70 साल बाद पहली बार इंग्लैंड और अमेरिका जाएगा UP का 'कालानमक चावल', जानिए कैसे बढ़ी विदेशों में डिमांड

70 साल बाद पहली बार इंग्लैंड और अमेरिका जाएगा UP का 'कालानमक चावल', जानिए कैसे बढ़ी विदेशों में डिमांड

कालानमक धान को केंद्र में रखकर पिछले दो दशक से काम कर रही गोरखपुर की संस्था पीआरडीएफ (पार्टिसिपेटरी रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन) के चेयरमैन पद्मश्री से सम्मानित कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी के अनुसार पिछले दो वर्षो के दौरान उनकी संस्था ने सिंगापुर को 55 टन और नेपाल को 10 टन कालानमक चावल का निर्यात किया.

अब इंग्लैंड और अमेरिका भी चखेगा कालानमक स्वादअब इंग्लैंड और अमेरिका भी चखेगा कालानमक स्वाद
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Jul 27, 2024,
  • Updated Jul 27, 2024, 10:31 AM IST

Kalanamak Rice Story: अब इंग्लैंड और अमेरिका भी उत्तर प्रदेश के कालानमक चावल का स्वाद चखेगा. करीब सात दशक बाद इंग्लैंड और पहली बार अमेरिका में कालानमक चावल का निर्यात किया जा रहा है. इसके पहले नेपाल, सिंगापुर, जर्मनी और दुबई सहित कई देशों में भी इसका निर्यात किया जा चुका है. कालानमक धान को सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित किया गया है. तबसे इसका क्रेज बढ़ता जा रहा है. इंग्लैंड तो कालानमक के स्वाद और सुगंध का मुरीद रह चुका है. बात करीब सात दशक पुरानी है. तब गुलाम भारत में अंग्रेजों के बड़े- बड़े फॉर्म हाउस हुआ करते थे. ये इतने बड़े होते थे कि इनके नाम से उस क्षेत्र की पहचान जुड़ जाती थी. 

जानिए कैसे हुआ चमत्कार

मसलन बर्डघाट, कैंपियरगंज आदि,  सिद्धार्थनगर भी इसका अपवाद नहीं था. उस समय सिद्धार्थ नगर में अंग्रेजों के फार्म हाउसेज में कालानमक धान की बड़े पैमाने पर खेती होती थी. अंग्रेज कालानमक के स्वाद और सुगंध से वाकिफ थे. इन खूबियों के कारण इंग्लैंड में कालानमक के दाम भी अच्छे मिल जाते थे. तब जहाज के जहाज चावल इंग्लैंड को जाते थे. करीब सात दशक पहले जमींदारी उन्मूलन के बाद यह सिलसिला क्रमशः कम होता गया. और आजादी मिलने के बाद खत्म हो गया. इस साल पहली बार इंग्लैंड को 5 कुंतल चावल निर्यात किया जाएगा. इसी क्रम में पहली बार अमेरिका को भी 5 कुंतल चावल का निर्यात होगा.

ODOP घोषित करने के बाद बढ़ता गया क्रेज

उल्लेखनीय है कि जबसे योगी सरकार ने कालानमक धान को सिद्धार्थ नगर का एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित किया है तबसे देश और दुनियां में स्वाद, सुगंध में बेमिसाल और पौष्टिकता में परंपरागत चावलों से बेहतर कालानमक धान के चावल का क्रेज लगातार बढ़ रहा है. जीआई टैग मिलने से इसका दायरा भी बढ़ा है. योगी सरकार ने इसे सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद ओडीओपी घोषित करने के साथ इसकी खूबियों की जबरदस्त ब्रांडिग भी की. इसीके इसके रकबे उपज और मांग में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई.

3 साल में तीन गुने से अधिक बढ़ा एक्सपोर्ट

बता दें कि राज्यसभा में 17 दिसंबर 2021 को दिए गए आंकड़ों के अनुसार 2019/2020 में इसका निर्यात 2 फीसद था। अगले साल यह बढ़कर 4 फीसद हो गया. 2021/2022 में यह 7 फीसद रहा. कालानमक धान को केंद्र में रखकर पिछले दो दशक से काम कर रही गोरखपुर की संस्था पीआरडीएफ (पार्टिसिपेटरी रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन) के चेयरमैन पद्मश्री से सम्मानित कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी के अनुसार पिछले दो वर्षो के दौरान उनकी संस्था ने सिंगापुर को 55 टन और नेपाल को 10 टन कालानमक चावल का निर्यात किया.

इन दोनों देशों से अब भी लगातार मांग आ रही है. इसके अलावा कुछ मात्रा में दुबई और जर्मनी को भी इसका निर्यात हुआ है. पीआरडीएफ के अलावा भी कई संस्थाएं कालानमक चावल के निर्यात में लगीं हैं. डॉक्टर चौधरी के अनुसार निर्यात का प्लेटफार्म बन चुका है. आने वाले समय में यह और बढ़ेगा.

मात्र सात साल में करीब चार गुना हुआ रकबा

कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी के मुताबिक पिछले साल कालानमक धान का रकबा सिर्फ जीआई वाले जिलों में करीब 80 हजार हेक्टेयर था. 2024 में बीज बिक्री के अबतक के आंकड़ों के अनुसार यह एक लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाएगा. अन्य जिलों और प्रदेशों को शामिल कर लें तो यह रकबा अपेक्षा से बहुत  अधिक होगा. मात्र सात साल में इसके रकबे में करीब चार गुना वृद्धि हुई. 2016 में इसका रकबा सिर्फ 2200 हेक्टेयर था, जो 2022 में बढ़कर 70 हजार हेक्टेयर से अधिक हो गया. 2024 में इसके एक लाख हेक्टेयर से अधिक होने की उम्मीद है.

एक नजर में 'कालानमक चावल' की खूबियां

दुनियां का एक मात्र प्राकृतिक चावल जिसमें वीटा कैरोटिन के रूप में विटामिन ए उपलब्ध है. अन्य चावलों की तुलना में इसमें प्रोटीन और जिंक की मात्रा अधिक होती है. जिंक दिमाग के लिए और प्रोटीन हर उम्र में शरीर के विकास के लिए जरूरी होता है. इसका ग्लाईसेमिक इंडेक्स कम (49 से 52%) होता है। इस तरह यह शुगर के रोगियों के लिए भी बाकी चावलों की अपेक्षा बेहतर है.

 

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