Alert! इन रोगों से गेहूं की फसल हो सकती है बर्बाद, रोकथाम के लिए अपना लें ये उपाय

Alert! इन रोगों से गेहूं की फसल हो सकती है बर्बाद, रोकथाम के लिए अपना लें ये उपाय

देश के कई राज्यों में शीतलहर का दौर जारी है. इसी बीच गेहूं की फसल में कई रोगों के लगने का खतरा बढ़ गया है. वैसे तो ये शीतलहर गेहूं के लिए फायदेमंद है, लेकिन बारिश के बाद खेतों में पानी रह जाने से सेहूं रोग गेहूं के लिए काफी खतरनाक है. आइए जानते हैं इस रोग से कैसे करें बचाव.

गेहूं में लगने वाले रोग और खरपतवारगेहूं में लगने वाले रोग और खरपतवार
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Dec 15, 2025,
  • Updated Dec 15, 2025, 11:00 AM IST

रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं इस समय खेतों में लगी हुई है. लेकिन दिसंबर महीने के पहले पखवाड़े में जैसे तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. उससे किसानों को गेहूं की फसल में भंयकर बीमारी लगने की चिंता सताने लगी है. गेहूं की फसल में पीला रतुआ के अलावा सेहूं रोग और पर्ण झुलसा रोग का खतरा मंडरा रहा है. ये रोग गेहूं की फसल के लिए काफी खतरनाक होते हैं, क्योंकि इन रोगों के लगने से उत्पादन और क्वालिटी पर भारी असर पड़ता है, जिससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है. ऐसे में आइए जानते हैं इन रोगों के क्या हैं लक्षण और किसान नुकसान से बचने के लिए कैसे करें रोकथाम.  

सेहूं रोग के क्या हैं लक्षण

यह रोग सूत्रकृमि (कीड़ा) द्वारा होता है. इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां मुड़कर सिकुड़ जाती हैं. वहीं, इस कीड़े के लगने से अधिकांश पौधे बौने रह जाते हैं और उनमें स्वस्थ पौधे की तुलना में अधिक शाखाएं निकलती हैं. रोगग्रस्त बालियां छोटी और खोखली होती हैं और उनमें काली गांठें बन जाती हैं. इसमें गेहूं के दाने की जगह काली इलायची के दाने जैसे बीज बनते हैं. जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है.

सेहूं के रोकथाम का तरीका

जब इस रोग के धब्बे दिखाई दें तो पत्तियों पर 0.1 प्रतिशत प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट 25 ईसी) का एक या दो बार छिड़काव करें. इसके अलावा इस रोग के दिखने पर उन पौधों को नष्ट कर दें. वहीं, प्रोपिकोनाजोल की छिड़काव करने से रोगग्रस्त पत्तियां जल्दी सूख जाती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण भी कम हो जाता है और दाना हल्का हो जाता है. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, पत्तियों की निचली सतह पर इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और इसके बाद रोग आगे नहीं फैलता.

पीला रतुआ रोग के लक्षण

तापमान में गिरावट के चलते गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं. यह रोग पक्सीनिया स्ट्राइफारमिस नामक कवक से होता है. पीला रतुआ के फफूंद हवा के साथ आते हैं. शुरू में इस रोग का संक्रमण खेत में एक छोटे गोलाकार क्षेत्र से शुरू होता है, जो धीरे-धीरे पूरी  फसल में फैल जाता है. इस तरह से ये पूरी फसल को नुकसान कर सकते हैं. गेहूं की फसल में दिसंबर के अंत से लेकर मध्य मार्च तक रतुआ बीमारी के लगने का डर बना रहता है.

पीला रतुआ रोग से बचाव

गेहूं की फसल को पीला रतुआ रोग से बचाने के लिए समय रहते  फफूंद नाशक दवा का प्रयोग कर लेना चाहिए. पीला रतुआ रोग लगने पर 500 ग्राम जिंक सल्फेट, दो किलोग्राम यूरिया को 100 लीटर पानी में मिलाकर पौन एकड़ खेत में छिड़काव करें. ऐसा कर फसल को बचाया जा सकता है. पीला रतुआ के होने पर प्रोपिकोनाजोल 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर स्प्रे करें. यदि किसी खेत में पीला रतुआ दिखाई देता है तो अगले साल उस गेहूं के बीज का प्रयोग बुवाई में न करें.

पर्ण झुलसा रोग के लक्षण

गेहूं की फसल पर पर्ण झुलसा रोग के लक्षण या लीफ ब्लाइट पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं. इस रोग का प्रभाव पत्तियों पर बहुत अधिक देखने को मिलता है. शुरू में इस रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. वहीं, ये बड़े होकर पत्तियों के पूरे भाग को झुलसा देते हैं. इसके कारण पत्तियों का हरा रंग नष्ट हो जाता है और प्रभावित पौधे के बीजों में अंकुरण क्षमता कम हो जाती है.

इस रोग से बचाव का उपाय

पर्ण झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर, फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें. इसके अलावा संक्रमित पौधों की छंटाई करें और उन्हें खेतों से हटा दें. साथ ही इस रोग से ग्रसित पत्ते जो खेतों में गिर जाएं उन पत्तों को नियमित रूप से हटाएं. साथ ही जरूरत हो, तो 15 दिन के अंतराल पर दवा का दोबारा छिड़काव करें.

MORE NEWS

Read more!