किसानों की आय बढ़ाने के लिए तमाम तरह के जतन किए जा रहे हैं. किसानों को पारंपरिक फसलों से इतर नई-नई फसलों की खेती के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा इसी कड़ी में किसानों के बीच हल्दी की खेती का चलन भी बढ़ा है. कई राज्य सरकारें भी किसानों को परंपरागत खेती के साथ ही औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए किसानों को सब्सिडी का लाभ भी प्रदान किया जाता है. औषधीय फसलों की खेती पर सरकार की ओर से 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है. ऐसे में औषधीय फसलों की खेती करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
इन औषधीय फसलों में एक काली हल्दी भी है. इसकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसकी बाजार में काफी मांग बनी रहती है. इसी को ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में काली हल्दी की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं.
काली हल्दी की खेती के लिए इसकी बुआई का उचित समय वर्षा ऋतु माना जाता है. इसकी बुवाई का उचित समय जून-जुलाई होता है हालांकि सिंचाई का साधन होने पर इसे मई माह में भी बोया जा सकता है.
काली हल्दी अपने चमत्कारिक गुणों के कारण देश विदेश में काफी मशहूर है. काली हल्दी का उपयोग मुख्यत: सौंदर्य प्रसाधन व रोग नाशक दोनों ही रूपों में किया जाता है. काली हल्दी मजबूत एंटीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग की जाती है. काली हल्दी का प्रयोग घाव, मोच, त्वचा रोग, पाचन तथा लीवर की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है. यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करती है.
काली हल्दी की खेती के लिए जलवायु उष्ण अच्छी रहती है. इसके लिए 15 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित माना गया है. उसके पौधे पाले को भी सहन कर लेते हैं और विपरीत मौसम में भी अपना अनुकूलन बनाए रखते हैं. इसकी खेती के लिए बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो उपय रहती है. इसके विपरित चिकनी काली, मिश्रित मिट्टी में कंद बढ़ते नहीं है.इसकी खेती के लिए मिट्टी में भरपूर जीवाश्म होना चाहिए. जल भराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नहीं रहती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. 5 से 7 के बीच होना चाहिए.
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काली हल्दी के कन्दों की रोपाई कतारों में की जाती है. प्रत्येक कतार की बीच डेढ़ से दो फीट की दूरी होनी चाहिए. कतारों में लगाए जाने वाले कन्दों के बीच की दूरी करीब 20 से 25 से.मी. होनी चाहिए। कन्दों की रोपाई जमीन में 7 से.मी. गहराई में करना चाहिए. पौध के रूप में इसकी रोपाई मेढ़ के बीच एक से सवा फीट की दूरी होनी चाहिए. मेढ़ पर पौधों के बीच की दूरी 25 से 30 से.मी. होनी चाहिए. प्रत्येक मेढ़ की चौड़ाई आधा फीट के आसपास रखनी चाहिए.
काली हल्दी की रोपाई इसकी पौध तैयार करके भी की जा सकती है. इसके पौध तैयार करने के लिए इसके कन्दों की रोपाई ट्रे या पॉलीथिन में मिट्टी भरकर की जाती है.इसके कन्दों की रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. खेत में रोपाई बारिश के मौसम के शुरुआत में की जाती है.
एक हेक्टेयर में काली हल्दी के करीब 2 क्विंटल बीज लग जाते हैं. काली हल्दी को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. बता दें कि एक एक एकड़ में कच्ची हल्दी करीब 50-60 क्विंटल यानी सूखी हल्दी का करीब 12-15 क्विंटल तक का उत्पादन हो जाता है. इससे असानी से किसान भाई 40 से 50 लाख तक का मुनाफा कमा सकते हैं.