पशुपालन करने वाले किसानों के लिए साल भर चारे का जुगाड़ करना बहुत बड़ी चुनौती होता है, क्योंकि जानवरों के अच्छे पोषण के लिए हरा चारा खिलाना बेहद जरूरी होता है. दरअसल, हरे चारे के लिए किसानों को बरसात के मौसम में बहुत सारी समस्याएं होती हैं. ऐसे में हरे चारे में उपयोग होने वाले ज्वार और मक्के की खेती करके किसान अपने पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था कर सकते हैं. इसमें ये जान लेना चाहिए कि ज्वार की कटाई कब करनी चाहिए? ऐसे में मक्का कटाई का नियम भी जान लें जिससे आपको फायदा हो. आइए जानते हैं.
ज्वार फसल की हरे चारे के लिए पहली कटाई बुवाई के 50-60 दिनों बाद करनी चाहिए. इसके बाद प्रत्येक 30-35 दिनों बाद फसल काटने योग्य हो जाती है. ऐसे में पशुपालक इससे तीन कटाई ले सकते हैं.वहीं, अगर बीज इकट्ठा करने हों, तो एक बार से अधिक कटाई नहीं करनी चाहिए. साथ ही पौष्टिक चारा के लिए कटाई फूल आने पर ही करनी चाहिए.
अगर किसान हरे चारे के तौर पर मक्के की कटाई करना चाहते हैं तो मक्के के दानों की कटाई तब करें, जब भुट्टों के ऊपर की पत्तियां सूखने लगें और दाना सख्त हो जाए. इस समय दानों में 25-30 प्रतिशत नमी रहती है. कटाई के बाद भुट्टों को एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाएं और बाद में कॉर्नशेलर से दानों को भुट्टों से अलग कर दें. इसके बाद मक्के के पत्तों की कटाई करके उसका चारा बना लें. ऐसे में किसानों को बरसात में चारे की कमी नहीं रहती है.
ज्वार और मक्का का चारा पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होता है, क्योंकि ज्वार और मक्का पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है. इन दोनों चारे में पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस और फाइबर पाए जाते हैं. यह पशुओं के लिए भी फायदेमंद होते हैं. पशुओं को ज्वार और मक्का का चारा खिलाने के कई लाभ होते हैं. दरअसल, पशुओं को इन दोनों चारा खिलाने से उनका पाचन तंत्र मजबूत होता है. साथ ही दूध की मात्रा भी तेजी से बढ़ती है. इसके अलावा हरा चारा खिलाने से पशुओं की प्रजनन क्षमता में सुधार होता है.साथ ही हरे चारे से पशुओं में थनैला रोग का खतरा कम होता है.
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