Wheat farming : गेहूं के कंस मामा को जानते हैं आप, जानें कैसे करें इस दुश्मन की पहचान और रोकथाम

Wheat farming : गेहूं के कंस मामा को जानते हैं आप, जानें कैसे करें इस दुश्मन की पहचान और रोकथाम

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, मंडूसी खरपतवार के खिलाफ आइसोप्रोटयूरान दवा के प्रति प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न हो गई है और मंडूसी खरपतवार से 10 से 100 प्रतिशत तक का नुकसान पाया गया है. आइसोप्रोटयूरान के असरदार न रहने के कारण, पिछले कई सालों से गेहूं उत्पादन में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है और मंडूसी का नियंत्रण आज गेहूं की उत्पादकता वृद्धि के रास्ते में एक बड़ी चुनौती बन गई है. इस खतरनाक खरपतवार से बचने के लिए खरपतवार शोध निदेशालय, जबलपुर, ने सुझाव दिया है.

गेहूं का सबसे खतरनाक खरपतवार है फलारिस माइनर  गेहूं का सबसे खतरनाक खरपतवार है फलारिस माइनर
जेपी स‍िंह
  • NEW DELHI,
  • Nov 11, 2023,
  • Updated Nov 11, 2023, 11:26 AM IST

भारत में रबी फसल का सबसे खतरनाक खरपतवार फालारिस माइनर यानि मंडूसी है जिसे गुल्ली डंडा, गेहूं का मामा और कनकी भी कहा जाता हैं. यह आम धारणा हौ कि मंडूसी का बीज भारत में उस समय पर आया जब हमने साठ के दशक में बड़े पैमाने पर मैक्सिको से बौनी किस्म की गेहूं का बीज आयात किया.गेहूं की की ज्यादा पैदावार देने वाली बौनी किस्मों के साथ-साथ अधिक खाद से पानी देने के परिणाम स्वरूप और मंडूसी को भी वृद्धि का अनुकूल वातावरण मिला, जिसके कारण तेजी से ये फैलता गया .मंडूसी खरपतवार से 10 से 100 प्रतिशत तक का नुकसान पाया गया है.आइसोप्रोटयूरान के असरदार न रहने से पिछले कई सालों से गेहूं उत्पादन में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है. मंडूसी का नियंत्रण आज गेहूं की उत्पादकता वृद्धि के रास्ते में एक कांटा बन गया है. इस खतरनाक खरपतवार से बचने के बेहतर उपायों के बारे में खरपतवार शोध निदेशालय जबलपुर ने सुझाव दिये  हैं.

कैसे करें गेहूं के कंस मामा की पहचान ?

खरपतवार शोध निदेशालय जबलपुर के अनुसार आइसोप्रोटयूरान नामक खरपतवारनाशी सत्तर के दशक के अन्त में मंडूसी के नियंत्रण के लिए प्रमाणित किया गया. ये लगभग एक दशक तक बहुत प्रभावशाली भी रहा, लेकिन पूरी तरह से इसी खरपतवारनाशी पर हमारी निर्भरता का परिणाम यह हुआ कि इस दवाई का फालारिस माइनर पर असर न होना शुरू हो गया. कृषि वैज्ञानिको के अनसार  मंडुसी खरपतवार आइसोप्रोटयूरान दवाई के प्रति प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न  हो गई है. गेहूं के खेत में फालारिस माइनर यानि मंडूसी के पौधों की पहचान काफी मुश्किल होती है, लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि मंडूसी के पौधे सामान्यतः गेहूं के मुकाबले हल्के रंग के होते हैं. इसके अलावा मंडूसी का तना जमीन के पास से लाल रंग का होता है. तना तोड़ने या काटने पर इसके पत्तों, तने और जड़ों से भी लाल रंग का रस निकलता है.जबकि गेहूं के पौधे से निकलने वाला रस रंग विहीन होता है.

कैसे बचें इस खतरनाक खरपतवार से?

