जून महीने की शुरुआत के साथ ही किसानों ने खरीफ फसलों की बुवाई के लिए खेत तैयार करना शुरू कर दिया है. वहीं, कई किसानों ने खेतों में धान, मक्का, तिलहन जैसी फसलों की बुवाई शुरू कर दी है. लेकिन इन फसलों से अलग हटकर सब्जियों की खेती किसानों को कम समय में ज्यादा मुनाफा दे सकती है. इसलिए आज हम आपको जून महीने में लगाई जाने वाली 3 सब्जियों की खेती से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं, जिनकी बारिश के दौरान और बारिश के बाद भी अच्छी मांग बनी रहती है.
जून महीने में लौकी की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है. बारिश के सीजन में लोग लौकी की सब्जी के अलावा इसके भजिये, कोफ्ते, कीस और हलवा, रायता आदि बनाना-खाना पसंद करते हैं. वहीं, बीमारियों के दौरान भी इसका सेवन फायदेमंद होता है.
किसान जून महीने में लौकी की अर्का नूतन, अर्का श्रेयस, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश, अर्का गंगा, अर्का बहार किस्मों की खेती कर सकते हैं. लौकी की फसल दो महीने से भी कम समय यानी 50 से 55 दिनों में उपज देना शुरू कर देती है और इससे प्रति हेक्टेयर औसत 32 से 58 टन उत्पादन हासिल किया जा सकता है.
जून महीने में करेले की खेती भी किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है और वे अच्छा मुनाफा कमा सकते है. यह फसल भी 55 से 60 दिनों में उपज देने के लिए तैयार हो जाती है. साथ ही बाजार मांग अच्छी बनी रहती है, क्योंकि यह अपने अलग स्वाद और सेहत के लिए अच्छा होता है. यह खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी अच्छा माना जाता है.
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किसान जून में करेले की हाइब्रिड और उन्नत किस्मों की बुवाई करके ज्यादा उत्पादन हासिल कर सकते हैं. किसान इसकी पूसा हाइब्रिड-1 और पूसा हाइब्रिड-2 किस्मों से ज्यादा पैदावार हासिल कर सकते हैं और ये किस्में 55 से 60 दिनों में उपज देने लगती हैं. वहीं, इनसे 70-80 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार हासिल की जा सकती है.
आयरन, पोटेशियम और कुछ विटामिन से भरपूर गिलकी की जून में खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है. बरसात और इसके अगल कुछ महीनों में बाजार में इसकी खूब मांग रहती है और आम तौर पर इसकी कीमत कई अन्य सब्यिजों के मुकाबले ज्यादा ही रहती है. किसान जायद और खरीफ दोनों सीजन में इसकी खेती कर सकते हैं. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे गिलकी की खेती के लिए क्षेत्र के हिसाब से ही किस्म का चयन करना चाहिए.
वैसे तो गिलकी की खेती जीवांशयुक्त सभी प्रकार की मिट्टियों में संभव है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है. वहीं, खेत में जल निकासी और मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच मेंटेन करना बेहद जरूरी है. इसकी आलोक और वाणी किस्में काफी प्रसिद्ध हैं, लेकिन क्षेत्र के हिसाब से किस्मों का चयन ही फायदेमंद होगा.