Sugarcane Part-5: उत्तर भारत के गन्ना किसानों को क्यों मिलता है कम लाभ? जानिए नई टेक्नोलॉजी कैसे भरेगी ये कमी

Sugarcane Part-5: उत्तर भारत के गन्ना किसानों को क्यों मिलता है कम लाभ? जानिए नई टेक्नोलॉजी कैसे भरेगी ये कमी

उत्तर भारत के राज्य प्रति एकड़ उत्पादन के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों से काफी पीछे हैं. तमिलनाडु और महाराष्ट्र के किसान 35 से 40 टन प्रति एकड़ उत्पादन ले रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, उतराखंड और पंजाब के किसान प्रति एकड़ 25 से 30 टन का ही उत्पादन ही ले पाते हैं. नई तकनीक से इस अंतर को कम किया जा सकता है.

बड चिप तकनीक से गन्ने की खेती में लागत कम और पैदावार ज्यादाबड चिप तकनीक से गन्ने की खेती में लागत कम और पैदावार ज्यादा
जेपी स‍िंह
  • NEW DELHI,
  • Jul 17, 2023,
  • Updated Jul 17, 2023, 6:43 PM IST

गन्ना गाथा : गन्ने की फसल के लिहाज से अगर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना (Sugarcane) उत्पादक राज्य है. देश के कुल गन्ना क्षेत्रफल का 51 फीसदी और उत्पादन का 50 फीसदी के अलावा चीनी उत्पादन (Sugar Production) का 38 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में ही होता है. यूपी (Uttar Pradesh) में लगभग 48 लाख गन्ना किसान हैं, मगर प्रति एकड़ उत्पादन के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों से यूपी के किसान काफी पीछे हैं. तमिलनाडु और महाराष्ट्र के किसान 35 से 40 टन प्रति एकड़ उत्पादन ले रहे हैं. जबकि उत्तर प्रदेश सहित बिहार, हरियाणा, उतराखंड और पंजाब राज्य के किसान प्रति एकड़ 25 से 30 टन का ही उत्पादन ले पाते हैं. नतीजन उत्तर भारत के किसानों को गन्ना की खेती से कम लाभ मिलता हैं. आज के गन्ना गाथा में जानेंगे कि नई टेक्नोलॉजी कैसे इसकी भरपाई कर सकती है.

गन्ने की कम उपज का मुख्य कारण

उत्तर भारत के राज्यों में प्रति एकड़ गन्ना उत्पादन कम क्यों है, इस पर गौर करने पर पाया गया कि उत्तर भारत के राज्यों में गन्ने की सबसे अधिक बुआई बसंत काल में होती है. फरवरी और मार्च का महीना गन्ने की बुआई के लिए बेहद अनुकूल होता है. इस समय बोई गई गन्ने की फसल से अच्छी पैदावार मिलती है. लेकिन अधिकतर किसान गन्ने की बुवाई फरवरी-मार्च की जगह आलू, सरसों और गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल और मई के महीनों में करते हैं. यानी दो महीने की देरी से बुवाई करते हैं. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ (IISR) के सदस्य और विज्ञान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिव नारायन सिंह ने बताया कि इसकी वजह से गन्ना के बढ़वार और विकास के लिए 7- 8 महीने की जगह 5- 6 महीने का ही समय मिल पाता है. क्योंकि अक्टूबर महीने से तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है, जिसके कारण गन्ना के गुल्लियों का कम निर्माण और विकास होता है. नतीजतन गन्ने की पैदावार में 30 से 35 फीसदी की गिरावट हो जाती है.

