Pulses Import: कृष‍ि और क‍िसानों के ल‍िए 'दलदल' बन जाएगी दालों की आयात नीत‍ि, सरकार को बड़ी चेतावनी 

Pulses Import: कृष‍ि और क‍िसानों के ल‍िए 'दलदल' बन जाएगी दालों की आयात नीत‍ि, सरकार को बड़ी चेतावनी 

किसान कड़ी मेहनत करते हैं और फसल उगाते हैं, लेकिन बाजार विदेशों से आयातित सस्ते दलहन से भरा पड़ा है. नतीजा किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. ऐसे में दलहन फसलों की खेती करने में क‍िसान क्यों द‍िलचस्पी द‍िखाएंगे? द ग्रेन, राइस एंड ऑयलसीड्स मर्चेंट्स एसोस‍िएशन (GROMA) ने इस ट्रेंड को भारत के ल‍िए खतरनाक बताया है. 

भारत में क्यों बढ़ रहा है दलहन संकट? भारत में क्यों बढ़ रहा है दलहन संकट?
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jun 20, 2025,
  • Updated Jun 20, 2025, 5:48 PM IST

दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक होने के बावजूद भारत‍ क्यों बड़े पैमाने पर दाल आयात करने पर मजबूर हैं? ऐसा क्यों है क‍ि बढ़ती आबादी की दालों की जरूरत को हमारे क‍िसान पूरा नहीं कर पा रहे हैं? कहीं, सरकारी नीत‍ियों की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा है? द ग्रेन, राइस एंड ऑयलसीड्स मर्चेंट्स एसोस‍िएशन (GROMA) ने कहा है क‍ि वर्तमान में सरकार चना, अरहर, उड़द आदि का भारी मात्रा में आयात कर रही है, ज‍िसकी वजह से भारतीय क‍िसान इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं. सही दाम न म‍िलने की वजह से किसान दालों की खेती में रुचि नहीं ले रहे हैं. क‍िसानों में इस बात का व‍िश्वास नहीं है क‍ि उन्हें उच‍ित दाम म‍िलेगा. जब सही कीमत म‍िलने का यकीन होगा तभी दालों का उत्पादन बढ़ेगा. एसोस‍िएशन ने इसी तर्क के साथ केंद्रीय कृष‍ि मंत्री श‍िवराज स‍िंह चौहान को एक पत्र ल‍िखा है. ज‍िसमें कहा गया है क‍ि आयात वाली नीत‍ियों की वजह से भारतीय कृष‍ि क्षेत्र पर बड़ा खतरा है. 

ग्रोमा के प्रेसीडेंट भीमजी एस. भानुशाली ने 'क‍िसान तक' को उस पत्र की कॉपी दी, ज‍िसे उन्होंने मंत्री को ल‍िखा है. इसमें भारत को दालों के मामले में आत्मन‍िर्भर न बनने की वजह सरकार की आयात नीत‍ि को बताया गया है. बहरहाल, पत्र में ल‍िखा गया है क‍ि साल 2024-25 के बजट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच वर्षों के भीतर भारत को दालों, विशेषकर अरहर, उड़द, मसूर और चना के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की नीति के बारे में बात की थी. लेकिन, विदेशों से आयातित सस्ती दालों के कारण ऐसा कर पाना संभव नहीं द‍िख रहा है. यदि वर्तमान स्थिति जारी रही तो सस्ते आयात के कारण भारत का घरेलू दाल व्यापार समाप्त हो जाएगा. यही नहीं भारत आत्मनिर्भर होने की बजाय 100 फीसदी आयात पर निर्भर हो जाएगा.

