मॉनसून आते ही किसान खरीफ फसलों की बुवाई में जुट गए हैं ताकि अच्छी उपज हासिल की जा सके. ऐसे में आज हम बात करेंगे खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसल सोयाबीन की. इसकी खेती में सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसकी सही किस्मों का चयन करना होता है. खरीफ सीजन के ठीक पहले किसान इस समय असमंजस में हैं क्योंकि मार्केट में सोयाबीन की कई वैरायटी आ चुकी हैं. ऐसे में किसान यह फैसला नहीं कर पाते हैं कि कौन सी वैरायटी अच्छी है या कौन सी वैरायटी समय, परिस्थिति, मौसम और भूमि के अनुसार अच्छी. ऐसे में आम हम बताएंगे सोयाबीन की उत्तर के मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली किस्में कौन सी हैं. साथ ही जान लें इसकी खेती की A-Z पूरी जानकारी.
उत्तर मैदानी क्षेत्रों में बोई जाने वाली सोयाबीन की उन्नत किस्मों की बात करें तो इसमें, पूसा सोयाबीन 14, पूसा सोयाबीन 12, पूसा 9712, पूसा 9814, पूसा 16, पीके 416, पीएस 564, पीएस 1024 शामिल हैं. इसके अलावा मध्य भारत क्षेत्रों के लिए एनआरसी 7, एआरसी 37, जेएस 335, जेएस 93-05, जेएस 95-60, जेएस 20-34, जेएस 80-21, एमएयूएस 81 किस्में बेस्ट होती हैं.
सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से खरीफ सीजन में होती है. इसकी बुवाई उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक की जाती है. वहीं, इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. इसकी खेती के लिए भूमि की तैयारी करते समय मिट्टी में जैविक कार्बनिक पदार्थों को ज्यादा से ज्यादा मिलाना चाहिए. साथ ही खेत तैयार करते समय 2 बार हैरो या मिट्टी पलट हल से जुताई करने के बाद देसी हल से जुताई कर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. इसके बाद ही बीजों की बुवाई करनी चाहिए.
सोयाबीन की सफल खेती के लिए बीजों की उपयुक्त मात्रा होनी चाहिए. यदि बीज के जमने की क्षमता कम है, तो बीजों की मात्रा उसी दर से बढ़ा देनी चाहिए. बुवाई के लिए मोटा दाना 80-85 किलो, मध्यम दाना 70-75 किलो और छोटा दाना 60-65 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. वहीं, सोयाबीन की बुवाई पंक्तियों में 45×5 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए. साथ ही बुवाई से पहले बीजों को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.