अमरूद एक ऐसा फल है जो स्वाद, पोषण और आय के लिहाज से किसानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है. इसकी खेती देश के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक की जाती है. लेकिन अच्छी पैदावार के लिए सिर्फ सही मिट्टी और देखभाल ही काफी नहीं बल्कि सही किस्म का चयन भी उतना ही जरूरी है. अलग-अलग जलवायु और मिट्टी की दशाओं के अनुसार अमरूद की कई पारंपरिक, हाइब्रिड और उन्नत किस्में विकसित की गई हैं जिनसे न सिर्फ उत्पादन बढ़ता है बल्कि रोगों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं.
अमरूद की उगाई जाने वाली उन्नत किस्में जैसे-इलाहाबाद सफेदा, हिसार सफेदा, लखनऊ-49, चित्तीदार, ग्वालियर-27, एपिल-गुवावा और धारीदार प्रमुख हैं. इसके अलावा अर्का-मृदुला, श्वेता, ललित और पंत-प्रभात किस्में भी व्यावसायिक उत्पादन के लिए प्रयोग में लाई जा सकती हैं. कोहीर, सफेदा एवं सफेद जाम नामक हाइब्रिड प्रजातियां भी उपयोग में लाई जा सकती हैं.
अगर आप अमरूद के नये बाग लगाने जा रहे हैं तो बुवाई के लिए क्यारी तैयार करने के बाद गड्ढों की खुदाई करें. अमरूद के लिए 5×5 मीटर की दूरी पर 75 सें.मी. लम्बे, चौड़े और गहरे गड्ढे बनाएं. हर गड्ढे में 30-40 किग्रा सड़ी गोबर की खाद, 1 कि.ग्रा. नीम की खली, गड्ढे से निकाली गयी ऊपर की मिट्टी में मिलाकर गड्ढे को जमीन से 20 सें.मी. की ऊंचाई तक भर दें. शुरुआती दो-तीन सालों में बगीचों की खाली जगह में लोबिया, ज्वार, उड़द, मूंग एवं सोयाबीन की फसलें उगायें.
अमरूद की फसल के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच हो तो पौधा अच्छा बढ़ता है. लेकिन अगर यह मान 7.5 से ज्यादा हो गया, तो उकठा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पूरा बाग प्रभावित हो सकता है. अमरूद को उष्ण और उपोष्ण दोनों तरह की जलवायु पसंद है. इसके लिए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे सही रहता है. यह फसल कम पानी और सूखे की स्थिति में भी खुद को संभाल सकती है. हालांकि अगर मौसम में अचानक ज्यादा उतार-चढ़ाव आए या गर्म हवाएं, बहुत कम बारिश और बहुत ज्यादा जल भराव हो जाए तो फलों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है.
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