जब कृषि क्षेत्र से जुड़ी उपलब्धियों की बात आती है तब मनोहरलाल खट्टर पंजाब को हरियाणा से कमतर दिखाने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस बार वो पंजाब के दांव से बैकफुट पर हैं. देश के कुल गन्ना उत्पादन में महज 2 फीसदी का योगदान देने वाले पंजाब ने अक्टूबर 2022 के पहले सप्ताह में ही गन्ने के भाव में प्रति क्विंटल 20 रुपये की वृद्धि करके बीजेपी के शासन वाले हरियाणा और यूपी पर दबाव बढ़ा दिया था. अब पंजाब में 380 रुपये क्विंटल के भाव पर किसानों से गन्ना खरीदा जा रहा है जो देश में सबसे अधिक है. दूसरी ओर, दाम बढ़ाने की मांग को लेकर चल रहे किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा में मिलें बंद हैं, क्योंकि किसानों ने गन्ने की सप्लाई बंद कर रखी है.
इस दबाव में हरियाणा सरकार ने आनन-फानन में बुधवार को 10 रुपये क्विंटल की वृद्धि कर दी. इसके बावजूद आंदोलन बंद नहीं हुआ है, क्योंकि किसान इसे नाकाफी बता रहे हैं. हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसा पहली बार है कि हरियाणा में गन्ने की कीमत पंजाब से कम है. हरियाणा में 2014-15 से लेकर पूरे देश में गन्ने का सबसे अधिक भाव किसानों को दिया जाता रहा है. सीएम ने यहां तक एलान कर दिया है कि किसान खुद अपनी मैनेजमेंट बनाकर सहकारी मिलें चलाएं. सरकार किसानों को सिर्फ 1 रुपये में मिल ट्रांसफर करने के लिए तैयार है.
दूसरी ओर, गन्ने की कम रिकवरी रेट का हवाला देते हुए सीएम खट्टर का कहना है कि कायदे से तो हरियाणा में किसानों को 297 रुपये क्विंटल का ही रेट बनता है. क्योंकि सहकारी मिलों में चीनी रिकवरी सिर्फ 9.75 फीसदी ही है. यानी एक क्विंटल गन्ने में सिर्फ 9.75 किलो ही चीनी निकल रही है. फिर भी सरकार ने 372 रुपये रेट कर दिया. गन्ना मूल्य निर्धारण कमेटी ने 370 रुपये का रेट सुझाया था, लेकिन सरकार ने उसे और बढ़ाकर 372 रुपये कर दिया. मतलब साफ है कि हरियाणा सरकार गन्ना किसानों को बताने की कोशिश कर रही है कि वो किसानों पर एहसान कर रही है.
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सच तो यह है कि महंगाई हर साल बढ़ रही है. उसी हिसाब से कृषि इनपुट का भाव भी बढ़ रहा है. मनरेगा की वजह से कृषि श्रमिक कम मिल रहे हैं. उनकी मजदूरी बढ़ गई है. बढ़नी भी चाहिए. लेकिन, इन सब पहलुओं को देखते हुए हर पेराई सत्र में गन्ने का भाव भी बढ़ना चाहिए. लेकिन, हरियाणा में ऐसा नहीं हुआ है, जबकि पेराई शुरू हुए दो महीने हो रहे हैं. गन्ना किसान 450 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मांग रहे हैं. हालांकि, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने 10.25 फीसदी रिकवरी पर चीनी मौसम 2022-23 के लिए गन्ना उत्पादन की अनुमानित सी-2 लागत 209 रुपये प्रति क्विंटल बताई है. गन्ना उत्पादन में श्रमिकों पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च होता है.
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि मिलों से 35 रुपये किलो के रेट पर चीनी बिक रही है. इस हिसाब से 10.37 रिकवरी रेट पर मिलों को प्रति क्विंटल गन्ने पर सिर्फ चीनी से 363 रुपये की कमाई हो रही है. जबकि, शीरा, खोई और दूसरे प्रोडक्ट बेचकर उन्हें एक क्विंटल गन्ने पर कुल लगभग 500 रुपये मिलता है. ऐसे में उन्हें 100 रुपये प्रति क्विंटल की कमाई खुद रखनी चाहिए और 400 रुपये किसानों को लौटा देना चाहिए. महंगाई के इस वक्त में 400 रुपये से कम गन्ने का रेट किसानों के साथ नाइंसाफी है.
पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि हरियाणा में कुल कुल 16 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 11 सहकारी क्षेत्र की हैं. सीएम ने बताया है कि इनका घाटा बढ़कर 5292 करोड़ रुपये हो गया है. इसके लिए इथेनॉल का उत्पादन तो बढ़ाया ही जाए साथ में दूसरे उपाय भी किए जाएं. चीनी की दो तिहाई खपत कमर्शियल है. बड़े उपभोक्ता जैसे कंपनियां सीधे मिल से चीनी उठाती हैं. मेरा सुझाव है कि कमर्शियल चीनी का भाव 75 से 80 रुपये किलो कर दिया जाए. ठीक वैसे जैसे कमर्शियल गैस सिलेंडर का भाव घरेलू से अधिक है. ऐसा करने से मिलें घाटे से उबर जाएंगी.
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सीएम खट्टर के मुताबिक 2020-21 के दौरान हरियाणा की प्राइवेट मिलों में चीनी की रिकवरी 10.24 फीसदी थी. जबकि सहकारी मिलों में सिर्फ 9.75 फीसदी थी. सवाल यह है कि सहकारी मिलों में चीनी रिकवरी क्यों कम है. क्या इसके लिए किसान दोषी हैं? हालांकि, सीएसीपी की रिपोर्ट बता रही है कि 2020-21 में हरियाणा की औसत चीनी रिकवरी 10.37 फीसदी थी. पूरे देश के गन्ना उत्पादन में हरियाणा का योगदान महज 2.2 फीसदी है. लेकिन दाम बढ़ाने की मांग का लेकर यहां के गन्ना किसानों का आंदोलन चर्चा में है. वो 450 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मांग रहे हैं.
चीनी सीजन 2022-23 के लिए केंद्र सरकार ने गन्ने का एफआरपी यानी उचित और लाभकारी मूल्य (FRP-Fair and Remunerative Price) 305 रुपये प्रति क्विटंल तय किया है. यह एक तरह से गन्ना का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है. हालांकि, पांच राज्य एफआरपी से अलग अपना दूसरा दाम तय करते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और बिहार शामिल हैं. इनमें स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) के आधार पर भुगतान होता है, जो अमूमन केंद्र सरकार के एफआरपी से ज्यादा ही होता है. इसलिए पंजाब में 380, हरियाणा में 372 और यूपी में 350 रुपये क्विंटल का भाव है.