उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में जमीन के नीचे का जलस्तर तेजी से गिरने पर लगातार चिंता जताई जा रही हैं. यूपी भूगर्भ जल प्रबंधन एवं नियामक प्राधिकरण ने प्रदेश के तराई एवं पश्चिमी जिलों का भूजल स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंचने की रिपोर्ट दी है. प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार रामपुर जिले का भूजल स्तर खतरे के निशान पर पहुंच गया था. इस वजह से रामपुर को डार्क जोन में शामिल कर लिया गया था. लेकिन, कुछ कारगर उपाय करने के बाद रामपुर जिला डार्क जोन से तो बाहर आ गया. लेकिन, इस बीच पड़ोसी जिले पीलीभीत के डीएम की ताजा रिपोर्ट में पूरे इलाके के भूजल स्तर में गिरावट के लिए साठा धान को दोषी बताया गया. इस रिपोर्ट से सचेत हाेकर हाल ही में डार्क जोन से बाहर आए रामपुर जिला प्रशासन ने जिले को जल संकट से बचाने के लिए साठा धान को उपजाने पर पाबंदी लगा दी.
प्राधिकरण ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पेश रिपोर्ट में इस संकट के कारणों काे उजागर करते हुए बताया है कि राज्य में तराई के जिलों में किसानों द्वारा गर्मी में उपजाई जाने वाली धान की किस्म साठा, धरती का पानी सोख रही है. इसके बाद से ही तमाम जिलों में इस धान की खेती को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है.
धान की साठा किस्म पहले से ही यूपी के दो जिलों में प्रतिबंधित है.असल में इस संकट का सामना कर रहे तराई के लखीमपुर खीरी और शाहजहांपुर जिलों में पहले ही साठा धान की बुवाई को प्रतिबंधित कर दिया गया है. वहीं पीलीभीत जिला प्रशासन भी इस बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है. हाल ही में पीलीभीत के जिलाधिकारी (डीएम) ने अपनी एक रिपोर्ट में एनजीटी को यह बात बताई है.
डीएम ने बताया कि रामपुर को डार्क जोन से बाहर निकालने के लिए इस साल बड़े पैमाने पर जिले में 'जल बचाओ अभियान' चलाया गया. किसानों से लगातार कम पानी वाली फसलें उपजाने की अपील की गई. बारिश का पानी रोकने के लिए जल संग्रहण क्षेत्र बनाए गए और जलाशयों को दुरस्त किया गया. इन उपायों के फलस्वरूप जिला जब डार्क जोन से बाहर आ गया, तब फिर जमीन का बेपनाह पानी सोखने वाले साठा धान पर भी पाबंदी लगाई गई.
एक अनुमान के मुताबिक अकेले रामपुर जिले में हर साल करीब 20 से 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इस धान की खेती की जाती है. मार्च और अप्रैल में 60 दिन के भीतर तैयार की जाने वाली साठा धान पूरी तरह से भूजल पर निर्भर रहती है. क्योंकि उस दौरान बारिश बिल्कुल नहीं होती है. इस धान में 4-5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी पड़ती है. इसलिए इसमें पानी बहुत ज्यादा लगने के साथ ही डीजल पंप से सिंचाई होने के कारण वायु प्रदूषण भी बढ़ता है.
इतना ही नहीं, धान की कटाई कम्बाईन हार्वेस्टर से करने के बाद किसान इस की पराली को जला देते हैं. इससे किसान दोहरा नुकसान कर देते हैं. पहला वायु प्रदूषण बढ़ाने का नुकसान और दूसरा पराली जलाकर, जमीन को उर्वर बनाने वाले सूक्ष्म जीव और जीवाश्म नष्ट कर लेते हैं. इससे किसान अपने खेत की उपजाऊ शक्ति मिटा लेते हैं. इसलिए यह धान हर लिहाज से घाटे का सौदा है. साठा धान को उगाने में जरूरत से ज्यादा लागत होने और दूसरे नुकसानों को किसान नजरंदाज कर, इसकी उपज एवं कीमत अधिक होने के लालच में इसे खूब उगाते हैं.
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