भारत में धान की खेती मुख्य रूप से की जाती है. धान की खेती को मानसून की खेती कहा जाता है. भारत में ज़्यादातर किसान बरसात के मौसम में धान की खेती करते हैं. कुछ किसान साल में दो बार भी खेती करते हैं. छत्तीसगढ़, केरल समेत दक्षिण भारत के कुछ अन्य राज्यों में धान की खेती साल भर की जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार के किसान बरसात के मौसम में धान की खेती करते हैं. ऐसे में अगर आप भी धान की खेती कर अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो जानें कब नर्सरी लगाएं और कितना रखें बीज की मात्रा.
धान की खेती के लिए सही बीज का चयन करना बहुत जरूरी है. इसके लिए अधिक उपज देने वाली प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. बीजों के बेहतर अंकुरण के लिए प्रमाणित बीज लेना चाहिए.
अच्छे उत्पादन के लिए धान की नर्सरी सही समय पर लगानी चाहिए. इससे समय पर धान की रोपाई हो सकेगी. धान की नर्सरी लगाने का सही समय अलग-अलग किस्मों पर निर्भर करता है. लेकिन 15 मई से 20 जून तक का समय सबसे उपयुक्त पाया गया है.
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धान की नर्सरी के लिए दोमट या चिकनी, उपजाऊ, खरपतवार रहित, समतल और उचित जल निकासी वाली भूमि का चयन करें. जिस भूमि में धान लगाना है, उसके 1/10वें भाग में नर्सरी लगानी चाहिए, सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
इस विधि का उपयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां नर्सरी तैयार करने के लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था होती है. इस विधि में पौधा 21 से 25 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाता है. नर्सरी के लिए ऐसी भूमि का चयन करें जहां सिंचाई एवं जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था हो. नर्सरी निर्माण से पहले खेत की 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी को समतल और भुरभुरी बना लेना चाहिए. इसके बाद 4 से 5 सेमी ऊंचाई की क्यारी बना लें. बुवाई के लिए 8 x 1.25 मीटर लंबी क्यारी बनाकर बुवाई करें. शुरूआती कुछ दिनों तक क्यारियों को केवल नमीयुक्त रखें. जब पौधा 2 सेमी हो जाए तो क्यारियों में पानी भर दें. 21 से 25 दिन बाद जब पौधे में 4 से 6 पत्तियां आ जाएं तो रोपाई कर देनी चाहिए. ध्यान रहे कि इस विधि में बीज की कम मात्रा की आवश्यकता होती है. साथ ही रोपाई के लिए पौधों को निकालना भी आसान होता है.
जिन क्षेत्रों में नर्सरी के लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, वहां इस विधि से नर्सरी लगानी चाहिए. इसके लिए समतल या ढलान वाली जगह का चयन करें. सबसे पहले 2 से 3 जुताई कर 10 से 15 सेमी ऊपरी मिट्टी को भुरभुरा कर लें. अब क्यारियों में धान के भूसे का प्रयोग कर ऊंची परत बना लें. इस विधि में बीज बोने के बाद घास की मदद से बीजों को ढक दिया जाता है. इससे पर्याप्त नमी बनी रहती है और पक्षी भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते. पर्याप्त नमी के लिए क्यारियों में पानी का छिड़काव करते रहें. सूखी क्यारी विधि में बीज तेजी से अंकुरित होते हैं और 25 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस विधि से तैयार पौधे प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता रखते हैं.