हल्दी की पैदावार बढ़ाने के लिए निजामाबाद के किसानों ने निकाली गजब की तरकीब, आप भी जानिए 

हल्दी की पैदावार बढ़ाने के लिए निजामाबाद के किसानों ने निकाली गजब की तरकीब, आप भी जानिए 

तेलंगाना के निजामाबाद में हल्‍दी की खेती करने वाले किसान अपनी फसलों के पोषण के लिए तालाब की मिट्टी का इस्तेमाल करके खबरों में बने हुए हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के किसान हल्दी या फिर लंबे समय तक होने वाली फसलों के विकास के लिए तालाब की मिट्टी का उपयोग कर रहे हैं. कृषि विशेषज्ञ हमेशा से तालाब की मिट्टी को अच्‍छी फसल का जरिया मानते आए हैं.

तेलंगाना के किसानों ने अपनाई हल्‍दी की खेती की नई तरकीब  तेलंगाना के किसानों ने अपनाई हल्‍दी की खेती की नई तरकीब
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • May 28, 2024,
  • Updated May 28, 2024, 6:24 PM IST

तेलंगाना के निजामाबाद में हल्‍दी की खेती करने वाले किसान अपनी फसलों के पोषण के लिए तालाब की मिट्टी का इस्तेमाल करके खबरों में बने हुए हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के किसान हल्दी या फिर लंबे समय तक होने वाली फसलों के विकास के लिए तालाब की मिट्टी का उपयोग कर रहे हैं. कृषि विशेषज्ञ हमेशा से तालाब की मिट्टी को अच्‍छी फसल का जरिया मानते आए हैं. उनका मानना है कि तालाब की मिट्टी पौधों के विकास को कई तरह के पोषक तत्‍व प्रदान करने में मदद करती है.

फसल के लिए जरूरी उच्‍च खुराक 

न्‍यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार खेती के जानकार मानसून के मौसम में हल्दी की बुवाई के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं.  तेलंगाना का निजामाबाद राज्‍य के सबसे बड़े हल्‍दी उत्‍पादक जिलों में आता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से राष्‍ट्रीय हल्दी बोर्ड (एनटीबी) की स्थापना की घोषणा जिले के किसानों के लिए अच्छी खबर थी. किसानों ने इस बोर्ड के लिए  तीन दशकों तक संघर्ष किया है. बोर्ड की वजह से किसानों को हल्दी के प्रचार, प्रसंस्करण, खरीद और निर्यात में काफी मदद हुई है. अच्छी तरह से प्रबंधित हल्दी की फसल सात से नौ महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. हालांकि यह उसकी किस्म और बुवाई के समय पर भी निर्भर करती है. 

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काली मिट्टी की कमी से मुश्किलें 

इस फसल को लगाने के लिए मिट्टी में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होनी चाहिए. हल्दी की फसल के विकास के लिए कार्बनिक पदार्थों की उच्च खुराक की जरूरत होती है.  हल्दी की फसल अच्‍छी हो और इसकी बेहतर गुणवत्‍ता सुनिश्चित करने के लिए किसान हर साल भेड़, बकरी और दूसरे जानवरों की खाद के साथ तालाबों से मिली काली मिट्टी का इस्तेमाल भी कर रहे हैं. गर्मी के मौसम में तालाबों में पानी कम होने की वजह से काली मिट्टी मिलना मुश्किल हो जाती है. तालाबों में जमा होने वाली अच्छी गुणवत्ता वाली काली मिट्टी की मांग बढ़ रही है. काली मिट्टी की बढ़ती मांग और कम आपूर्ति के कारण पिछले कुछ वर्षों में हल्दी की खेती में गिरावट आई है. 

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किसानों ने अपनाई यह तरकीब 

अब किसानों ने इस समस्या के समाधान के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए हैं.  उन्होंने 50,000 रुपए की काली मिट्टी खरीदी है और फसल की अच्छी जुताई के लिए उसी दर पर ऑर्गेनिक खाद भी खरीदी है. किसानों ने खेतों में मिट्टी को समान रूप से फैलाने के लिए 50 ट्रैक्टर भी किराए पर लिए हैं जिसके लिए ये प्रति ट्रैक्‍टर के हिसाब से 500 रुपए अदा कर रहे हैं. हल्दी की फसल के लिए सात अलग-अलग समर्थन मूल्य की वजह से वह इसकी बुवाई को लेकर काफी प्रोत्‍साहित हैं. उनका मानना है कि इससे किसानों को फसलों के लिए अच्‍छा-खासा मुनाफा मिल सकता है. 

 

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