इस खरीफ सीजन में उड़द और तुअर या अरहर की तुलना में मूंग रकबे के लिहाज से एक प्रमुख फसल बन गई है. कई व्यापारियों का कहना है कि इसका कारण राज्य एजेंसियों द्वारा इस फसल की अच्छी खरीद, उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और आयात नीतियों को माना जा सकता है. खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली अन्य प्रमुख दालों - अरहर और उड़द का रकबा (1 अगस्त तक) पिछले साल की तुलना में क्रमशः 6.6 प्रतिशत और 2.1 प्रतिशत पीछे है, जबकि मूंग का रकबा पिछले साल के स्तर से लगभग 3.2 प्रतिशत ज्यादा है.
भारत में मूंग का आयात प्रतिबंधित है जबकि अरहर, मटर और उड़द के ड्यूटी फ्री आयात को 31 मार्च 2026 तक की मंजूरी दी गई है. इसके साथ ही चना और मसूर के 10 फीसदी आयात को भी इतने ही समय के लिए मंजूरी दी गई है. कुछ ट्रेडर्स का कहना है कि बुवाई के ट्रेंड से साफ नजर आता है कि किसानों को यह लगने लगा है कि जीरो ड्यूटी इंपोर्ट उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है. जबकि मूंग के साथ फिलहाल यह स्थिति नहीं है.
वर्तमान समय में सिर्फ चना को छोड़कर सभी दालों की कीमतों में गिरावट हो रही है. वहीं मूंग पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सबसे ज्यादा 8768 रुपये प्रति क्विंटल है. आंकड़ों के अनुसार 1 अगस्त 2025 तक देश में 3.21 लाख हेक्टेयर की जमीन पर मूंग की बुवाई हो चुकी है. यह आंकड़ा पिछले साल इसी समय में हुई बुवाई से 3.2 प्रतिशत ज्यादा है.
आमतौर पर खरीफ के सीजन में मूंग 3.56 लाख हेक्टेयर पर बोई जाती है यानी इसका मतलब यह हुआ कि एक अगस्त तक करीब 90 फीसदी साधारण इलाका कवर हो चुका है. भारत में साधारण तौर पर 3.5 से 3.7 लाख टन पर मूंग उगाई जाती है. इस आंकड़ें के साथ ही यह चना के बाद सबसे ज्यादा एकड़ में उगाई जाने वाली फसल बन गई है. देश के कई राज्यों में पूरे साल मूंग उगाई जाती है. व्यापारियों का कहना है कि कुछ राज्यों में हर महीने मूंग की कटाई की जाती है लेकिन सबसे ज्यादा यानी 60 से 70 फीसदी तक की कटाई रबी और गर्मी के महीनों में की जाती है.
मूंग के अलावा देश में 3.6 से 3.7 लाख टन जमीन पर अरहर दाल, 2 से 2.5 लाख टन उड़द, 1.6 से 1.7 लाख टन पर मसूर और 7.5 और 8 लाख टन पर चना उगाया जाता है और इस आंकड़ें के साथ ही यह सबसे ज्यादा हिस्से पर उगाई जाने वाली फसल बन जाती है. पूरे देश में कुल 19 से 20 लाख टन जमीन पर दालें उगाई जाती हैं जबकि कुल खपत 26-27 लाख टन तक है जिसकी कमी आयात से पूरी की जाती है.
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