उत्पादन घटा, आयात बढ़ा 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की र‍िपोर्ट ग्रोमा की आशंका पर मुहर लगाती द‍िख रही है. साल 2021-22 में भारत में दलहन फसलों का उत्पादन 273 लाख मीट्र‍िक टन तक पहुंच गया था, जो अब 2024-25 में घटकर 252 लाख मीट्रिक टन रह गया है, जबक‍ि मांग बढ़ गई है. नतीजा यह है क‍ि 2021-22 में दालों का जो आयात महज 15 हजार करोड़ रुपये का था वो अब 2024-25 में बढ़कर 46 हजार करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है. हम अपने देश के क‍िसानों को दलहन फसलों का एमएसपी तक नहीं दे पा रहे हैं और दूसरे देशों से हजारों करोड़ रुपये में आयात कर रहे हैं. यह स‍िलस‍िला आख‍िर कहां रुकेगा?  

खाद्य सुरक्षा के ल‍िए खतरनाक

भानुशाली ने कहा क‍ि विदेशी कंपन‍ियों की पॉल‍िसी भारत में शुल्क मुक्त माल भेजकर भारतीय कृषि को नष्ट करना है. इसल‍िए सरकार को इस मामले पर विशेष ध्यान देना चाहिए और ऐसी व्यवस्था करनी चाह‍िए क‍ि कोई भी आयात‍ित कृष‍ि उपज एमएसपी से कम कीमत पर न ब‍िके. ऐसी व्यवस्था होगा तब क‍िसानों को घाटा नहीं होगा और वे खेती नहीं छोड़ेंगे. 

संगठन ने कहा क‍ि दालों और कृषि वस्तुओं के सस्ते आयात से घरेलू बाजार में कीमतें एमएसपी से काफी नीचे पहुंच गई हैं. इससे एक ओर जहां किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, वहीं दूसरी ओर व्यापारियों के लिए एमएसपी पर स्टॉक खरीदना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया है. यह स्थिति 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक बड़ी बाधा बन रही है. इस असंतुलन की वजह से कृषि और व्यापार बाधा पैदा हो रही है, जो भव‍िष्य के दृष्टिकोण से देश की खाद्य सुरक्षा और व्यापारिक स्थिरता के लिए खतरनाक साब‍ित हो सकते हैं.

सरकार से तीखे सवाल 

भानुशाली ने कहा क‍ि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, लेकिन हकीकत में यह आधी भी नहीं है. तो फिर किसान आत्मनिर्भर कैसे बनेगा? किसान कड़ी मेहनत करते हैं और फसल उगाते हैं, लेकिन बाजार विदेशों से आयातित सस्ते दलहन, तिलहन से भरा पड़ा है. नतीजा किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पाता. एक तरफ आत्मनिर्भर भारत की बात हो रही है. दूसरी ओर दालों का सस्ता आयात हो रहा है. क्या सरकार किसानों की है या आयात करने वाले व्यापारियों की? अब सरकार से प्रश्न पूछने का समय है. कृष‍ि उपज के दाम पर सरकार को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाह‍िए. 

सरकार को सलाह 

एसोस‍िएशन ने कहा है क‍ि सोयाबीन, उड़द, चना, मटर, अरहर, मसूर, मक्का और धान सह‍ित कई फसलें इस समय खराब हालत में हैं. किसानों को आत्मनिर्भर बनाना होगा, लेकिन क्या आयात जारी रखकर ऐसा संभव हो सकता है? केंद्र सरकार द्वारा खा‌द्यान्न का मुफ्त वितरण बंद किया जाना चाहिए और DBT के माध्यम से नकद सब्सिडी दी जानी चाहिए. इससे बाजार में अनाज के व्यापार में फर्क पड़ेगा और गरीब लोग अपनी इच्छानुसार अनाज खरीद सकेंगे.

इसके साथ ही अब सरकार को अपनी आयात और निर्यात नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कदम होगा. सस्ते खाद्य अनाज के आयात को तत्काल रोकने या सीमित करने हेतु प्रभावी कदम उठाए जाएं, या ऐसे आयातों पर सुरक्षा शुल्क (Safeguard Duty) लागू की जाए, जिससे भारतीय किसानों एवं व्यापारियों के हित सुरक्षित रह सकें. अगर अनाज आयात करने की भी जरूरत पड़े तो ध्यान रखा जाए क‍ि उसकी कीमत एमएसपी से नीचे न हो.  

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