लोबिया जिसे प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है, उत्तर भारत में आहार का एक अहम हिस्सा है. उत्तर भारत में लोबिया को दाल की तरह पकाया जाता है और चावल के साथ परोसा जाता है. इसे ब्लैक आईड पीस या फिर रोंगी के नाम से भी जानते हैं. लोबिया में प्रोटीन के हेल्दी फैट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन बी 2 और विटामिन सी जैसे कई पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. विशेषज्ञ लोबिया वजन कम से लेकर, पाचन दुरुस्त करने, दिल को स्वस्थ रखने, बॉडी को डिटॉक्स और नींद से जुड़ी समस्याओं के अलावा स्किन केयर तक में कारगर मानते हैं.
लोबिया की खेती दालों वाली फसल के तौर पर की जाती है. किसान लोबिया की खेती हरी खाद, पशुओं के चारे और सब्जी के लिए करते है. इसकी कच्ची फलियों की तुड़ाई करके किसान बाजार में बेचते हैं. इन्हीं फलियों को सब्जी के तौर पर प्रयोग किया जाता है. किसानों को लोबिया की फसल से अपने पशुओं के लिए उत्तम पौष्टिक चारा भी मिलता है. किसान पहले इसके पौधों को पकने से पहले खेत में जोतते हैं और फिर इससे हरी खाद भी तैयार करते हैं.
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भारत में लोबिया की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, केरल और उत्तर प्रदेश में की जाती है. इसकी बुवाई का सही समय बारिश शुरू होने पर यानी जुलाई होता है. लेकिन कुछ किसान मार्च और अप्रैल के बीच में भी इसे बोते हैं. लोबिया की खेती मैदानी क्षेत्रों में फरवरी से मार्च और जून से जुलाई में की जाती है. लोबिया की खेती खरीफ की फसल के साथ भी की जाती है. अगर गर्मी में लोबिया की फसल बोयी गई है तो जरूरी है कि 12 से 15 दिनों के अंतराल पर इसकी सिंचाई होती रहे. लोबिया की नर्म और कच्ची फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से 4-5 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.
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इसकी फसल बुवाई के बाद 45 से 50 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. वहीं इसकी झाड़ीदार प्रजातियों में 3-4 तुड़ाइयां और बेलदार प्रजातियों में 8-10 तुड़ाई की जा सकती हैं. इसकी फसल स्वस्थ रहे और मोजैक रोग से बचे रहे, इसके लिए जरूरी है कि इसकी निगरानी की जाती रहे. लोबिया में मोजैक रोग सफेद मक्खी की वजह से होता है. इस रोग में पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए 0.1 फीसदी मेटासिस्टॉक्स या डाइमेथोएट का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करना बेहतर रहता है.