राजस्थान की प्रमुख फसल बाजरा में वर्तमान समय में तुलासिता रोग, ब्लास्ट रोग और सफेद लट, प्ररोह मक्खी, तना छेदक व कातरा कीट आदि का खतरा होता है. इसके लिए कृषि विभाग ने खरीफ फसल में बाजरा के कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को सतर्क रहने को कहा है. कृषि विभाग के अुनसार, बाजरा की फसल का उक्त कीटों और बीमारियों से बचाव करने के लिए विभागी की सलाह का पालन करना चाहिए.
कृषि विभाग के अनुसार, प्ररोह मक्खी और तना छेदक के नियंत्रण के लिए अंकुरण के 35 दिन बाद प्रति 10 लीटर पानी में फिप्रोनिल 40 % के साथ इमिडाक्लोप्रिड 40% WG का 5 ग्राम के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए. फड़का का प्रकोप होने पर नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए.
फसल को तुलासिता रोग से बचाने के लिए प्रकोप वाले खेत में बुआई के 21 दिन बाद मैन्कोजेब 2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. ब्लास्ट रोग का आंरभिक खतरा होने पर इसके नियंत्रण के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी या ट्राइफलोक्सीस्ट्रोबिन 25% के साथ टेबुकोनाजोल 50% (75 WG) का 0.05% घोल का छिड़काव करना चाहिए. इस छिड़काव को 15 दिन बाद दोबारा दोहराने की सलाह दी जाती है.
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किसानों कीटनाशक का छिड़काव करते समय पूर्ण रूप से शरीर ढंकने वाले वस्त्र, चश्मा, मास्क, हाथों में दस्ताने आदि पहनना चाहिए. इस बात का खास ध्यान रखें कि मौसम साफ होने के बाद ही छिड़काव करें. बाजरा को कातरा कीट से बचाने के लिए फसल व आसपास उगे जंगली पौधों पर क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए और खेत में लट को आने से रोकने के लिए खेत के चारों ओर गड्ढा खोदकर गड्ढे में क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण भुरक का छिड़काव करना चाहिए, ताकि गड्ढ़े में आने वाली लटें नष्ट हो जाएं.
वहीं, जहां पानी सुलभ रूप में उपलब्ध हो वहां क्यूनालफॉस 25 ईसी 625 मिली लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए और खड़ी फसल में सफेद लट व दीमक के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 60 ग्राम सक्रिय तत्व का बुआई के 21 दिन के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए.