उत्तर के मैदानी क्षेत्रों के लिए बेहतर हैं सोयाबीन की ये किस्में, जान लें इसकी खेती की A-Z जानकारी

उत्तर के मैदानी क्षेत्रों के लिए बेहतर हैं सोयाबीन की ये किस्में, जान लें इसकी खेती की A-Z जानकारी

सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से खरीफ सीजन में होती है. इसकी बुवाई उत्तरी मैदानी और मध्य क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक, दक्षिणी क्षेत्रों में मध्य जून से जुलाई अंत तक, और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि उत्तर के मैदानी क्षेत्रों के लिए सोयाबीन की बेहतर किस्में कौन सी हैं.

सोयाबीन की किस्मेंसोयाबीन की किस्में
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Jul 05, 2024,
  • Updated Jul 05, 2024, 7:25 PM IST

मॉनसून आते ही जायद फसलों की खेती के बाद किसान खरीफ फसलों की खेती की तैयारी में जुट गए हैं ताकि अच्छी उपज हासिल की जा सके. ऐसे में आज हम बात करेंगे खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसल सोयाबीन की. इसकी खेती में सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसकी सही किस्मों का चयन करना होता है. खरीफ सीजन के ठीक पहले किसान इस समय असमंजस में हैं क्योंकि मार्केट में सोयाबीन की कई वैरायटी आ चुकी हैं. ऐसे में किसान यह फैसला नहीं कर पाते हैं कि कौन सी वैरायटी अच्छी है या कौन सी वैरायटी समय, परिस्थिति, मौसम और भूमि के अनुसार अच्छा उत्पादन देगी. तो आइए हम बताते हैं सोयाबीन की उत्तर के मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली किस्में कौन सी हैं. साथ ही जान लें इसकी खेती की A-Z जानकारी.

उत्तर मैदानी क्षेत्रों के लिए बेहतर किस्में

उत्तर मैदानी क्षेत्रों में बोई जाने वाली सोयाबीन की उन्नत किस्मों की बात करें तो इसमें, पूसा सोयाबीन 14, पूसा सोयाबीन 12, पूसा 9712, पूसा 9814, पूसा 16, पीके 416, पीएस 564, पीएस 1024 शामिल हैं. इसके अलावा मध्य भारत क्षेत्रों के लिए एनआरसी 7, एआरसी 37, जेएस 335, जेएस 93-05, जेएस 95-60, जेएस 20-34, जेएस 80-21, एमएयूएस 81 किस्में बेस्ट होती हैं. साथ ही उत्तर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए शिलाजीत, पूसा 16, वीएलसोया 2, वीएलसोया 47, हरा सोया, पालम सोया, पंजाब, पीएस 1241, पीएस 1092, पीएस, 1347 किस्में शामिल हैं.

ये भी पढ़ें:- एक ही खेत में लगाएं ज्वार, मक्का, बाजरा, लोबिया और ग्वार...पशुओं के लिए कभी कम नहीं पड़ेगा चारा

कब-कैसे करें सोयाबीन की बुवाई

सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से खरीफ में होती है. इसकी बुवाई उत्तरी मैदानी और मध्य क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक, दक्षिणी क्षेत्रों में मध्य जून से जुलाई अंत तक, और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक की जाती है. खेती के लिए उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. इसकी खेती के लिए भूमि की तैयारी करते समय मिट्टी में जैविक कार्बनिक पदार्थों को ज्यादा से ज्यादा मिलाना चाहिए. साथ ही खेत तैयार करते समय 2 बार हैरो या मिट्टी पलट हल से जुताई करने के बाद देसी हल से जुताई कर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. इसके बाद सिंचाई करते समय 1000 लीटर 'पतंजलि संजीवक खाद' प्रति एकड़ की दर से डाल लेनी चाहिए. इसके बाद ही बीजों की बुवाई करनी चाहिए.

खेती के लिए जरूरी हैं इतने बीज

सोयाबीन की सफल खेती के लिए बीजों की उपयुक्त मात्रा होनी चाहिए. यदि बीज के जमने की क्षमता कम है, तो बीजों की मात्रा उसी दर से बढ़ा देनी चाहिए. बुवाई के लिए मोटा दाना 80-85 किलो, मध्यम दाना 70-75 किलो और छोटा दाना 60-65 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. वहीं, सोयाबीन की बुवाई पंक्तियों में 45×5 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए. साथ ही बुवाई से पहले बीजों को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.

खेती के लिए करें इन खादों का इस्तेमाल

सोयाबीन से अच्छा उत्पादन लेने के लिए लगभग 5-10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद बुवाई से लगभग 20-25 दिनों पहले खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए. यदि मिट्टी का परीक्षण नहीं करवाया गया है, तो उन्नत प्रजातियों के लिए 20-25 किलो नाइट्रोजन, 60-80 किलो फास्फोरस, 40-50 किलो पोटाश और 20-25 किलो गंधक मिट्टी में मिला देना चाहिए. खरपतवार की दोबारा वृद्धि को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30 और 45 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए.

MORE NEWS

Read more!