तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में अधिक गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. इससे आम जनता के साथ-साथ पशुओं की भी परेशानी बढ़ गई है. कहा जा रहा है कि अधिक गर्मी पड़ने की वजह से जिले में हजारों हेक्टेयर चारागाह भूमि सूख गई. यानी इन चारागाहों में पशुओं को चरने के लिए बिल्कुल खास नही हैं. सारी घास लू की वजह से झूलस कर सूख गई है. इससे सबसे ज्यादा परेशानी छोटे डेयरी किसानों को हो रही है, क्योंकि हरी-हरी घास नहीं मिलने की वजह से पशुओं ने दूध देना कम कर दिया है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पल्लादम के एक किसान एस सरस्वती ने कहा कि मेरे पास सिर्फ तीन गायें हैं. मैं अपनी गायों को चरागाहों में घास चरा कर ही पालता हूं. लेकिन चिलचिलाती गर्मी ने कई किलोमीटर तक चरागाहों की सारी घासें सुखा दी हैं. ऐसे में चारागाहों के सूख जाने से मेरे सामने गायों के पेट भरने के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. एस सरस्वती ने कहा कि पहले एक गाय प्रतिदिन पांच से छह लीटर दूध देती थी. लेकिन अब यह घटकर चार लीटर रह गई है.
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तमिलनाडु मिल्क प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (तिरुप्पुर) के अध्यक्ष एस के कोलनथाइसामी ने टीएनआईई को बताया कि गर्मी ने न केवल पल्लदम में सभी चारागाहों को सुखा दिया है, बल्कि उथुकुली, कांगेयम, धारापुरम और पोंगलुर में भी भूमि सूख गई है. छोटे किसान जिनके पास केवल दो या तीन गायें हैं, वे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, क्योंकि वे पूरी तरह से अपने गांव के आसपास की चारागाह भूमि पर निर्भर हैं. चूंकि कुछ पशुपालक और दूध उत्पादक किसान आर्थिक रूप से मजबूत पृष्ठभूमि से नहीं हैं, इसलिए वे पूरी तरह से ऐसी जमीनों पर निर्भर हैं.
राजस्व विभाग (तिरुपुर) के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि ग्राम प्रशासनिक अधिकारी (वीएओ) के नेतृत्व में राजस्व अधिकारी उन भूमियों का मूल्यांकन या माप नहीं करते हैं जिन्हें चरागाह या पट्टा भूमि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जो गांव में समाप्त हो जाती हैं. हमें पट्टा भूमि में बोए गए फसल क्षेत्र और उपज को मापने के लिए आवंटित किया गया है. हालांकि, पिछले कई हफ्तों से, हमने देखा है कि कई हजार हेक्टेयर चारागाह भूमि और घास के मैदान सूख गए हैं.
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तिरुप्पुर डिवीजन की महाप्रबंधक के सुजाता ने कहा कि गर्मी ने सभी जानवरों और पक्षियों को प्रभावित किया है. चूंकि बढ़ता तापमान गायों के लिए असहनीय है और हरी और चारागाह भूमि की अनुपलब्धता के कारण, हमने दूध की खरीद में भी गिरावट का अनुभव किया है.