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बड चिप तकनीक से गन्ने की खेती में लागत करें कम 

डॉ सिंह ने किसान तक से कहा कि इसमें किसान गन्ने की तीन आंख या दो आंख के गुल्लियों के बीज बोते हैं. एक एकड़ खेत के लिए 25 से 30 कुन्तल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है. ज्यादा मेहनत भी करनी पड़ती है. इससे निजात पाने के लिए नई तकनीक सस्टेनेबल शुगरकेन इनोवेटिव (sustainable sugarcane innovative) यानि बड चिप तकनीक से गन्ना की खेती करते हैं. इससे गन्ना की देर से बुवाई वाली समस्या भी दूर हो जाएगी और लागत खर्च बचेगा. साथ में ज्यादा गन्ना की उपज मिलेगी. नतीजतन किसानों को गन्ने की खेती से ज्यादा फायदा मिलेगा. बड चिप विधि में एक एकड़ खेत में 80 से 100 किलो गन्ना बीज की जरुरत होती. इससे जाहिर होता है कि किसानों को गन्ने के बीज पर आने वाले खर्च में 99 फीसदी की बचत होती है. इससे गन्ने के बीज पर होने वाले खर्च में  प्रति एकड़ 8 से 10 हजार रुपये तक की बचत होती है. 

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बड चिप तकनीक से समय से बुवाई और बेहतर उपज

गन्ने की बुवाई के लिए अधिकतर किसान रबी फसलों और खरीफ फसलों की कटाई का इंतजार करते हैं. नतीजन फरवरी की मार्च जगह अप्रैल-मई में गन्ना की देरी से बुवाई करते हैं. शरद कालीन फसल में भी देरी हो जाती है. इसकी जगह किसान छोटी सी जगह में जनवरी-फरवरी में बड चिप टेक्नीक से शेड नेट में गन्ने की नर्सरी पौध लगाते हैं. इससे जब तक रबी की फसलें और खरीफ फसलें कटाई के लिए जब तक तैयार होती हैं, तब तक नर्सरी में  गन्ना पौध 45 से 60 दिन में एक फुट के तैयार हो जाते हैं. इस नर्सरी पौध को रबी फसलों की कटाई के बाद मुख्य खेत में रोपाई कर देते हैं. इससे समय से बुवाई के कारण गन्ना की उपज में बढ़ोतरी होती है. इससे किसान गन्ना की देरी से बुवाई से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं. 

बड चिप तकनीक से पौधे कैसे तैयार करें

कृषि वैज्ञानिक डॉ सिहं के अनुसार बड चिप टेक्नीक में सबसे पहले बड चिप मशीन से गन्ने का बड यानी आंख निकालते हैं. इसके बाद बड को उपचारित कर प्लास्टिक ट्रे के बने खानों में रखते हैं. ट्रे के खानों को वर्मी कम्पोस्ट या कोकोपिट से भरते हैं. अगर किसान के पास वर्मी कम्पोस्ट और कोकोपिट उपलब्ध नही हैं, तो सड़ी हुई पत्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. ट्रे में बड की बुवाई करने के बाद फब्बारे से समय समय पर हल्की सिंचाई करते हैं. जब गन्ना नर्सरी की पौध चार से पांच सप्ताह की हो जाती है. डॉ शिवनरायन सिंह के अनुसार ट्रे से नर्सरी पौध को सावधानी पूर्वक निकाल कर मुख्य खेत में निश्चित दूरी पर पौध का रोपण किया जाता है. इस तकनीक में किसान गन्ने के बीच में अन्तरासस्य फसलें जैसे दलहनी, तिलहनी, सब्जी और नगदी फसलें आसानी से उगाकर अतिरक्त लाभ भी ले सकते हैं.

उत्तर प्रदेश गन्ना विकास विभाग बड चिप तकनीक को दे रहा है बढ़ावा

उत्तर प्रदेश, गन्ना विकास विभाग, यूपी के 36 गन्ना बहुल जिलों में स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं. इन समूहों द्वारा बड चिप तकनीक का उपयोग करके गन्ने की नर्सरी पौध तैयार की जाती है. इस क्षेत्र के किसान इन समूहों से गन्ना की नर्सरी पौध खरीदते हैं और उन्हें अपने खेतों में लगाते हैं. क्योंकि इससे गन्ना किसानों को लागत बचाने और गेहूं और धान की कटाई के बाद सीधे खेत में गन्ना बोने से बेहतर उपज प्राप्त करने में मदद मिलती है.

 

 

 

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