सितंबर-अक्टूबर की यह फसल बना देगी लखपति, कुछ ही महीनों में होगी बंपर कमाई!

सितंबर-अक्टूबर की यह फसल बना देगी लखपति, कुछ ही महीनों में होगी बंपर कमाई!

एक ऐसी खास और फायदेमंद फसल है, जिसे लगाने का सही समय अब आ गया है. यदि किसान इसकी खेती सितंबर-अक्टूबर के महीने में करते हैं, तो यह फसल बहुत कम समय में तैयार हो जाती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि कुछ ही महीनों की मेहनत के बाद इससे इतनी बंपर पैदावार और मुनाफा मिलता है कि किसान आसानी से लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं. जिसके बारे में डिटेल जानकारी दी गई है.

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Aug 27, 2025,
  • Updated Aug 27, 2025, 6:26 PM IST

स्ट्रॉबेरी, जो अपने चमकीले लाल रंग, दिल जैसे आकार और खट्टे-मीठे स्वाद के लिए मशहूर है, आज भारत के किसानों के लिए कमाई का एक शानदार जरिया बन गई है. यह स्वादिष्ट फल पोषक तत्वों का खजाना भी है. पहले जहां इसकी खेती सिर्फ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी इलाकों तक सीमित थी, वहीं अब नई तकनीकों की मदद से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार जैसे मैदानी राज्यों में भी इसकी सफल खेती हो रही है. इस फसल से किसान वाकई प्रति एकड़ 4 से 5 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन यह बंपर कमाई दो बातों पर निर्भर करती है. पहला, अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के अनुसार सही किस्म का चुनाव करना और दूसरा, खेती के लिए उन्नत तकनीकों को अपनाना. अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए, तो स्ट्रॉबेरी की खेती बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है.

स्ट्राबेरी की बेहतर किस्में और सही खेत का चुनाव

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार उत्तर भारत की जलवायु के लिए सही किस्म का चुनाव करना बेहद ज़रूरी है ताकि अच्छी पैदावार मिल सके. यहां व्यावसायिक खेती के लिए कुछ प्रमुख और सफल किस्में हैं, जिनमें कैमारोसा, चार्ली चांडलर और विंटर डॉन शामिल हैं. स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. खेत में पानी की निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और मिट्टी में जैविक पदार्थ भरपूर मात्रा में होने चाहिए. मिट्टी का पीएच मान 5.7 से 6.5 के बीच होना बेहतर होता है.

खेत की तैयारी और रोपाई का सही तरीका

खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें और फिर उसमें 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी तरह मिलाएं. उत्तरी भारत में सितंबर से नवंबर के बीच रोपाई का सही समय होता है, जिसमें पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर और कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखी जाती है. रोपाई करते समय सबसे जरूरी बात यह ध्यान रखें कि पौधे का क्राउन (निचला मोटा तना) ठीक मिट्टी की सतह पर रहे, क्योंकि इसे ज्यादा गहरा या उथला लगाने पर पौधे का विकास रुक जाता है.

सिंचाई और मल्चिंग बेहद जरूरी

रोपाई के बाद शुरुआती कुछ हफ्तों तक हल्की और नियमित सिंचाई करें ताकि जड़ें अच्छी तरह विकसित हो सकें. खेत में नमी बनाए रखने, खरपतवार को रोकने और फसल को पाले से बचाने के लिए मल्चिंग बेहतर तकनीक है. इसमें खेत को पुआल या प्लास्टिक फिल्म से ढकना एक बहुत ही कारगर तकनीक है. काली पॉलीथिन से मल्चिंग करने पर खरपतवार पर अच्छा नियंत्रण होता है और पैदावार भी बढ़ती है.

खाद और उर्वरक इतना देना जरूरी

गोबर की खाद के अलावा अच्छी पैदावार के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल भी जरूरी है. प्रति एकड़ के हिसाब से, खेत में लगभग 8 से 10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 से 20 किलोग्राम फास्फोरस, और 24 से 32 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. स्ट्रॉबेरी की फसल में थ्रिप्स, लाही कीट, एन्थ्रेक्नोज और ग्रे मोल्ड जैसे कीट और रोग लग सकते हैं. किसी भी समस्या के लक्षण दिखाई देने पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित कीटनाशक या फफूंदनाशक का छिड़काव करें.

कम समय में मिलेगा बंपर मुनाफा

स्ट्रॉबेरी की खेती में तुड़ाई से लेकर कमाई तक का गणित समझना बेहद जरूरी है. फलों की तुड़ाई तब करनी चाहिए जब वे 75 फीसदी से ज्यादा एक समान लाल हो जाएं, और अगर कमाई की बात करें, प्रति एकड़ के हिसाब बात करें तो एक एकड़ में अच्छी तरह से प्रबंधित फसल से लगभग 30 से 50 क्विंटल तक की उपज मिल सकती है. एक एकड़ स्ट्रॉबेरी की खेती में कुल लागत लगभग 2 से 2.5 लाख रुपये आती है. बाजार में अच्छा भाव मिलने पर, किसान सभी खर्चे निकालकर प्रति एकड़ 4 से 5 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमा सकता है, 

नई तकनीक से कर सकते हैं खेती 

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी उगाने की एक बहुत ही खास और सफल तकनीक विकसित की है. इसमें पौधे पहले से ही पाइपों में लगे होते हैं. उन्होंने इस तकनीक को और उन्नत बनाते हुए एक ट्रॉली जैसा चलता-फिरता ढांचा तैयार किया है. इस ढांचे में लगे पाइपों में निश्चित दूरी पर छेद करके पौधे लगाए जाते हैं, जिन्हें मिट्टी की जगह एक विशेष पोषक मिश्रण में उगाया जाता है.

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