यूपी में बढ़ेगा आम का उत्पादन, अब पेड़ों की छंटाई के लिए सरकारी विभाग से नहीं लेनी पड़ेगी अनुमति

यूपी में बढ़ेगा आम का उत्पादन, अब पेड़ों की छंटाई के लिए सरकारी विभाग से नहीं लेनी पड़ेगी अनुमति

प्रवक्ता ने कहा कि कैनोपी प्रबंधन से पुराने आम के बागों में जान आएगी और वे नए बागों की तरह ही उत्पादक बनेंगे. इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि फलों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी. पुराने बागों में फूल और फल लगने के लिए जरूरी नई पत्तियों और शाखाओं की संख्या कम हो गई है.

यूपा में आम की क्वालिटी में आएगी सुधार. (सांकेतिक फोटो)यूपा में आम की क्वालिटी में आएगी सुधार. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jul 13, 2024,
  • Updated Jul 13, 2024, 1:09 PM IST

उत्तर प्रदेश में आम की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है. अब उनके बाग के आम की पैदावार और गुणवत्ता पहले से बेहतर हो जाएगी. क्योंकि किसानों को अब आम के पेड़ों की छंटाई करने के लिए सरकारी विभाग से अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दरअसल, कुछ महीने पहले राज्य सरकार ने इसके ऊपर फैसला किया था. वहीं, आम उत्पादक पेड़ों की छंटाई करके उनकी ऊंचाई कम कर सकते हैं, ताकि उनकी उत्पादकता बढ़ सके. 

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के इस फैसले से पुराने आम के बागों के लिए कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है और इसके सकारात्मक प्रभाव आने वाले सालों में साफ दिखाई देंगे. सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि कैनोपी प्रबंधन से पुराने आम के बागों में जान आएगी और वे नए बागों की तरह ही उत्पादक बनेंगे. इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि फलों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी. पुराने बागों में फूल और फल लगने के लिए जरूरी नई पत्तियों और शाखाओं की संख्या कम हो गई है. इसके विपरीत, मोटी और उलझी हुई शाखाएं हैं, जो अंदर तक पर्याप्त रोशनी नहीं पहुंचा पाती हैं. इन स्थितियों के कारण कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है और कीटनाशकों का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

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पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ जाता है

इसके चलते छिड़काव की गई दवा अक्सर पेड़ों के अंदरूनी हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती, जिससे कीटनाशक का उपयोग और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाता है. इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए, केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (CISH) ने इन आम के पेड़ों के जीर्णोद्धार के लिए एक उचित छंटाई तकनीक विकसित की है. तृतीयक शाखाओं की छंटाई या टेबल-टॉप छंटाई के रूप में जानी जाने वाली इस विधि से न केवल पेड़ की छतरी खुलती है और उसकी ऊंचाई कम होती है, बल्कि यह एक स्वस्थ वातावरण को भी बढ़ावा देती है. इस छंटाई तकनीक से, पेड़ केवल 2-3 वर्षों के भीतर प्रति पेड़ 100 किलोग्राम उत्पादन करना शुरू कर सकते हैं, जबकि अत्यधिक कीटनाशक के उपयोग की आवश्यकता कम हो जाती है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

CISH (लखनऊ के रहमानखेड़ा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक सुशील कुमार शुक्ला के अनुसार, रोपण के समय से 15 वर्ष से अधिक पुराने युवा पौधों और बागों की छतरी का वैज्ञानिक रूप से प्रबंधन करने से रखरखाव, समय पर सुरक्षा और बेहतर फूल और फल के उपाय करने में सुविधा होगी. यह दृष्टिकोण उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाएगा, जिससे निर्यात के अवसर बढ़ेंगे.

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