भारत की प्रमुख तिलहन और दलहन फसलों में से एक सोयाबीन के फायदों के बारे में क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है? अगर नहीं तो आज हम भारत में इस फसल की एंट्री और उत्पादन से अलग हटकर आपको इसके लाभ के बारे में बताते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन में कार्बोहाइड्रेट कम होता है, जो इसे एंटी-डायबिटिक भोजन बनाता है. सोयाबीन को आहार में शामिल करने से यह खून में शुगर के स्तर को कंट्रोल करने में सहायक माना जाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए फोलिक एसिड और विटामिन 'बी कॉम्प्लेक्स' बहुत होता है. सोयाबीन इनका समृद्ध स्रोत है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन में आयरन, कॉपर, जिंक, सेलिनियम, कॉपर, मैग्नीशियम और कैल्शियम की अच्छी मात्रा होती है. जो इसे खून से संबंधित रोगों, हड्डियों को मजबूत और स्वस्थ रखने, नींद के अन्य रोगों के साथ-साथ अनिद्रा को कम करने में मदद करता है. सोयाबीन में फाइबर होने से यह पाचन तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कृषि वैज्ञानिकों ने एक लेख में बताया है कि सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन्स प्रचुर मात्रा में होता है, जो प्रजनन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है.
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यूं ही नहीं सोयाबीन भारत में इतनी लोकप्रिय फसल हो गई है. यह भारत मे व्यावसायिक तौर पर 70 के दशक में आई थी. इसने अब यहां की तिलहन फसलों में दूसरा स्थान हासिल कर लिया है. उससे पहले यह देश के लिए नई फसल थी. भारत में उत्पादित कुल सोयाबीन का लगभग 94 प्रतिशत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होता है. इस समय महाराष्ट्र इसका सबसे बड़ा उत्पादक है. खाद्य तेलों पर आयात की निर्भरता एवं विदेशी मुद्रा खर्च के बोझ को कम करने में सोयाबीन महत्वपूर्ण योगदान दे रही है.
सोयाबीन को एक तिलहन फसल के रूप में जाना जाता है. शाकाहारी लोगों के लिए सोयाबीन प्रोटीन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है. सोयाबीन का उपयोग तेल उत्पादन में कच्चे माल के रूप में किया जाता है. जबकि इसके अवशेष यानी खली को घरेलू पशुओं के लिए प्रोटीन खाद्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दुनियाभर में उत्पादित लगभग 85 प्रतिशत सोयाबीन का उपयोग वनस्पति तेलों को बनाने में किया जाता है. अपनी खूबियों की वजह से ही इस फसल का लगातार विस्तार हो रहा है.
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