केंद्र सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए शुक्रवार को उबले चावल (Parboiled Rice ) के निर्यात पर शुल्क पांच महीने से अधिक समय के लिए बढ़ा दिया है. वित्त मंत्रालय ने एक अधिसूचना के माध्यम से इस कैटेगरी के चावल पर शुल्क को 31 मार्च 2024 तक बढ़ाने का फैसला लिया है. पर्याप्त स्थानीय स्टॉक बनाए रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार ने 25 अगस्त को उबले चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया था. यह शुल्क 16 अक्टूबर तक प्रभावी था. लेकिन उससे पहले ही सरकार ने इसे आगे बढ़ाने का फैसला ले लिया. ताकि महंगाई के मोर्चे पर उसे ज्यादा न जूझना पड़े. पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह अहम फैसला है. सरकार किसी भी कीमत पर चावल का दाम और नहीं बढ़ने देना चाहती है.
महंगाई पर काबू रखने के लिए ही सरकार ने मई 2022 से गेहूं के एक्सपोर्ट पर रोक लगाई हुई है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है. वैश्विक चावल व्यापार में हमारी हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है. हमने पिछले साल 51 हजार करोड़ रुपये का गैर बासमती चावल और 38500 करोड़ रुपये के बासमती चावल का एक्सपोर्ट किया था. लेकिन दूसरी ओर घरेलू बाजार में चावल तेजी से महंगा हो रहा था. इसीलिए महंगाई से जूझने के लिए सरकार ने हर तरह के चावल पर किसी न किसी तरह की कैपिंग कर दी. दिल्ली में चावल की खुदरा कीमतें एक साल पहले की तुलना में 22 फीसदी बढ़ी हैं, जो सरकार के लिए चिंता का सबब है. जबकि वैश्विक कीमतें इस समय 15 साल के उच्चतम स्तर पर हैं.
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सरकार की मंशा है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए किसी भी सूरत में खाद्य पदार्थों की कीमतें न बढ़ें. वरना सत्ताधारी पार्टी को मिलने वाले वोट पर इसका असर पड़ सकता है. इसलिए एक्सपोर्टर छटपटा रहे हैं फिर भी सरकार चावल के निर्यात को लेकर किसी तरह की ढील नहीं दे रही. हालांकि, इस साल 2022 के मुकाबले धान का रकबा 7.68 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है. जिससे बंपर पैदावार की उम्मीद है. लेकिन विशेषज्ञों को ऐसा लगता है कि सरकार विधानसभा चुनाव परिणाम आने से पहले एक्सपोर्ट खोलने या एक्सपोर्ट ड्यूटी कम करने को लेकर कोई बड़ा फैसला नहीं लेगी.
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