पंजाब ने एक बार फिर से पूसा-44 धान की किस्म को बैन कर दिया है. इसके साथ ही आने वाले खरीफ सीजन के लिए धान की कुछ और हाइब्रिड किस्मों को बैन किया गया है. बीज के डीलर्स को निर्देश दिए गए हैं कि पूसा-44 किस्म के हरगिज न बेचा जाए. पिछले साल पूसा-44 किस्म राज्य में धान की खेती के तहत कुल क्षेत्रफल का करीब तीन फीसदी थी. सीएम भगवंत मान ने उस समय कहा था कि पूसा-44 को बैन करने से 477 करोड़ रुपये की बिजली की बचत हुई है. इसका प्रयोग भूजल निकालने के लिए ट्यूबवेल चलाने में किया जाता.
पंजाब सरकार का मानना है कि पूसा-44 धान की किस्म पानी की बहुत खपत करने वाली वैरायटी है. इसको प्रतिबंधित किया गया है कि ताकि राज्य में भूजल के बहुत ज्यादा दोहन को रोका जा सके. माना जाने लगा है कि धान की खेती की वजह से पंजाब आने वाले दो दशकों में रेगिस्तान बनने की कगार पर है. अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार पूसा-44 एक लंबी अवधि वाली धान की किस्म है जो पकने में 143 दिन लेती है. इसके लिए खेतों को अतिरिक्त 50 दिनों तक जोतना पड़ता है.
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जब इसे काटा जाता है तो उस समय भी इसमें नमी स्वीकृत सीमा 17 प्रतिशत से ज्यादा होती है. ऐसे में किसानों को इसे एमएसपी पर बेचना मुश्किल लगने लगता है. इसके अलावा इसमें टूटे हुए दाने और भूसे का प्रतिशत भी ज्यादा होता है. राज्य के चावल मिलिंग इंडस्ट्री की तरफ से इसके हाइब्रिड बीजों को भी बैन कर दिया गया है. उनका दावा है कि 50 प्रतिशत दाने छिलने के दौरान टूट जाते हैं. बाकी किस्मों में टूटे हुए दानों का प्रतिशत बहुत कम है यानी करीब 25 प्रतिशत है. एक एकड़ के लिए लगभग 5-6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.
हालांकि इस प्रतिबंध का पंजाब के किसानों पर प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. कई किसान ऐसे हैं जिन्होंने पहले ही प्राइवेड सीड डीलर्स से 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज खरीद लिए हैं. ऐसे किसान ज्यादातर हरियाणा के करनाल से हैं जो उस राज्य में धान की खेती का केंद्र है. पिछले साल भी, पंजाब के कई किसानों ने धान की किस्म पर प्रतिबंध लगने से पहले ही पूसा-44 के बीज खरीद लिए थे.
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विशेषज्ञों की मानें तो इससे जाहिर होता है कि इस बार भी सरकार ने प्रतिबंध के कारणों के बारे में किसानों को भरोसे में नहीं लिया है. पटियाला जिले के एक किसान ने कहा, 'उन्होंने धान की बुवाई की तारीख को आगे बढ़ा दिया है जिसकी जरूरत नहीं है. अगर सरकार भूजल को बचाने के बारे में गंभीर है तो ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था.'
राइस मिलर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रंजीत सिंह जोसन के हवाले से अखबार ने लिखा है कि मिलर्स खुश हैं जो सरकार ने इन किस्मों पर प्रतिबंध लगा दिया है. उन्होंने कहा, 'हमें उम्मीद है कि सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि किसान हाइब्रिड किस्मों या पूसा-44 की बुआई न करें.'
पिछले साल धान की खेती के तहत कुल 32 लाख हेक्टेयर में से 5 लाख हेक्टेयर में पूसा-44 और हाइब्रिड किस्मों की बुआई की गई थी. साल 2023 में, पूसा-44 3.86 लाख हेक्टेयर और 2022 में 5.67 लाख हेक्टेयर में बोई गई थी. पिछले साल हाइब्रिड धान के बीजों ने किसानों का ध्यान खींचा था. अनुमान है कि 2024 में 2 लाख हेक्टेयर में खेती की गई है. अधिकांश किसानों का दावा है कि वे पीआर-126 और पीआर-131 किस्में उगाएंगे.