जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह तक के समय को तिल की अधिक उपज के लिए उपयुक्त पाया गया है. अधिक उपज लेने और निराई-गुड़ाई में आसानी के लिए तिल को पंक्तियों में बोना चाहिए. आईसीएआर, पूसा ने अपनी फसल एडवाइजरी में बताया है कि पंक्तियों के बीच का फासला 30-45 सें.मी. का रखें. वांछित पौध संख्या प्राप्त करने के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. बीज/हैक्टर प्रयोग करें. बुआई के 15 से 20 दिनों बाद पौधों की छंटाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सें.मी. रखें.
तिल की उन्नत प्रजातियों की बात करें तो फसल की अधिक उपज लेने के लिए गुजरात तिल नं-1, गुजरात तिल नं-2, फुले तिल नं-1, प्रताप, ताप्ती, पदमा, एन.-8, डी. एम. 1, पूरवा 1, आर.टी. 54, आर.टी. 103, आर.टी. 54, आर.टी. 103 आदि उन्नत किस्में हैं. किसान इन किस्मों की खेती कर अच्छी उपज पा सकते हैं.
पूसा की ओर से जारी एडवाइजरी के मुताबिक, मिट्टी की जांच संभव न होने की अवस्था में सिंचित क्षत्रों में 40-50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20-30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटाश/हेक्टेयर देनी चाहिए. वर्षा आधारित फसल में 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 15 से 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस/हेक्टेयर करें.
मुख्य तत्वों के अतिरिक्त 10 से 20 कि.ग्रा./हेक्टेयर गंधक का उपयोग करने से तिल की उपज में वृद्धि की जा सकती है, जहां जिंक की कमी हो, वहां पर दो वर्ष में एक बार 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट/हेक्टेयर प्रयोग करें. लंबे समय के लिए सूखा पड़ने की अवस्था में खड़ी फसल में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें.
BAU, सबौर के मुताबिक, व्यवसायिक और बड़े क्षेत्र में तिल की खेती के लिए खाद और उर्वरक का प्रयोग मिट्टी जांच के आधार पर करें. भूमि कम उपजाऊ हो तो, फसल के अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई से पूर्व 250 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग लाभकारी होता है. बुवाई के समय फॉस्फोरस विलेय बैक्टीरिया (पीएसबी) और एजोटोबैक्टर 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लाभकारी होता है. तिल बुआई के पूर्व 250 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग लाभदायक होता है. तिल की भरपूर पैदावार के लिए वैज्ञानिक द्वारा सुझाई गई और संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग जरूरी है. मिट्टी की जांच संभव न होने की अवस्था में सिंचित क्षेत्रों में 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए, लेकिन वर्षा आधारित फसल में 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन और 15-20 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.
यदि खरपतवार समय पर प्रबंधन नहीं किया गया तो पैदावार में भारी गिरावट आती है. खरपतवार की रोकथाम के लिए बुआई के 3-4 सप्ताह बाद निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकालें. जहां पर प्रीएमरजेंस दवा के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं वहां पर पेंडीमेथिलीन 30 प्रतिशत ईसी का 1.0 लीटर का सक्रिय मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर फसल बुबाई के तुरंत बाद या 48 घंटे के अंदर करें.