मक्का भारत में दो सीजन में उगाया जाता है, लेकिन 85 फीसदी खेती खरीफ सीजन में होती है. इस मौसम में किसान मक्का फसल की बुवाई के लिए खेतों को तैयार कर सकते हैं. इसकी संकर किस्में एएच-421 व एएच-58 तथा उन्नत किस्में पूसा कम्पोजिट-3 और पूसा कम्पोजिट-4 हैं. पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी खेती के लिए एडवाइजरी जारी करके बताया है कि बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें तो अच्छा रहेगा. एक हेक्टेयर एरिया में बुवाई करनी है तो बीज की मात्रा 20 किलोग्राम रखनीहोगी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60-75 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 18-25 सेमी रखें. मक्का में खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
मक्का न सिर्फ इंसानों के खाने के काम आ रहा है बल्कि पोल्ट्री फीड और बायो फ्यूल बनाने के लिए भी इस्तेमाल हो रहा है. इसलिए यह एनर्जी क्रॉप है. भारत में चावल और गेहूं के बाद मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है. यह देश में कुल अनाज उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत है. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसकी अच्छी खेती के लिए जल निकास का उचित प्रबंधन जरूरी है. ज्यादा पानी में इसकी फसल को नुकसान हो जाता है.
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वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह समय चारे के लिए ज्वार की बुवाई के लिए भी उपयुक्त है. इसलिए किसान पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई करें. बीज की मात्रा 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें. लोबिया की बुवाई का भी यह सही समय है. बारिश के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की सब्जी नर्सरी, दलहनी एवं तिलहनी फसलों में जल निकास का उचित प्रबंधन रखें तथा खड़ी फसलों व सब्जियों में किसी प्रकार का छिड़काव न करें. क्योंकि छिड़काव करने के बाद बारिश हुई तो पौधों पर उसका कोई फायदा नहीं होगा, उल्टे आपको आर्थिक नुकसान होगा.
जिन की धान की नर्सरी 20-25 दिन की हो गई हो तो तैयार खेतों में धान की रोपाई शुरू करें. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखें. उर्वरकों में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से डालें, तथा नील हरित शैवाल एक पेकेट प्रति एकड़ का प्रयोग उन्हीं खेतो में करें जहां पानी खड़ा रहता हो. ताकि मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जा सके. धान के खेतों की मेड़ों को मजबूत बनाएं. जिससे वर्षा का ज्यादा से ज्यादा पानी खेतों में रुक सके.
यह समय मिर्च, बैंगन व फूलगोभी (सितंबर में तैयार होने वाली किस्में) की पौधशाला बनाने के लिए उपयुक्त है. किसान पौधशाला में कीट अवरोधी नाईलोन की जाली का प्रयोग करें, ताकि रोग फैलाने वाले कीटों से फसल को बचा सकें. पौधशाला को तेज धूप से बचाने के लिए छायादार नेट द्वारा 6.5 फीट की ऊंचाई पर ढक सकते हैं. बीजों को केप्टान (2.0 ग्राम/ किलोग्राम बीज) के उपचार के बाद पौधशाला में बुवाई करें. जबकि जिन किसानों की मिर्च, बैंगन व फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को ध्यान में रखते हुए रोपाई की तैयारी करें.
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