मूंगफली और धान की खेती एक साथ. सुनने में आपको थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन ऐसा बिहार में हो रहा है. ये दोनों ऐसी फसलें हैं जिनका एक दूसरे से कोई डायरेक्ट नाता नहीं. मगर वैज्ञानिकों ने इसे सही साबित किया है. बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (सबौर, भागलपुर जिला) में इस काम को सफल किया गया है. यह ऐसी सहफसली खेती है जिससे किसानों को दोहरा लाभ हो सकता है. इससे एक तरफ तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा तो दूसरी ओर धान की पैदावार भी बढ़ेगी.
इस नए सिस्टम से किसान खेती करें तो उन्हें बेहतर लाभ मिल सकता है. इस सिस्टम में मेड़ पर खेती की जाती है. क्यारियों का भी इस्तेमाल होता है. यूनिवर्सिटी के वीसी डीआर सिंह कहते हैं कि बिहार की जलवायु को देखते हुए मूंगफली-धान की खेती का सिस्टम तैयार किया गया है. इस नई तकनीक की मदद से यूनिवर्सिटी ने अपने कैंपस में कुछ किसानों से खेती भी कराई है.
इस खेती के चार लाभ बताए गए हैं. मेड़ और क्यारीनुमा खेती होने से खेत में जलनिकासी की व्यवस्था अच्छी होती है जिससे मूंगफली की अधिक पैदावार मिलती है. फसलों को पूरी हवा और खाद-पोषक तत्व मिल पाते हैं. दूसरा फायदा ये कि कम जगह में दो फसल उगती है जिससे किसान की कमाई बढ़ती है. तीसरा फायदा, बिहार के लिए लोकल स्तर पर मूंगफली की वैरायटी तैयार हो रही है जो बिहार की जलवायु के लिए अच्छी होगी. चौथा लाभ, बीएयू सबौर में किसान इस तरह की खेती के लिए ट्रेनिंग लेंगे और नई-नई तकनीक सीखकर खुद भी आजमाएंगे.
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मूंगफली और धान की खेती बिहार में सालों भर की जा सकती है. खासकर बरसाती सीजन में इस खेती को करना किसानों के लिए फायदेमंद होगा. इससे राज्य को भी फायदा होगा क्योंकि तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी. तिलहन की कमी से पूरा देश जूझ रहा है. इस नए सिस्टम से खेती कर बिहार तेल के क्षेत्र में बड़ी मदद कर सकता है.
बिहार के कई इलाके ऐसे हैं जहां खेतों में पानी लगना बड़ी समस्या है. ये समस्या मूंगफली के लिए और भी बड़ी हो जाती है क्योंकि उसे कम पानी की जरूरत होती है. ऐसे में मेड़ और क्यारीनुमा खेती की इस तकनीक से किसानों को फायदा होगा. मेड़ पर मूंगफली उगाई जाएगी जबकि क्यारी के गड्डे में धान की खेती होगी. क्यारी में पानी लगने का फायदा धान को होगा. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल सबौर में 800 वर्गमीटर में यह खेती शुरू की गई है.
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बिहार में 30 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है जोकि सबसे अधिक है. सहफसली खेती में अब मूंगफली का भी रकबा बढ़ेगा जिससे तिलहन के आयात पर निर्भरता घटेगी. भारत अभी 160 लाख टन से अधिक तिलहन का आयात करता है जिस पर लगभग 1.38 लाख करोड़ रुपये का खर्च आता है.