हरियाणा में पराली जलाने के मामले में गिरावट आई है. 15 सितंबर से 6 अक्टूबर के बीच प्रदेश में पराली जलाने के कुल 127 मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें से 84 फीसदी घटनाएं सिर्फ 7 जिलों में सामने आई हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल इसी अवधि के दौरान हरियाणा में पराली जलाने के 190 मामले सामने आए थे. लेकिन साल 2022 और 2021 में पराली जलाने की घटनाएं क्रमशः 48 और 24 दर्ज की गई थीं. खास बात यह है कि इस साल इन 127 मामलों में से 107 मामले सात जिलों में हुए हैं. करनाल में सबसे अधिक 37 आग लगने की घटनाएं हुईं. इसके बाद कुरुक्षेत्र में 27, कैथल में 9, अंबाला में 9, फरीदाबाद में 9, सोनीपत में 8 और यमुनानगर में 8 मामले सामने आए हैं.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों का कहना है कि हरियाणा, पंजाब और यूपी में नवंबर से सितंबर महीने के दौरान ज्यादा रबी फसलों की बुवाई की जाती है. ऐसे में इस दौरान पराली जलाने के ज्यादा मामले सामने आने की आशंका है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा है कि सरकार ने खेतों में पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए कदम सही उठाए हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि अभी और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है.
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उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें पराली जलाने की घटनाओं को खत्म करने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही हैं. लेकिन इसके बावजूद भी कुछ और उपाय किए जाने की जरूरत है. हरियाणा में किसानों को अपनी जमीन की जुताई में मदद करने के लिए करीब 90,000 मशीनें हैं. अगर किसान चाहें, तो इन मशीनों से पराली प्रबंधन कर सकते हैं. वहीं, सरकारों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह तकनीक सीमांत किसानों तक भी पहुंच सके. चौधरी के अनुसार, राज्य सरकार को एजेंसियों के लिए फसल अवशेष खरीदने के लिए बाजार भी बनाना चाहिए, ताकि किसानों को इसे जलाने से रोका जा सके.
हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए जिला नियोजन अभ्यासों पर आधारित इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन तकनीकों की आवश्यकता पर भी जोर दिया है. इस बीच, एक अधिकारी ने दावा किया कि सरकार ने 469 गांवों में किसानों को रियायती दरों पर मशीनें उपलब्ध कराई हैं, जो इसके द्वारा पहचाने गए 12 हॉटस्पॉट जिलों का हिस्सा थे. इस वर्ष के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 38.9 लाख एकड़ में धान उगाया जाता है, जिससे अनुमानित 81 लाख टन फसल अवशेष उत्पन्न होते हैं.
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अधिकारी ने कहा कि किसान आमतौर पर अपने खेतों को साफ करने और उन्हें अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए फसल अवशेष जलाते हैं. लेकिन इससे पर्यावरण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और कई स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा होते हैं. अधिकारी ने कहा कि फसल अवशेष जलाने का मुख्य कारण चावल की कटाई और अगली फसल की बुवाई के बीच का समय कम होना है. हमने पूरे राज्य में मशीनें तैनात की हैं. उनके अधिक से अधिक उपयोग की भी योजना बनाई गई है.