बिहार और कृषि एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं. समय के साथ जहां राज्य ने आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया है, वहीं उत्पादन के आंकड़े यह दिखाते हैं कि बिहार ने खाद्यान्न के क्षेत्र में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है. वर्ष 2004-05 से लेकर 2023-24 तक के आंकड़े देखें तो बिहार का कुल खाद्यान्न उत्पादन 231.15 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. यह 152.09 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि है, यानी 192.37% की छलांग.
इसके साथ ही, प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है — 12.11 क्विंटल/हेक्टेयर से बढ़कर अब 33.86 क्विंटल/हेक्टेयर हो गई है. यानी 179.06% की वृद्धि.
बिहार में मक्का उत्पादन में बेमिसाल बढ़ोतरी देखने को मिली है. वर्ष 2004-05 में मक्का का उत्पादन 14.91 लाख मीट्रिक टन था, जो अब 58.65 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो चुका है. यानी 293% की वृद्धि.
प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 23.79 क्विंटल से बढ़कर 61.38 क्विंटल हो चुकी है. 17 इथेनॉल इकाइयों की स्थापना से मक्का की मांग और रकबा दोनों में इजाफा हुआ है, जो अब 9.55 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है.
चावल का उत्पादन 2004-05 में 26.25 लाख मीट्रिक टन था, जो अब 95.23 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है — 262.78% की वृद्धि. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 14.15 क्विंटल से बढ़कर 30.62 क्विंटल हुई है — 116.40% की वृद्धि.
गेहूं का उत्पादन 32.79 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर अब 73.07 लाख मीट्रिक टन हो गया है — 122.84% की वृद्धि. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी 16.22 क्विंटल से बढ़कर 32.11 क्विंटल हो गई है — यानी करीब 98% की वृद्धि.
हालांकि कृषि उत्पादन और उत्पादकता में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन फसलों की खेती करने वाले अधिकतर किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्पादन बढ़ने के बावजूद किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है, जिससे लाभ का वितरण असमान है.
वर्ष 2004-05 में गेहूं का उत्पादन 32.79 लाख मीट्रिक टन था, जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 73.07 लाख मीट्रिक टन हो गया. इस प्रकार, गेहूं के उत्पादन में 122.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. गेहूं की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता वर्ष 2004-05 में 16.22 क्विंटल थी, जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 32.11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई.
इस प्रकार, उत्पादकता में 97.97 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि, बिहार खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि किया है, लेकिन इन तीन फसलों की खेती करने वाले किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्तर में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है.