सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है जिसे रबी के मौसम में उगाया जाता है. यह फसल सिंचित (सिंचाई युक्त) और असिंचित (बिना सिंचाई) दोनों तरह के क्षेत्रों में उगाई जाती है. खासकर राजस्थान राज्य सरसों उत्पादन में देशभर में अग्रणी स्थान रखता है. राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में ही कुल उत्पादन का लगभग 29% हिस्सा पैदा होता है. हालांकि, इस क्षेत्र में सरसों की औसत उपज मात्र 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो अपेक्षाकृत कम मानी जाती है. अगर किसान उन्नत तकनीकों का उपयोग करें तो यह उपज 30 से 60 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है.
किस्म | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज (कु./हे.) | विशेषताएं |
पूसा जय किसान | 125-130 | 18-20 | सफेद रोली और तुलसिता रोग रोधी, सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिए |
आशीर्वाद | 125-130 | 16-18 | देरी से बुवाई के लिए उपयुक्त, सिंचित क्षेत्रों में फायदेमंद |
आर एच-30 | 130-135 | 18-20 | दाने मोटे, मोयला रोग कम, दोनों प्रकार के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
पूसा बोल्ड | 125-130 | 18-20 | मोटे दाने, रोग कम लगते हैं |
लक्ष्मी (RH 8812) | 135-140 | 20-22 | फलियां पकने पर नहीं चटकती, दाना मोटा व काला |
क्रांति (PR-15) | 125-130 | 16-18 | रोग रोधी, दाना कत्थई रंग का, असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
सरसों की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि सरसों का छोटा बीज अच्छे से जम सके.
बुवाई से 3-4 हफ्ते पहले 8-10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिला दें.
पहली सिंचाई पर:
असिंचित क्षेत्रों के लिए:
बुवाई के समय
सिंचाई प्रबंधन
सरसों की फसल के लिए 4-5 बार सिंचाई करना आवश्यक है.
सरसों की खेती अगर वैज्ञानिक विधियों से की जाए तो उत्पादन और मुनाफा दोनों बढ़ाए जा सकते हैं. राजस्थान जैसे क्षेत्रों में, जहाँ इसकी उपज अभी भी कम है, वहां उन्नत किस्मों और सही तकनीकों का उपयोग कर काफी लाभ कमाया जा सकता है. अच्छी भूमि तैयारी, समय पर बुवाई, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और नियमित सिंचाई से किसान सरसों की अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
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