आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में इस साल हल्दी का उत्पादन काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद है. इससे किसानों की बीच खुशी की लहर है. किसानों को उम्मीद है कि बंपर पैदावार होने से उन्हें अच्छी कमाई होगी. हालांकि, हाल के वर्षों में हल्दी के रकबे में बहुत गिरावट आई है. क्योंकि उचित कीमत नहीं मिलने की वजह से किसान हल्दी की खेती से दूरी बना रहे हैं. ऐसे में हल्दी के प्रोडक्शन में बंपर पैदावार की उम्मीद किसी खुशखबरी से कम नहीं है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे गुंटूर आंध्र प्रदेश का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक जिला है. यही वजह है कि गुंटूर दुग्गीराला में सबसे बड़ा हल्दी बाजार है. पूर्ववर्ती गुंटूर जिले में 4348 एकड़ में हल्दी उगाई जाती है. गुंटूर में 1881 एकड़, बापटला में 1,645 एकड़ और पालनाडु में 820 एकड़ में हल्दी का रकबा है. हालांकि, हल्दी जिले की एक व्यावसायिक फसल है.
मुख्य रूप से यह ताड़ेपल्ली, मंगलगिरी, कोलीपारा, दुग्गीराला, तेनाली, मेडिकोंडुरु, वेमुरु, कोल्लुरु, भट्टीप्रोलू, अमृतलुरु, चुंडुरु, रेपल्ले और बापटला के द्वीप गांवों के साथ-साथ सत्तेनापल्ले, मुप्पल्ला, राजुपालम, पिदुगुराल्ला, अचम्पेट, अमरावती और पालनाडु जिले के अन्य मंडलों में उगाई जाती है. हालांकि, इस साल मार्केट में हल्दी का रेट अच्छा है, जो 15,000 रुपये से 19,000 रुपये प्रति क्विंटल तक रही.
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विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों में यह तेज उछाल खेती में कमी और विदेशी मांग में वृद्धि के कारण है. नतीजतन, अब अधिक किसान हल्दी की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. गुंटूर जिले के एक किसान जी बसवरेड्डी ने कहा कि 2010 के बाद से, हल्दी की कीमतें इस साल से बेहतर कभी नहीं रहीं. चूंकि कीमतें अच्छी हैं, इसलिए मैंने इस खरीफ सीजन में हल्दी की खेती करने का फैसला किया. अगर स्थिति यही बनी रहती है, तो हमें अगले सीजन में अच्छा लाभ मिलने की उम्मीद है.
हल्दी में बढ़ती रुचि के साथ, हल्दी के बीजों की मांग में भी उछाल आया है. एक हेक्टेयर हल्दी की रोपाई के लिए 2,500 किलोग्राम प्रकंदों की आवश्यकता होती है. इन प्रकंदों की गुणवत्ता फसल की पैदावार के लिए महत्वपूर्ण है. इन प्रकंदों को 30 मिनट के लिए 0.3 फीसदी मैन्कोजेब से उपचारित किया जाता है. तीन से चार घंटे तक छाया में सुखाया जाता है और फिर रोपा जाता है. इन बीजों की कीमत 5,000-6,000 रुपये से बढ़कर 10,000 रुपये से अधिक हो गई है. बीज की अधिक लागत के बावजूद, किसान आशावादी हैं और जुलाई के अंत तक बुवाई शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं.
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