पंजाब, देश का वह राज्य जो गेहूं और चावल के उत्पादन में बड़ी हिस्सेदारी रखता है. अगर हम आपको बताएं कि यहां पर किसान अब चंदन की खेती करने लगे हैं तो आप भी हैरान रह जाएंगे. दक्षिण के राज्यों को चंदन की खेती का गढ़ माना जाता है लेकिन अब पंजाब में भी किसानों ने इसकी खेती शुरू कर दी है. कुछ किसान तो इसकी खेती को फिक्स्ड डिपॉजिट तक करार दे रहे हैं. साफ है कि खेती में यह नया प्रयोग किसानों को फायदा देने लगा है.
अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पंजाब के मानसा जिले में रहने वाले अमनदीप सिंह भद्रा गांव में 2.5 एकड़ में चंदन के पेड़ उगाते हैं. 27 साल के अमनदीप को गुजरात की ट्रिप पर चंदन की खेती करने का आइडिया मिला था. यहां पर लोग सक्रिय तौर चंदन की खेती करते हैं. ग्रेजुएशन के बाद अमनदीप ने चंदन की खेती करने का ही फैसला किया. अमनदीप के मुताबिक चंदन की खेती का आइडिया उन्हें बहुत पसंद आया और फिर उन्होंने इसे आजमाने का फैसला किया. अमनदीप ने मैसूर में इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IWST) के विशेषज्ञों से ट्रेनिंग हासिल की. वापस आने के बाद उन्होंने अपनी नर्सरी में वहां से मिले बीजों को बोना शुरू किया.
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छह से सात महीने बाद अमनदीप ने मुख्य खेत में चंदन की खेती शुरू की. अमनदीप के अनुसार एक पेड़ से 15-20 किलो लकड़ी बेची जा सकती है. उन्होंने बताया कि पहले साल के बाद पौधों को उर्वरकों या फफूंदनाशक स्प्रे की जरूरत नहीं पड़ती है. हालांकि, चंदन की खेती के लिए कुछ खास जरूरतें होती हैं. यह पौधा एक परजीवी प्रजाति है जिसका अर्थ है कि यह अपने पोषक तत्व दूसरे पौधों से प्राप्त करता है. इसलिए किसानों को चंदन के साथ-साथ एक मेजबान पौधा भी उगाना चाहिए ताकि इसका सही विकास सुनिश्चित हो सके. अमनदीप अपने खेत में चंदन के पेड़ों के साथ-साथ मेजबान पौधे के रूप में 'सारू' (कैसुरीना) की खेती करते हैं.
अमनदीप ने बाकी किसानों को चंदन के पौधे बेचना भी शुरू कर दिया है जिससे उन्हें अपने बागान लगाने में मदद मिल रही है. यह जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये पौधे अब छह साल से ज्यादा पुराने हैं. अमनदीप का कहना है कि 12 साल बाद चंदन के पेड़ से इनकम होने लगती है क्योंकि चंदन के पेड़ जैसे-जैसे बड़े होते हैं वे ज्यादा उत्पादन करते हैं. चंदन के तेल का प्रयोग दुनिया भर में कॉस्मेटिक्स, दवाओं और कुछ और उत्पादों में किया जाता है. चंदन के अलावा, अमनदीप उसी जमीन से आजीविका हासिल करने के लिए ड्रैगन फ्रूट भी उगा रहे हैं जब तक कि चंदन के पेड़ बिकने के लिए तैयार न हो जाएं.
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अमनदीप ने दो एकड़ में 225 पेड़ उगाए हैं. अगर वह हर पेड़ को 1 लाख रुपये में बेचते हैं तो करीब 2 करोड़ रुपये कमा सकते हैं. अमनदीप के अनुसार उनका परिवार जमीन को पट्टे पर देता था. लेकिन उन्होंने इसे वापस लेने की बजाय इस पर चंदन उगाने का फैसला किया. अमनदीप की तरह ही पटियाला जिले के महरू गांव के मनिंदर सिंह ने आधा एकड़ जमीन पर चंदन के 100 पेड़ लगाए हैं. ये पौधे उन्होंने होशियारपुर और करनाल में पंजाब वन विभाग से खरीदे हैं. अब ये पौधे करीब चार साल पुराने हो चुके हैं.
मनिंदर ने चंदन के पौधों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए कैसुरीना और चीड़ के पेड़ लगाए हैं.उन्होंने बताया कि आठ साल बाद तेल बनना शुरू हो जाता है. मोहाली में बीटेक ग्रेजुएट और वरिष्ठ कर्मचारी मनिंदर ने बताया कि चंदन की लकड़ी की गुणवत्ता के आधार पर 15-20 साल बाद पेड़ 5,000 रुपये से 30,000 रुपये प्रति किलोग्राम की उपज देंगे.
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इसी तरह से बरनाला के किसान हरबंस सिंह और सतनाम सिंह समेत कुछ और किसान भी चंदन की खेती कर रहे हैं. चंदन की खेती को पंजाब वन विभाग की तरफ से सक्रियता से बढ़ावा दिया जा रहा है. विभाग ने बैंगलोर में इंस्टीट्यूट ऑफ वुड टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च (IWST) के साथ मिलकर साल 2013 में राज्य में एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया था. होशियारपुर के तलवाड़ा क्षेत्र के एक गांव भटोली में, 2013 में प्रोजेक्ट के तहत करीब 1,300 चंदन के पौधे उगाए गए थे और वे अब 12 साल के हो चुके हैं.