आम के बाद केला भारत की दूसरी महत्वपूर्ण फल फसल है. केला कमजोरी और दुबलापन ठीक करने में सहायक है. यह सभी वर्ग के लोगों का पसंदीदा फल है और अपने स्वाद, पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है. यह कार्बोहाइड्रेट और विटामिन, विशेषकर विटामिन बी का उच्च स्रोत है. केले से विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे चिप्स, केले की प्यूरी, जैम, जेली, जूस आदि बनाये जाते हैं. बैग, बर्तन और वॉली हैंगर जैसे उत्पाद केले के रेशे से बनाए जाते हैं. भारत में केला उत्पादन में पहले नंबर और फल के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर है. भारत में केले की सबसे अधिक उत्पादकता महाराष्ट्र राज्य में होती है. अन्य केला उत्पादक राज्य कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और असम हैं.
केले की अच्छी पैदावार के लिए 450 ग्राम यूरिया, 350 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश लेकर इसे 5 भागों में बांट लें और प्रति पौधा पांच बार डालें. पहली खुराक फरवरी में, दूसरी मार्च में, तीसरी जून में, चौथी जुलाई में और पांचवीं अगस्त में दी जानी चाहिए. वहीं केले की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए जरूरी है कि हम केले कि उन्नत किस्मों का भी चयन करें. ताकि बेहतर उपज मिल सके. इनमें हरी छाल, हिल बनाना, पूवन (चीनी चंपा), अल्पान, कैम्पिरगंज, बत्तीसा, कोठिया, मुनथन, एच 2, एफ एच आई ए 1 आदि किस्में शामिल हैं.
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केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु गर्म और मध्यम जलवायु है. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में केले की खेती अच्छी होती है. जैविक दोमट, चिकनी दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो, वो उपयुक्त मानी जाती है. इसके लिए भूमि का पीएच मान 6-7.5 के आसपास होना चाहिए.
यदि पौधों के बीच 1.8x1.5 मीटर की दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में लगभग 1452 पौधे लगते हैं. यदि पौधों के बीच 2 मीटर x 2.5 मीटर की दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में लगभग 800 पौधे लगेंगे. ऐसे में किसान बेहतर उपज के लिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए खेती कर सकते हैं.
केले को पकाने के लिए कंटेनर को एक बंद कमरे में रखा जाता है और केले के पत्तों से केला को ढक दिया जाता है. एक कोने में आग जलाई जाती है और कमरे को मिट्टी से सील कर दिया जाता है. लगभग 48 से 72 घंटे में केला पककर तैयार हो जाता है. इस विधि से पकाए गए केले न सिर्फ स्वादिष्ट होते हैं बल्कि सेहत के लिए भी अच्छे होते हैं.