फालारिस माइनर खेतों में ना उगे उसके लिए खरपतवार बीज रहित गेहूं की बुवाई करें. गेहूं की बीजाई 15 नवम्बर से पहले करें औऱ लाइन से लाइन की दूरी 18 सेंटीमीटर से कम रखें. इसके अलावा, खाद को बीज के 2-3 सेंटी मीटर नीचे डालें. मेढ़ पर बिजाई करने से भी मंडूसी का प्रकोप कम होता है. गेहूं बुवाई के पहले जल्दी पानी लगाकर मंडूसी को उगने दें और फिर दवाई या खेत को जोत कर इसे खत्म करने के बाद, गेहूं की बिजाई करें .जीरो टिलेज से गेहूं की बुवाई करने से मंडूसी कम उगती है. बिजाई के 30 से 45 दिन बाद लाइनों में बीजे गेहूं में खुरपे या कसौले आदि से गुड़ाई की जा सकती है.

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गेहूं उगने के पहले इन दवाओं का करें प्रयोग

खरपतवार शोध निदेशालय जबलपुर (DWR) के अनुसार मंडूसी का पौध शुरू में बिल्कुल गेहूं के पौधे जैसा होता है.इसलिए इसे पहचान पाना आसान  नहीं होता है और  इसे निराई गुड़ाई करके निकालना बहुत कठिन होता है.  मंडूसी के नियंत्रण के लिए गेहूं उगने से पहले इन वीडीसाइड दवाओं का प्रयोग करके मंडूसी खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है. इसमे मुख्य रूप से प्यूमासुपर 10 ई.सी. (फिनोक्साप्रोपइथाईल) के 800-1200 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 250-300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें या पिनांक्साडिन 5 अथवा 10 ई.सी. (एक्सिल) के 400-800 मिलीलीटर.प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. इन रसायनों का प्रति हेक्टेयर खर्चा 1400-1600 रूपये आता है. 

फालारिस माइनर सहित दूसरे खरपतवार भी होंगे खत्म

DWR जबलपुर केअनुसार पिछले 3-4 सालों से कई खरपतवारनाशी ऐसे पाए गए हैं जो फालारिस माइनर यानि मंडूसी  की उन प्रजातियों पर भी असरदार हैं जिन पर आइसोप्रोट्यूरान का कोई असर नहीं होता है इसलिए गेहूं बुवाई के 30 से 35 दिन बाद या मंडूसी जब 2 से 3 पत्तोंवाली हो तब  इन वीडीसाइड दवाओं का प्रयोग करना चाहिए. गेहूं की संकरी औऱ चौड़ी खरपतवार के एक साथ रोकथाम के लिए इन दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से लीडर (सल्फोसल्फ्यूरांन) को 33.3 ग्राम प्रति हेक्टयर दर से 250-300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.या सेन्कोर 70 डब्ल्यू. पी. (मैट्रिब्यूजिन) को 250ग्राम प्रति हैक्टयर. की दर से कम से कम 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए. इसके अलवा टोटल नामक दवा 32 ग्राम प्रति हेक्टेयर या अटलांटिस 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं. 

अगर केवल संकरी पत्ती वाले खरपतवार हैं तो टांपिक 15 डब्ल्यू. पी. (क्लोडीनाफोप) का 400ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250-300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए

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इन बातों का रखें खयाल 

कभी भी खाद या मिट्टी में दवा मिलाकर छिड़काव न करें. जिस खेत में गेहूं के साथ सरसों या दलहनी फसल बोई गई हो, वहां लीडर, टोटल आदि का प्रयोग कदापि न करें उचित समय पर एवं पानी की पूरी मात्रा के साथ छिड़काव करें .अगर गेहूं के खेत में मंडूसी उग गये है तो मंडूसी में बीज बनने से पहले ही मंडूसी को उखाड़ कर पशु चारे के लिए प्रयोग करें मेढ़ों तथा पानी की नालियों को साफ रखें. खेत में तीन सालों में कम से कम एक बार बरसीम अथवा जई की फसल चारे के लिए उगायें इससे मंडूसी का काफी हद रोकथाम किया जाता है.

 

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