बेहमी, जिसे स्थानीय भाषा में 'रेग' या 'तिब्बती आड़ू' भी कहा जाता है, एक पारंपरिक फलदार प्रजाति है जो मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों और ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है. इसका वैज्ञानिक नाम Prunus mira है. यह पौधा मुसकिल जलवायु, कम उपजाऊ मिट्टी और सीमित पानी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. इसी वजह से यह कम संसाधनों वाले क्षेत्रों के लिए बेहद लाभकारी फसल मानी जाती है.
बेहमी की खेती मुख्य रूप से 2000 से 4000 मीटर की ऊँचाई वाले इलाकों में होती है. यह पौधा ठंडी जलवायु में पनपता है और ज्यादा देखभाल की ज़रूरत नहीं होती. लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में इसकी खेती का अच्छा संभावनाएं हैं.
हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने बेहमी की खेती को बेहतर बनाने के लिए कुछ तकनीकों को अपनाने की सलाह दी है, जैसे:
इन तकनीकों से फल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होती है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल में गैर-लकड़ी उत्पादों की नई कीमतें लागू, जानें सरकार को कितना फायदा हुआ
बेहमी का फल स्वादिष्ट होता है और इससे कई प्रकार के उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं:
इन सभी उत्पादों की स्थानीय और बाहरी बाजार में अच्छी मांग है, जिससे किसानों को ज्यादा मुनाफा मिल सकता है.
ये भी पढ़ें: आप भी कर सकते हैं इस विदेशी फल की खेती, बाजार में है जबरदस्त मांग
बेहमी के बीजों से तेल निकाला जाता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है. यह तेल:
इसकी मांग देश और विदेश के हर्बल और ब्यूटी इंडस्ट्री में बढ़ती जा रही है.
बेहमी के प्रसंस्करण (Processing) और बाजार तक पहुंचाने की प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकता है. महिलाएं घर पर ही जैम, अचार, तेल आदि बनाकर घरेलू उद्योग शुरू कर सकती हैं. इससे गांवों में आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है.