागत कर सकते हैं. लेकिन वृद्धि इन राज्यों में किसानों के लिए किसी भी महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ में तब्दील नहीं होगी.  गौरतलब है कि महाराष्‍ट्र, कर्नाटक और बाकी दक्षिण भारतीय समकक्ष राज्य संभावित रूप से इस एफआरपी वृद्धि का लाभ उठा सकते हैं. विशेष रूप से, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश वर्तमान में किसानों के विरोध प्रदर्शन से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से ये राज्‍य संवेदनशील क्षेत्र बन गए हैं. 

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एफआरपी नहीं एसएपी का फायदा 

यह माना जा सकता है कि केंद्र सरकार द्वारा यह एफआरपी वृद्धि प्रदर्शनकारी किसानों को शांत करती है. लेकिन सच्चाई यह है कि किसानों को पहले से ही एसएपी के माध्यम से लगभग 40-60 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिल रहा है. ऐसे में इस बढ़ोतरी से इन राज्यों में गन्ना किसानों के वित्तीय परिदृश्य पर कोई खास असर पड़ने की संभावना नहीं है. तमिलनाडु देश का वह राज्‍य है जहां पर प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक उपज होती है. उसके बाद कर्नाटक और महाराष्‍ट्र का स्थान आता है. इस प्रकार आठ फीसदी एफआरपी बढ़ोतरी से कीमत पिछले वर्ष के 315 रुपए से बढ़कर 340 रुपए प्रति क्विंटल हो जाएगी. इससे महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और बिहार के किसानों को लाभ होगा, जहां कोई अलग एसएपी मौजूद नहीं है. 

किन राज्‍यों के किसान होंगे खुश 

एफआरपी में बढ़ोतरी से सीधे तौर पर महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्यों के किसानों को फायदा होगा, जहां राज्य सरकारों द्वारा अलग से कोई एसएपी घोषित नहीं किया गया है. राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह आगामी चुनावों में भाजपा के पक्ष में हो सकता है क्योंकि वे महाराष्ट्र की चीनी बेल्ट में वोट सुरक्षित करने के लिए उत्सुक हैं.  माना जाता है कि वे प्रमुख विपक्षी नेता शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के साथ गठबंधन कर रहे हैं. अनिवार्य रूप से, इस मूल्य वृद्धि का भाजपा के लिए संभावित रूप से अधिक चुनावी प्रभाव हो सकता है, खासकर महाराष्ट्र की चीनी बेल्ट में, जो अजीत पवार का क्षेत्र है. एफआरपी से अधिक एसएपी शूटिंग के कारण उत्तर प्रदेश में यह रणनीति उतनी प्रभावी साबित नहीं हो सकती है. 

मिल मालिकों पर वित्‍तीय दबाव 

नकारात्मक पक्ष यह है कि एफआरपी वृद्धि से चीनी मिल मालिकों पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव पड़ेगा जो पहले से ही उच्च श्रम और ईंधन लागत से जूझ रहे हैं. इस वर्ष कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्रतिकूल मौसम के कारण फसल में कमी देखी गई.  इससे उपज लगभग 10-30 फीसदी प्रभावित हुई. परिणामस्वरूप, देश में कुल चीनी उत्पादन पिछले साल के 37 मिलियन टन से लगभग 10 फीसदी होने का अनुमान है.  हालांकि घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है, लेकिन सरकार द्वारा लगाए गए चीनी निर्यात प्रतिबंधों ने चीनी मिल मालिकों की परेशानियों को और बढ़ा दिया है. एफआरपी वृद्धि कुछ राज्यों में किसानों को अल्पकालिक राहत प्रदान कर सकती है, लेकिन यह गन्ना उद्योग के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहती है.  

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