
आलू की खेती में हम अक्सर पौधों की ऊपरी हरियाली और उनके सुंदर फूलों को देखकर खुश होते हैं, लेकिन असल कहानी तो जमीन के नीचे चल रही होती है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपूर, बिहार में प्लांट पैथोलॉजी विभाग के हेड डॉ एस. के. सिंह का मानना है कि जब आलू के पौधे में फूल आते हैं, तो पौधा अपनी सारी शक्ति और पोषण उन फूलों और बीजों को तैयार करने में लगा देता है. किसान के लिए ये फूल किसी काम के नहीं होते क्योंकि असली मकसद जमीन के नीचे आलू की पैदावार बढ़ाना है. अगर हम इन फूलों को समय रहते हटा दें, तो पौधे की वह पूरी 'जैविक ऊर्जा' सीधे आलू के विकास की ओर मुड़ जाती है. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी फालतू खर्चे को रोककर जरूरी काम में लगा देना. इससे आलू को ज्यादा पोषण मिलता है और आलू के कंद तेजी से बड़े होते हैं.
ड़ॉ एस.के. सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि हर किसान चाहता है कि उसके आलू का साइज एक समान हो और वजन भी अच्छा मिले. फूलों को काटने का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इससे कंदों का औसत वजन बढ़ जाता है. जब पौधे की ऊर्जा फूलों में बर्बाद नहीं होती, तो आलू का साइज अच्छी तरह से बढ़ता है और उनका आकार सुडौल होता है.
रिसर्च बताती है कि इस छोटी सी तकनीक को अपनाकर किसान अपने कुल उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकते हैं. आज के समय में जहां खेती की लागत बढ़ रही है, वहां बिना किसी अतिरिक्त खाद या दवाई के सिर्फ सही प्रबंधन से इतनी पैदावार बढ़ा लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह तकनीक विशेष रूप से मैदानी इलाकों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है.
डॉ एस.के. सिंह के अनुसार, फूलों को हटाना सिर्फ पैदावार बढ़ाने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह पौधों को बीमारियों से बचाने का भी एक तरीका है. अक्सर देखा गया है कि जब आलू के पौधे पर फूल खिले होते हैं, तो कीट-पतंगे और फफूंद उनकी तरफ ज्यादा अटैक करते हैं. जब हम फूलों को हटा देते हैं, तो पौधे पर कीटों का हमला कम हो जाता है और पौधा ज्यादा स्वस्थ रहता है.
इसके अलावा, फूल और बीज बनाने की प्रक्रिया पौधे के लिए काफी 'थकाने' वाली होती है. फूलों को काटकर हम पौधे का जरूरी तनाव कम कर देते हैं, जिससे उसकी पत्तियां लंबे समय तक हरी और सक्रिय रहती हैं. जितनी लंबी पत्तियों की उम्र होगी, उतना ही ज्यादा भोजन वे आलू के लिए बना पाएंगी.
विशेषज्ञों की सलाह है कि जब फसल लगभग 50 से 60 दिन की हो जाए और फूल पूरी तरह से बन चुके हों, तभी उन्हें हटाना चाहिए. फूलों को हाथ से खींचने के बजाय किसी साफ कैंची या प्रूनर का इस्तेमाल करना चाहिए. ध्यान रहे कि औजारों को साफ करने के लिए ब्लीच या एल्कोहॉल का उपयोग करें ताकि एक पौधे की बीमारी दूसरे में न फैले. सिर्फ फूलों के गुच्छे को ही काटें, टहनियों को ज्यादा नुकसान न पहुंचाएं. इस वजह से खुदाई के समय बड़े और वजनदार आलू का पैदावर होगी.
अगर किसान को आलू का बीज बनाना है तो फूलों को बिल्कुल न काटें. साथ ही, बहुत ज्यादा ठंडे या पहाड़ी इलाकों में जहां तापमान पहले से ही बहुत कम होता है, वहां पौधे की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से कंद की तरफ ही रहती है, इसलिए वहां इसका असर कम दिखता है. लेकिन मैदानी क्षेत्रों के किसानों के लिए, जहां मिट्टी और गर्मी की वजह से कभी-कभी आलू छोटे रह जाते हैं, यह तकनीक आमदनी बढ़ाने का एक पक्का रास्ता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसान इस वैज्ञानिक प्रबंधन को अपनी खेती का हिस्सा बना लें, तो वे आलू की बंपर पैदावार ले सकते हैं.