तोरिया या सरसों, किसान किस तिलहन फसल की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं? यह सवाल इसलिए जरूरी है क्योंकि कम दिनों में कौन सी फसल अधिक मुनाफा देगी, उसकी खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए. तोरिया भी इसी तरह की एक तिलहन फसल है. सरसों और तोरिया में बड़ा अंतर ये है कि सरसों जहां 140 दिन तक पकने का समय लेती है, वहीं तोरिया 90 दिनों में तैयार हो जाती है. यही कारण है कि किसानों को तोरिया की फसल उगाने की सलाह दी जाती है.
तोरिया रबी मौसम में उगाई जाने वाली तिलहन फसल है जिसे ज्वार, बाजरा या सब्जी के खेत खाली होने के बाद लगा सकते हैं. जो खेत खाली हो जाएं, उन खेतों में नई तकनीक का इस्तेमाल कर तोरिया की खेती की जा सकती है. इसकी उन्नत किस्मों की बात करें तो संगम किस्म 112 दिनों में तैयार हो जाती है जो 6-7 क्विंटल तक उपज देती है. तोरिया की कुछ किस्में ऐसी भी हैं जो 85-90 दिनों में तैयार हो जाती हैं. इनमें टीएल-15 और टीएच-68 किस्में हैं. वैसे अभी तोरिया की बुवाई का समय बीत गया है क्योंकि सितंबर अंत तक इसे बोते हैं. उसके बाद खेत खाली होते ही उसमें गेहूं की बुवाई कर देते हैं.
तोरिया से अगर अधिक उपज लेनी है तो उसके बीज को एजोटोबैक्टर से जरूर उपचारित करना चाहिए. तोरिया की बुवाई अगर सिंचित क्षेत्र में कर रहे हैं तो बीज प्रति एकड़ सवा किलो तक डालना चाहिए. बारानी क्षेत्र में दो किलो तक बीज की मात्रा लगती है. बिजाई के समय तोरिया के खेत में 50 किलो सुपर फास्फेट और 25 किलो यूरिया और 10 किलो तक जिंक डालें. इसके बाद पहली बार सिंचाई करने के बाद 25 किलो यूरिया प्रति एकड़ दें. अगर तोरिया में सुपर फास्फेट की बजाय 18 किलो डीएपी देना चाहते हैं तो दो बोरी जिप्सम को आखिरी जुताई के समय डालें.
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तोरिया में अगेती सिंचाई करने की सलाह नहीं दी जाती है. सिंचाई हमेशा फूल और फलियां बनने के समय करनी चाहिए. अच्छी फसल पाने के लिए बीज को 2 ग्राम कार्बेंडेजिम प्रति किलो की दर से उपचारित करने की सलाह दी जाती है. तोरिया पर मरोडिया रोग का प्रकोप होता है, इसलिए इस रोग से ग्रसित पौधों को समय-समय पर हटाते रहना चाहिए. इस फसल में चेंपा कीट नहीं लगते हैं. अगर अन्य कीट लग जाएं तो उनकी रोकथाम के लिए 200 मिली मैलाथियान 50 ईसी 200 लीट पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें. ध्यान रखें कि फलियां पकने पर ही उसकी कटाई करें. कच्ची फसल की कटाई करने पर उसके चिपकने का खतरा रहता है.
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तोरिया की फसल को सरसों से अच्छा मानते हैं क्योंकि इसमें जहां 44 प्रतिशत तेल होता है, वहीं राया सरसों में 40 परसेंट ही तेल निकलता है. इससे किसान अधिक कमाई कर सकते हैं. बड़ा फायदा ये भी है कि तोरिया की कटनी करने के बाद किसान उसी खेत में गेहूं की बोवनी कर सकते हैं.