Sugar MSP: किसानों और चीनी मिलों के लिए पनप रहा ये बड़ा संकट, बढ़ सकता है गन्ने के पेमेंट का बका

Sugar MSP: किसानों और चीनी मिलों के लिए पनप रहा ये बड़ा संकट, बढ़ सकता है गन्ने के पेमेंट का बका

गन्ने की खेती से करीब 5.5 करोड़ किसानों की आजीविका जुड़ी हुई है और यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हर साल ₹1.1 लाख करोड़ से अधिक का योगदान देता है. हालांकि, फरवरी 2019 से चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) ₹31 प्रति किलो पर ही स्थिर बना हुआ है, जबकि इसी अवधि में गन्ने के फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) और राज्यों द्वारा तय स्टेट एडवायज्ड प्राइस (SAP) में लगातार और तेज़ बढ़ोतरी हुई है. इस असंतुलन के चलते शुगर इंडस्ट्री पर बढ़ता हुआ वित्तीय दबाव साफ नजर आ रहा है.

MSP of sugarMSP of sugar
क‍िसान तक
  • नोएडा,
  • Dec 28, 2025,
  • Updated Dec 28, 2025, 11:32 AM IST

भारत की दूसरी सबसे बड़ी कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था होने के नाते, गन्ना भारत की सबसे रणनीतिक फसलों में से एक है. ये लगभग 5.5 करोड़ किसानों को सहारा देती है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सालाना ₹1.1 लाख करोड़ से ज़्यादा का योगदान गन्ने का है. फरवरी 2019 से चीनी का मिनिमम सेलिंग प्राइस (MSP) ₹31/kg पर स्थिर है, जबकि गन्ने के फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) और स्टेट एडवायज्ड प्राइस (SAP) में तेज़ी से और बार-बार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे शुगर इंडस्ट्री पर वित्तीय दबाव पड़ रहा है.

MSP स्थिर रहने से ये है नुकसान

आंकड़े बताते हैं कि पिछले 6 सालों में, गन्ने का FRP 2018-19 में ₹275 से बढ़कर मौजूदा चीनी सीजन (2025-26) में ₹355/क्विंटल हो गया है, जो 29 प्रतिशत की बड़ी बढ़ोतरी है. इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे कई बड़े चीनी उत्पादक राज्यों ने मौजूदा सीजन में स्टेट एडवायज्ड प्राइस (SAP) को FRP से काफी अधिक कर दिया है. इससे हुआ ये कि मौजूदा सीजन में चीनी उत्पादन की अनुमानित लागत बढ़कर लगभग ₹41.7/किलो हो गई है, जिससे चीनी MSP और चीनी उत्पादन की लागत के बीच का अंतर बढ़ गया है. MSP स्थिर रहने के कारण, मिलें अब चीनी को उत्पादन लागत से काफी कम कीमत पर बेच रही हैं. अब ये स्थिति न तो टिकाऊ है और न ही इंडस्ट्री के लिए सही है. 

बढ़ सकता गन्ने के पेमेंट का बकाया

अंग्रेजी अखबार 'बिजनेसलाइन' की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा सीजन में बंपर चीनी उत्पादन का अनुमान है. ऐसे में चीनी मिलों को किसानों की आजीविका की रक्षा करने, पेराई शेड्यूल बनाए रखने और हालात खराब होने पर भी बड़े पैमाने पर फसल खराब होने से बचने के लिए काम करना जरूरी है. इंडस्ट्री को इथेनॉल की ओर कम डायवर्जन, ग्लोबल मार्केट में कीमतों में समानता की कमी और घरेलू चीनी की गिरती कीमतों जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. 

