गेहूं की तरह इस साल चावल के दाम में भी तेजी है. इस बीच फसल वर्ष 2022-23 में चावल उत्पादन में 11.1 फीसदी की कमी रहने के अनुमान ने टेंशन और बढ़ा दी है. यही नहीं इंटरनेशनल प्राइस के मुकाबले भारत के चावल की कीमत 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने के बावजूद कम है. इसीलिए इतनी भारी ड्यूटी के बाद भी उसकी दूसरे देशों में डिमांड बनी हुई है. कमोडिटी विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले एक महीने में ही राइस के दाम में प्रति क्विंटल 400 रुपये तक का इजाफा हो गया है. कुल मिलाकर गेहूं जैसे ही हालात चावल के भी हो सकते हैं.
ओरिगो कमोडिटी के रिसर्चर इंद्रजीत पॉल ने हमें पिछले साल और इस साल के चावल के दाम में आए अंतर की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जनवरी 2022 के पहले सप्ताह में जो बासमती-1121 सेला व्हाइट 5500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा था उसका रेट अब 8400 रुपये तक पहुंच गया है. बासमती-1121 उबला चावल इस समय 9400 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर बिक रहा है जबकि पिछले वर्ष इसका भाव 6200 रुपये था.
सोना मसूरी जिसका दाम इस वक्त 5000 रुपये प्रति क्विंटल है उसका भाव साल भर पहले 3000 रुपये के आसपास था. इस वक्त परमल का भाव 2650 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि यह इससे नीचे ही रहता था. गेहूं का भाव इस साल 2900 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है जो पिछले साल 2000 रुपये के आसपास होता था.
पॉल का कहना है कि भारत में चावल की घरेलू खपत 102 मिलियन टन के आसपास होती है. खरीफ सीजन में 99.33 मिलियन टन के आसपास है उत्पादन का अनुमान है और रबी सीजन में 10 मिलियन टन का. एक्सपोर्ट बैन के बावजूद दूसरे देशों से भारत के राइस की डिमांड हाई है. बासमती का एक्सपोर्ट बंद नहीं है. जबकि दूसरे चावल पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी है. अक्टूबर-2021 से सितंबर-2022 के दौरान भारत का कुल चावल निर्यात 21.74 मिलियन मीट्रिक टन दर्ज किया गया था, जो कि सालाना आधार पर 6.5 फीसदी ज्यादा था.
चावल की श्रेणी वार निर्यात में ब्रोकेन राइस (18 फीसदी), बासमती (19 फीसदी), परब्वायल्ड (35 फीसदी), अर्ध/पूर्ण मिल्ड राइस (25 फीसदी) और भूसी में चावल (3 फीसदी) की हिस्सेदारी थी. 20 फीसदी शुल्क बढ़ोतरी का प्रभाव सिर्फ 28 फीसदी चावल कैटेगरी पर मतलब अर्ध/पूर्ण मिल्ड, भूसी में चावल और ब्राउन राइस पर ही दिखाई दे रहा है.
इस बीच अक्टूबर 2022-नवंबर 2022 से बासमती चावल का निर्यात 5.77 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया था, जो कि सालाना आधार पर 28 फीसदी ज्यादा था और गैर-बासमती चावल का निर्यात 26.16 लाख मीट्रिक टन था, जो कि सालाना आधार पर 4 फीसदी कम था.
अब आते हैं उस मुद्दे पर, जिसकी वजह से चावल के दाम में तेजी के कम होने का अनुमान नहीं है. रकबे में मामूली बढ़ोतरी और उपज में सुधार की वजह से ओडिशा में उत्पादन में 1.35 मिलियन मीट्रिक टन और छत्तीसगढ़ में 0.76 मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ने का अनुमान है, जबकि अक्टूबर में बारिश से खड़ी फसलों को नुकसान होने से यील्ड पर नकारात्मक असर पड़ने की वजह से उत्तर प्रदेश में उत्पादन में 1.47 मिलियन मीट्रिक टन की कमी होने का अनुमान है. ओरिगो के रिसर्चरों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में फसल वर्ष 2022-23 में चावल उत्पादन में 11.1 फीसदी की कमी रहने का अनुमान है.
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