बता दें कि चीनी मिलें हर साल 5.5 करोड़ किसानों को लगभग ₹1.25 लाख करोड़ का पेमेंट करती हैं. इस साल, गन्ने की ज़्यादा कीमत के कारण, किसानों को किए जाने वाले कुल पेमेंट में ₹20,000 – 25,000 करोड़ की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. चीनी की कीमतें गिरने से - महाराष्ट्र और कर्नाटक में मिलों से चीनी की कीमतें लगभग ₹3630–3690 प्रति क्विंटल हैं, और UP में थोड़ी ज़्यादा हैं, जिससे मिलों को नुकसान होने की संभावना है और आने वाले महीनों में गन्ने के पेमेंट का बकाया बढ़ सकता है.  

मौजूदा पूर्व-मिल कीमतों से पहले ही ₹6,000 करोड़ से ज़्यादा का घाटा हो चुका है, और अगर चीनी का MSP अपरिवर्तित रहता है, तो जनवरी 2026 से गन्ने का बकाया तेजी से बढ़ना शुरू हो जाएगा, जिससे किसानों को परेशानी होगी और एक सिस्टमैटिक पेमेंट संकट पैदा होगा, जिसके लिए इंडस्ट्री ने पिछले 5 सालों में कड़ी मेहनत की है.

थेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम में क्लैरिटी की कमी

इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) के डायरेक्टर-जनरल लिखते हैं कि घरेलू स्टॉक ज्यादा होने और घरेलू चीनी की खपत स्थिर रहने से समस्या और गहरी हो गई है. 2024-25 में घरेलू चीनी की खपत 281 लाख मीट्रिक टन पर स्थिर रही है, और आने वाले सालों में इसमें मामूली बढ़ोतरी की उम्मीद है. मिलों के वित्तीय संकट और देश में बायोफ्यूल क्रांति के रुकने का एक और कारण 20 परसेंट से ज्यादा के लिए देश के इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम में क्लैरिटी की कमी है. 

मौजूदा सीज़न में, गन्ने से बने इथेनॉल को कुल एलोकेशन का सिर्फ़ 28 परसेंट मिला है, जिससे सिर्फ़ 34 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला गया, जिसके कारण घरेलू बाजार में चीनी का भारी स्टॉक जमा हो गया है. इथेनॉल की कम बिक्री का मतलब है डिस्टिलरी का कम इस्तेमाल, कम कैश फ्लो और लोन चुकाने और किसानों को पेमेंट करने की क्षमता में कमी. 

चीनी के MSP में बढ़ोतरी क्यों जरूरी? 

इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) द्वारा चीनी की खपत पर हाल ही में की गई एक स्टडी के अनुसार, CPI बास्केट में चीनी का वेटेज बहुत कम है, और चीनी के MSP में ₹41 की बढ़ोतरी का कंज्यूमर पर महंगाई पर न के बराबर असर होगा. इन हालात में, MSP में सुधार न सिर्फ चीनी सेक्टर के लिए बल्कि भारत के एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए भी बहुत ज़रूरी हो जाता है. एक डायनामिक फॉर्मूला जो गन्ने के FRP और SAP में बदलाव के साथ चीनी MSP को अपने आप एडजस्ट करे, चीनी इंडस्ट्री के लिए अपने ऑपरेशन को बनाए रखने और किसानों को समय पर पेमेंट सुनिश्चित करने के लिए समय की जरूरत है.

MSP में तुरंत सुधार और FRP/SAP में बढ़ोतरी के साथ इसे ठीक किए बिना, इंडस्ट्री को आने वाले महीनों में मिलें बंद होने, किसानों को पेमेंट में देरी, किसानों का बकाया बढ़ने, इथेनॉल सप्लाई में रुकावट और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े संकट का सामना करना पड़ेगा. एक सही, लागत के हिसाब से MSP न सिर्फ मिलों के लिए बल्कि किसानों, एनर्जी सिक्योरिटी और भारत के इंटीग्रेटेड शुगर-बायोएनर्जी इकोसिस्टम के भविष्य के लिए भी बहुत जरूरी है.

ये भी पढ़ें-

MORE NEWS

Read more!